सीएम नीतीश और कुशवाहा के लिए प्रतिष्ठा का विषय बना काराकाट लोकसभा सीट
सिटी पोस्ट लाइव – बिहार के अंतिम चरण के लिए प्रचार कार्य शुक्रवार को समाप्त हो गया. लेकिन बिहार की एक सीट ऐसी है जहां से नीतीश कुमार की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है और यह सीट है काराकाट . काराकाट सीट इस समय काफी हॉट बनी हुई है. क्योंकि यहां से एक तरफ राष्ट्रीय लोकतात्रिक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा महागठबंधन के उम्मीदवार हैं तो दुसरी तरफ एनडीए की तरफ से जेडीयू के महाबली सिंह मैदान में हैं. परन्तु यहां का चुनावी संघर्ष इसलिए दिलचस्प बना हुआ है क्योंकि यह सीएम नीतीश कुमार के लिए एक तरह से नाक का भी सवाल है. दरअसल जेडीयू के एनडीए में शामिल होने के बाद से कुशवाहा असहज हो गए थे और वे लगातार सीएम नीतीश को निशाना बना रहे थे. यही वजह रही कि न चाहते हुए भी उन्हें एनडीए छोड़ महागठबंधन में जाना पड़ा.
जाहिर है काराकाट सीट पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और कुशवाहा, दोनों की की विशेष नजर है. इस हाई प्रोफाइल सीट पर लड़ाई सीधे तौर पर एनडीए और महागठबंधन के बीच सिमट गई है. दोनों ही प्रत्याशियों के लिए अपने-अपने कुनबे के वोटरों को अपने पाले में बनाए रखने की बड़ी चुनौती है. काराकाट लोकसभा सीट पर आरएलएसपी के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा उम्मीदवार हैं तो एनडीए की ओर से यहां जेडीयू के टिकट पर महाबली सिंह अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. महाबली सिंह 2009 में यहां से लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं और वह तब जेडीयू एनडीए का ही हिस्सा थी.
हालांकि 2014 में जेडीयू एनडीए से अलग हो गई और उपेन्द्र कुशवाहा ने एनडीए के साझेदार के रूप में जीत हासिल की थी. 2014 में आरएलएसपी के उपेंद्र कुशवाहा 3,38,892 वोटों के साथ जीते थे. तब वे एनडीए का हिस्सा थे. दूसरे स्थान पर आरजेडी की कांति सिंह 2,33,651 वोटों के साथ रही थीं. इस बार उपेंद्र कुशवाहा की सीधी टक्कर महाबली सिंह से है. 2014 में भी महाबली सिंह जेडीयू के टिकट पर यहां से उतरे थे, लेकिन तीसरे नंबर पर रहे थे. उन्हें 76709 वोट मिले थे.लेकिन इस बार महाबली सिंह के पक्ष में बीजेपी का वोट बैंक भी होगा.वहीं उपेंद्र कुशवाहा को आरजेडी-कांग्रेस के माय समीकरण का लाभ मिल सकता है.
गौरतलब है कि काराकाट संसदीय क्षेत्र में सवर्ण और यादव वोटरों का दबदबा है. मुस्लिम और कुशवाहा वोटर्स यहां गेमचेंजर साबित हो सकते हैं. यहां सवर्ण करीब 20 प्रतिशत, यादव-16 प्रतिशत, मुस्लिम-11 प्रतिशत और कुशवाहा वोटरों की आबादी 8 प्रतिशत है.काराकाट में कुशवाहा के लिए एक और कठिनाई पेश आ रही है. दरअसल यहां मल्लाहों और यादवों के बीच आपसी प्रतिद्वंद्विता जमीन पर भी दिखती है. इसी तरह कुशवाहा के सामने अपने स्वजातीय वोटरों को भी एकजुट रखने की चुनौती है. जबकि महादलितों का एक बड़ा वर्ग बीएसपी के साथ जा सकता है. बता दें कि 19 मई को इस सीट के लिए चुनाव होना है. अब देखनेवाली बात यह होगी कि इस सीट पर कौन बाजी मारता है.
जे.पी.चंद्रा की रिपोर्ट
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