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“राजनीति विशेष” : राजनीति में होता है सिर्फ जनता का इस्तेमाल

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“राजनीति विशेष” : राजनीति में होता है सिर्फ जनता का इस्तेमाल

सिटी पोस्ट लाइव : देश से लेकर सभी प्रांतों की राजनीति में अमूमन जनता का सिर्फ इस्तेमाल होता है। किसी भी पार्टी की सोच और विचारधारा जनता को एक जाजम पर समेटकर चलने वाली नहीं है। खासकर के बिहार की धरती पर तो, जातिवाद से लेकर हर तरह के व्यक्तिगत और पार्टी के फायदे को ही तवज्जो देने की रिवायत रही है। 2005 में एनडीए की सरकार बनी और इस सरकार ने 2010 में भी बिहार की सत्ता पर कब्जा किया। 2005 से पहले लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद का बिहार की सत्ता पर एकल राज था ।लेकिन जनता ने लंबे समय तक लालू राज को झेलने के बाद सत्ता परिवर्तन किया और नीतीश कुमार के हाथ में बिहार की बागडोर सौंपी। 2005 में सत्ता में आई नीतीश सरकार ने बिहार की जनता का काफी ख्याल रखा,जिसका परिणाम यह हुआ कि 2010 तक के कालखंड को सुशासन राज की संज्ञा मिल गयी। लेकिन 2010 में बनी नीतीश सरकार की सुशासन वाली छवि दरकने लगी ।नौकरशाह,माफिया दलाल, बिचौलिए और घुस की अपसंस्कृति हावी होने लगी। धीरे-धीरे बीजेपी और जदयू में दो फाड़ हो गया ।इसका नतीजा यह हुआ कि नीतीश कुमार ने राजद और कांग्रेस से हाथ मिलाकर, बीजेपी को बाहर का रास्ता दिखा दिया।बिहार में बहुत उथल-पुथल मची ।2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू को करारी शिकस्त मिली।

नीतीश कुमार ने हार की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर जीतन राम मांझी को बिहार के सिंहासन पर बिठा दिया। जीतनराम मांझी मुख्यमंत्री तो बन गए लेकिन रिमोट नीतीश कुमार ने अपने हाथ में रख लिया। जीतनराम मांझी स्वतंत्र रूप से मुख्यमंत्री का कार्य करना चाहते थे लेकिन नीतीश कुमार, उन्हें ऐसा करने नहीं देते थे। तंग आकर जीतनराम मांझी ने नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और नीतीश की पीछे की सरकार में कैसे घूसखोरी होती रही, इसका वे परत दर परत खोलने लगे ।नीतीश कुमार की किरकिरी होने लगी। नीतीश को जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाना, उनके लिए गले की हड्डी बन गयी। फिर राजनीति का बड़ा खेल, खेलकर नीतीश कुमार ने जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर से उतारकर, खुद अपनी ताजपोशी करा ली। जीतनराम मांझी एक झटके में अर्श से फर्श पर आ गिरे। 2015 का विधानसभा चुनाव जदयू ने राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा और अपार बहुमत से बिहार की सत्ता में आये। लगभग जमीनदोज हो चुकी राजद, जहाँ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, वहीँ कांग्रेस ने भी अपनी खोई हुई जमीन पा ली।

लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे और राजद के असली युवराज तेजस्वी यादव बिहार के उप मुख्यमंत्री बने ।लेकिन सरकार पर लालू प्रसाद यादव के बाह्य हस्तक्षेप से तंग आकर नीतीश कुमार ने फिर से पलटी मारी और राजद के साथ कांग्रेस से गठबंधन तोड़कर फिर से एनडीए का हिस्सा बन गए ।नई सरकार बनी जिसमें बीजेपी के कई नेताओं ने शीर्ष का मंत्रिमंडल पाया ।सुशील मोदी बिहार के मुख्यमंत्री बने ।अभी यही सरकार बिहार में चल रही है ।गौरतलब है कि नीतीश कुमार के कार्य-कलाप को लेकर,बीजेपी के कई बड़े नेता लगातार हमलावर रहे हैं ।हांलांकि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के हस्तक्षेप से इस हमले पर अब लगभग विराम लग गया है ।बिहार में 2020 में विधानसभा के चुनाव होने हैं ।ऐसी परिस्थिति में जदयू ने झारखण्ड के 81 विधानसभा सीटों में 80 सीटों पर अपना स्वतंत्र उम्मीदवार उतारा है ।एक सीट पूर्वी जमशेदपुर से झारखण्ड के बीजेपी मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ रहे सरयू राय को जदयू ने अपना समर्थन दिया है ।यही नहीं लोजपा ने झारखण्ड में 50 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं ।बिहार में एनडीए की सरकार है ।

इस गठबंधन में बीजेपी के साथ जदयू और लोजपा दोनों शामिल है ।लेकिन झारखण्ड में अलग से चुनाव लड़कर,ये दोनों पार्टियां, बीजेपी के लिए मुसीबत खड़ी कर रही हैं ।आखिर यह कैसा गठबंधन धर्म है और यह कैसी राजनीति है ?दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव में जदयू और लोजपा ने इसी रणनीति के आधार पर चुनाव लड़ने का,पहले से मन बना रखा है ।अब बिहार में गठबंधन का स्वरूप कुछ हो और अन्य प्रदेश में कुछ हो,यह राजनीति का नया ट्रेंड है,जो कई तरह के सवाल खड़े कर रहा है ।जदयू की तर्ज पर लोजपा भी अति महत्वाकांक्षी पार्टी की तरह रेस लगाती दिख रही है ।लोजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान लोजपा को देश स्तरीय पार्टी बनाने की मंसा रखे हुए हैं ।नीतीश कुमार को तो,कई बार पीएम मेटेरियल बताया जा चुका है ।बेजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह देश के गृहमंत्री अमित शाह और लोजपा सुप्रीमों चिराग पासवान ने बिहार में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री का चेहरा बताकर साझा चुनाव लड़ने की पूर्व में ही घोषणा कर दी है ।इधर नीतीश कुमार ने फिर से बिहार को “विशेष राज्य” का दर्जा मिले, इसका प्रलाप शुरू कर दिया है ।

राजनीतिक समीक्षकों का सारा ध्यान अभी झारखण्ड विधानसभा चुनाव और चुनाव परिणाम पर लगा हुआ है ।लेकिन राजनीतिक हलकों और गलियारे से जो खबरें और सूचनाएं हमतक छनकर आ रही हैं,उसके मुताबिक बिहार विधानसभा चुनाव में गठबंधन का स्वरूप बदल सकता है ।भीतरखाने पक रही खिचड़ी के मुताबिक बिहार में जदयू,लोजपा और कांग्रेस एक साथ चुनाव लड़ सकती है ।बीजेपी रालोसपा,हम और भीआईपी को साथ लेकर नए गठबंधन के साथ चुनाव लड़ सकती है और राजद,पप्पू यादव के जाप और लोजद को साथ लेकर चुनावी समर में उतरकर, बड़ी चुनौती बन सकता है ।कुल मिलाकर,बिहार में बड़े बदलाव और उलट-फेर की संभावना प्रबल है ।वैसे बिहार में अगले साल चुनाव होने हैं ।इसलिए हम किसी आखिरी नतीजे की घोषणा नहीं कर रहे हैं ।लेकिन यह साफ तौर पर कहना चाहते हैं कि वर्तमान राजनीति,संक्रमणकाल से गुजर रही है जिसमें जनता हित को सिरे से खारिज कर के पार्टी हित के लिए हर तरह के छल- प्रपंच को तवज्जो दिया जा रहा है ।

PTN मीडिया ग्रुप के मैनेजिंग एडिटर मुकेश कुमार सिंह का खास विश्लेषण

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