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कर्नाटक का राजनीतिक संकट: मज़बूत एकल राजनीतिक पार्टी की ओर बढ़ रहा है भारत ?

कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस सरकार अगर गिरी तो इसके बड़े राजनीतिक मायने होगें

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कर्नाटक का राजनीतिक संकट: मज़बूत एकल राजनीतिक पार्टी की ओर बढ़ रहा है भारत ?

सिटी पोस्ट लाइव : कर्णाटक में जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) और कांग्रेस के गठबंधन वाली सरकार गंभीर संकट में है. जनता दल सेक्यूलर के एक दर्जन से ज़्यादा विधायकों के इस्तीफ़ा देने की वजह से राज्य सरकार का बचना मुश्किल हो गया है. अब ये तय है कि 12 जुलाई से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र के दौरान भारतीय जनता पार्टी कर्नाटक की कुमारस्वामी सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लायेगी.

सबसे बड़ा सवाल क्या कर्नाटक में गठबंधन सरकार की खस्ता हालत देश में गठबंधन सरकारों की बुरी स्थिति और उनकी समाप्ति की ओर इशारा कर रही है?हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और मज़बूत राजनीतिक दल बनकर उभरी है. जिस तरह साल 1971 में पाकिस्तान से युद्ध जीतने के बाद सत्ता का केंद्र इंदिरा गांधी हो गई थीं ठीक उसी तरह मौजूदा समय में मोदी ने सत्ता का एकीकरण कर दिया है.

इंदिरा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद सत्ता में आईं थीं और बहुत कम वक़्त ही बीता था कि उन्हें ‘गूंगी गुड़िया’ बता दिया गया. यह वो वक़्त था जब कांग्रेस पार्टी बहुत कमज़ोर नज़र आ रही थी और साल 1967 में भारत में गठबंधन की राजनीति की शुरुआत भी हुई.

गठबंधन की राजनीति के तहत  भारतीय क्रांति दल, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय जन संघ (भारतीय जन संघ से ही आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी का निर्माण हुआ) के गठबंधन सरकार का उदय हुआ.लेकिन पाकिस्तान का विभाजन करके बांग्लादेश बनाने में कामयाबी हासिल करने के बाद एकबार फिर से इंदिरा गांधी प्रचंड बहुमत के साथ देश की केंद्रीय सत्ता पर काबिज हो गईं .अलग-अलग राज्यों में मौजूदा गठबंधन की सरकारों को भी इंदिरा गांधी की लहर ने धाराशायी कर दिया.संयुक्त विधायक दल की सरकारें उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, पंजाब, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तमिलनाडु और केरल में गिर गईं.केरल को छोड़कर हाल तक में पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थिति मज़बूत थी. वहीं तमिलनाडु में द्रविड़ पार्टियों का शासन बना रहा.

गठबंधन की सरकारें बनने का दूसरा चरण 1989 में शुरू हुआ. यह वो वक़्त था जब कई गठबंधन पार्टियों का उदय हुआ. इन पार्टियों ने न केवल राज्य स्तर पर सत्ता का स्वाद चखा बल्कि केंद्रीय स्तर पर भी सत्ता में रहीं.1989 से शुरू हुआ गठबंधन का ये दौर कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए के बनने तक रहा जिसने साल 2004 और 2009 में केंद्रीय स्तर पर दो सफल कार्यकाल पूरे किये.यह सिलसिला मोदी सरकार के साल 2014 में जीत तक भी बना रहा और अब तो हाल ही में हुए चुनावों में उन्होंने अपनी स्थिति को और मज़बूत कर लिया है.

मई में हुए चुनावों से एक साल पहले जब बीजेपी कर्नाटक विधानसभा चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी तो कांग्रेस ने बीजेपी के कांग्रेस मुक्त भारत के कैंपेन को समाप्त करने का फ़ैसला किया.इसका नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस पार्टी ने कुछ ऐसे फ़ैसले लिए जिस पर यक़ीन करना मुश्किल था, मसलन पार्टी ने जेडीएस के एचडी कुमारास्वामी को मुख्यमंत्री पद का प्रस्ताव दे दिया.चुनाव में भले ही जेडीएस ने 37 सीटें जीतीं और ये कांग्रेस की जीती सीटों से शायद आधा ही थीं लेकिन कांग्रेस ने मुख्यमंत्री की कुर्सी का प्रस्ताव दे दिया.यह फ़ैसला चौंकाने वाला था क्योंकि ये वही दो पार्टियां थीं जो सालों से दक्षिणी कर्नाटक में एक-दूसरे की ‘दुश्मन’ थीं.

कर्नाटक में इस गठबंधन सरकार को बने अभी 14 महीने ही हुए हैं और जैसी अभी स्थिति है उसे देखकर तो लगता है कि जेडीएस-कांग्रेस का गठबंधन ख़तरे में है. सरकार के 13 विधायक विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे चुके हैं.इसके पीछे राज्य में बीजेपी के ऑपरेशन कमल का महत्वपूर्ण योगदान रहा. जो सदस्य इस्तीफ़ा देकर आएंगे उन्हें भविष्य में बीजेपी के टिकट से चुने जाने का वादा किया गया है. ठीक ऐसा प्रयोग 2008 में भी हुआ था, जब कर्नाटक में बीजेपी सत्ता में चुनकर आई थी.जाहिर है ऐसे में जो परिस्थितियां बन रही हैं उसके आधार पर ये कहा जा सकता है कि अपना  देश मज़बूत एकल राजनीतिक पार्टी की ओर बढ़ रहा है? इसका मतलब ये भी हो सकता है कि गठबंधन सरकारों का दौर ख़त्म होने की कगार पर है?

साल 2019 का लोकसभा चुनाव और उसके नतीजों से यह पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है कि भारत में राजनीतिक पार्टियों ने अपनी साख गंवाई है. बीजेपी से मुक़ाबला करने की क्षमता भी मौजूदा समय में किसी राजनीतिक दल में नहीं है. देश में फिरहाल ऐसा कोई नेतृत्व नजर नहीं आ रहा  जो मोदी का विकल्प बन सके या फिर उनके नेतृत्व के समकक्ष खड़ा हो सके और या फिर उसे चुनौती दे सके.”

अगर बात साल 2019 के लोकसभा चुनावों की करें तो पूरे देश की जनता ने गठबंधन को पूरी तरह से नकार दिया. लोगों ने तय किया कि एक पार्टी की सरकार ही सबसे अच्छी होगी क्योंकि गठबंधन लोगों को शासन नहीं दे पाता.दूसरा सबसे बड़ा कारण “बीजेपी का हिंदू जाति समूहों का संगठन बनने में मिली कामयाबी रही है. बीजेपी ने सभी हिंदू जातियों को एक मंच पर लाने का काम किया है जो कि बीजेपी के हिंदुत्व से बिल्कुल अलग है. कर्नाटक में अब पहले से कहीं ज़्यादा हिंदूकरण हुआ है.

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