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एनएमसी बिल से बदल जायेगी ग्रामीण ईलाकों की स्वास्थ्य व्यवस्था, फिर विरोध क्यों?

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एनएमसी बिल से बदल जायेगी ग्रामीण ईलाकों की स्वास्थ्य व्यवस्था, फिर विरोध क्यों?

सिटी पोस्ट लाइव : भारत में चिकित्सा शिक्षा में सबसे बड़े सुधार लाने के उद्देश्य से लाये गए नेशनल मेडिकल कमीशन बिल को राज्यसभा ने गुरुवार को पारित कर दिया.राज्यसभा में इस विधेयक के पारित होने से पहले एक लंबी बहस हुई . स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि बिल गुणवत्ता और सस्ती चिकित्सा शिक्षा में सुधार करेगा.

इस बिल के अंतर्गत चिकित्सा शिक्षा को विनियमित करने वाली केंद्रीय मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) को रद्द करके इसकी जगह पर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) का गठित किया जाएगा. अब देश में मेडिकल शिक्षा और मेडिकल सेवाओं से संबंधित सभी नीतियां बनाने की कमान इस कमीशन के हाथ में होगी. बिल के तहत छह महीने का एक ब्रिज कोर्स लाया जाएगा जिसके तहत प्राइमरी हेल्थ में काम करने वाले भी मरीज़ों का इलाज कर पाएंगे.डॉक्टर इस प्रस्तावना का विरोध कर रहे हैं और हड़ताल पर चले गए हैं.

नेक्स्ट के तहत ग्रेजुएशन के बाद डॉक्टरों को एक परीक्षा देनी होगी और उसके बाद ही मेडिकल प्रेक्टिस का लाइसेंस मिल सकेगा. इसी परीक्षा के आधार पर पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए दाखिला होगा. अगले तीन वर्षों में एग्जिट परीक्षा लागू कर दी जाएगी. हड़ताली डॉक्टरों को इस बात पर भी आपत्ति है कि एनएमसी निजी मेडिकल संस्थानों की फ़ीस भी तय करेगा लेकिन 60 फ़ीसदी सीटों पर निजी संस्थान ख़ुद फ़ीस तय कर सकते हैं.

 नेशनल मेडिकल कमीशन में 25 सदस्य होंगे. सरकार द्वारा गठित एक कमेटी इन सदस्यों को मनोनीत करेगी. मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया के अधिकारियों की नियुक्ति चुनाव से होती थी और इसमें अधिकतर डॉक्टर सदस्य होते थे.नए बिल ने डॉक्टरों और चिकित्सा समुदाय को विभाजित कर दिया है. इस बिल के कई प्रावधानों का विरोध करने वाले जूनियर डॉक्टर हड़ताल पर हैं.डॉक्टरों का कहना है कि बिल का मक़सद सही है लेकिन इसके कुछ प्रावधान ग़लत हैं.

उनका कहना है कि “बिल के अनुसार ग्रामीण चिकित्सक छह महीने का कोर्स करके मरीज़ों के लिए दवाइयां लिख सकेंगे, वह किसी मरीज़ का इलाज कर सकते हैं. हम 10 साल पढ़ने के बाद डॉक्टर बनते हैं, वो छह महीने के बाद डॉक्टर बन सकते हैं.”यह तो मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ है और डॉक्टरी के पेशे के साथ मजाक है.

लेकिन ऐसे डॉक्टरों की कमी भी नहीं है जो ये मानते हैं कि ग्रामीण इलाक़ों में “हेल्थ वर्कर्स” की सख़्त कमी है. “ग्रामीण इलाक़ों में डॉक्टरों की बहुत कमी है. ये जो ग्रामीण वर्कर्स हैं उन्हें ट्रेनिंग देकर उन्हें ग्रामीण समाज की सेवा में लगाया जा सकता है.लेकिन बिल का विरोध करने वाले डॉक्टरों का कहना है कि इससे ग्रामीण इलाक़ों में नक़ली डॉक्टरों की संख्या बहुत बढ़ेगी और वो मरीज़ों को मूर्ख बनाकर उनसे पैसे वसूल करने की कोशिश करेंगे.

डॉक्टरों का तर्क है कि छह महीने में कोई डॉक्टरी की पढ़ाई कैसे कर सकता है. इससे गाँवों में अराजकता आ सकती है. डॉक्टर कहते हैं कि छह महीने की पढ़ाई के बाद प्राइमरी हेल्थ के लिए डॉक्टर तो बना दिए जाएंगे लेकिन उन्हें रेगुलेट कौन करेगा?

बिल एमसीआई को एनएमसी से बदलता है. एनएमसी में 25 सदस्य होंगे जिनमें 60 प्रतिशत डॉक्टर होंगे. पहले एमसीआई के अधिकारियों और सदस्यों का चुनाव होता था अब एनएमसी के सदस्यों को सरकार नियुक्त करेगी. डॉक्टर रबाब कहते हैं कि सरकार मेडिकल पेशे में हस्तक्षेप करने के लिए बिल लायी है.उनका आरोप है कि ये बिल केंद्र में एमएनसी और राज्यों में चिकित्सा आयोगों की स्वतंत्रता ख़त्म करने के लिए लायी गयी है.

एनएमसी के तहत चार अलग-अलग रेगुलेटरी बॉडी होंगी. अंडर-ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड (UGMEB) और पोस्ट-ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड (PGMEB). इनकी ज़िम्मेदारियों में पाठ्यक्रम और चिकित्सा शिक्षा के लिए दिशा देना और चिकित्सा योग्यता को मान्यता प्रदान करना शामिल है.

चिकित्सा मूल्यांकन और रेटिंग बोर्ड: बोर्ड के पास UGMEB और PGMEB द्वारा निर्धारित न्यूनतम मानकों को बनाए रखने में विफल रहने वाले संस्थानों पर मौद्रिक दंड लगाने की शक्ति होगी. यह नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना, पाठ्यक्रम शुरू करने और मेडिकल कॉलेज में सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए भी अनुमति देगा.

नैतिकता और चिकित्सा पंजीकरण बोर्ड: यह बोर्ड देश में सभी लाइसेंस प्राप्त चिकित्सा चिकित्सकों का एक राष्ट्रीय रजिस्टर बनाए रखेगा, और पेशेवर और चिकित्सा आचरण को भी विनियमित करेगा. केवल रजिस्टर में शामिल लोगों को डॉक्टरों के रूप में अभ्यास करने की अनुमति दी जाएगी.

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