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BJP विरोध के बहाने बंगाल में धर्म की राजनीति भड़का रही हैं ममता ?

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BJP विरोध के बहाने बंगाल में धर्म की राजनीति भड़का रही हैं ममता ?

सिटी पोस्ट लाइव : .””क्या ममता बनर्जी खुद बीजेपी को पश्चिम बंगाल में मज़बूत बना रही हैं. बंगाल में 34 साल लोगों ने लेफ़्ट को देखा, उससे पहले 30 साल तक कांग्रेस रही. लेकिन टीएमसी की जड़ें महज़ आठ साल में ही हिलती नज़र आ रही हैं.”आखिर ममता बनर्जी इतनी जल्दी क्यों बंगाल की राजनीति से उखड रही हैं और बीजेपी वहां मजबूत हो रही हैं.

बंगाल और ममता की राजनीति को ठीक समझने के लिए सबसे पहले शुरुवात करते हैं निति आयोग की बैठक से . पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी  15 जून को होने वाली नीति आयोग की बैठक में हिस्सा नहीं लेंगी.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता मेंहोनेवाली इस बैठक में देश के सभी राज्यों में मुख्यमंत्री, केंद्र शासित राज्यों के लेफ्टिनेंट गवर्नर सहित कैबिनेट मंत्री और वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहेंगे.

नई मोदी सरकार की ये पहली नीति आयोग की बैठक है जिसमें पानी के संकट और कृषि जैसे मुद्दों पर चर्चा संभव है लेकिन ममता बनर्जी ने यह कहते हुए इस बैठक से किनारा कर लिया है कि यह बैठक उनके लिए ‘निरर्थक’ है.ममता बनर्जी का कहना है कि  “नीति आयोग के पास न तो कोई वित्तीय शक्तियां हैं और न ही राज्य की योजनाओं में मदद के लिये उसके पास शक्ति है. ऐसे में किसी भी प्रकार की वित्तीय शक्तियों से वंचित संस्था की बैठक में शामिल होना मेरे लिये फालतू है.”ममता बनर्जी 30 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी कैबिनेट के शपथ ग्रहण समारोह में भी शामिल नहीं हुई थीं.

दरअसल ममता बनर्जी एक ऐसी राजनेता हैं जो  कभी आर्थिक एजेंडा को सामने नहीं रखती हैं. वह जब से राज्य की मुख्यमंत्री हैं तब से अब तक कभी चेंबर ऑफ़ कॉमर्स की एक भी बैठक में शामिल नहीं हुई है. इंडस्ट्रीयल और आर्थिक मामलों से जुड़े एजेंडे वाली बैठक होती है उससे ममता बनर्जी का कोई लेना-देना नहीं होता.””बंगाल में केंद्र की 67 योजनाएं थीं और इसे घटा कर चार या पांच कर दिया गया है.  ममता बनर्जी अपना राजनीतिक एजेंडा लेकर चलती हैं. वो यह नहीं देखतीं कि इससे राज्य का भला हो रहा है या नहीं. वो वही करती हैं जो उनके राजनीतिक एजेंडे के अनुकूल होता है.”

टीएमसी कार्यकर्ता केंद्र सरकार की योजनाओं को भी ममता बनर्जी सरकार की योजना बताते हैं और गांव के रहने वाले लोग जिन्हें सच नहीं पता होता वो इसे ही सच मान लेते हैं.” “मोदी ने अपनी रैली में कहा भी था कि दीदी हमारी स्कीम में भी अपना ठप्पा लगा लेती है.

“ममता बनर्जी की राजनीति का तरीक़ा अन्य नेताओं से अलग है. वो आमने-सामने की लड़ाई में यकीन रखती हैं. 15वें वित्त आयोग के रवैये से ममता बनर्जी नाखुश रही हैं. ना सिर्फ़ ममता बनर्जी बल्कि दक्षिण राज्यों के मुख्यमंत्री भी इससे नाराज़ हैं क्योंकि आयोग कहता है कि राज्य को मिलने वाले फ़ंड का आवंटन उसकी आबादी के मुताबिक़ होगा. शायद यही नाराज़गी उनकी नीति आयोग की बैठक को बॉयकॉट करने का कारण हो सकती है.”

लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी 42 सीटों पर जीत का दावा किया था लेकिन वो 22 सीटों पर सिमट गईं. “अब ममता बनर्जी के दो ही उद्देश्य हैं कॉरपोरेशन चुनाव और 2021 में होने वाले बंगाल विधानसभा चुनाव में टीएमसी का बेहतर प्रदर्शन. इस वक़्त ममता बनर्जी अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही हैं, इसीलिए उन्होंने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए रणनीतिकार प्रशांत किशोर को बुलाया है. इस ख़बर के साथ ही बंगाल में बीजेपी ने नारा उछाल दिया है- ‘दीदी होई गया फीके, ताई डाकचे पीके’ यानी बंगाल में ममता बनर्जी का जादू फ़ीका हो गया है इसलिए पीके (प्रशांत किशोर) को बुलाया है.”

“बंगाल हर साल 50 हज़ार करोड़ रुपये का ब्याज रिज़र्व बैंक को दे रहा है और ये परंपरा लेफ़्ट के वक्त से चली आ रही है जब राज्य को इतने पैसे कर्ज़ के ब्याज पर भरने पड़ते हैं. लेकिन ममता बनर्जी चाहती थीं कि केंद्र सरकार की ओर से ये माफ़ कर दिया जाए. इस पर केंद्र ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह इस तरह राज्यों का कर्ज़ माफ़ नहीं कर सकती और ये वित्त आयोग का काम है.

 “लोकसभा चुनाव दूसरे राज्यों के लिए अहम था लेकिन यहां लोकसभा चुनाव को बीजेपी भी सेमीफ़ाइलन के तौर पर देख रही है, टीएमसी भी इसे यही मान रही है. दोनों ही पार्टियां 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव पर फ़ोकस किए हुए हैं. ममता बनर्जी हार के बाद इस्तीफ़ा नहीं देतीं वह हमेशा अपने संगठन को अहमियत देती हैं. बाकी नेता हार पर इस्तीफ़े की पेशकश कर देते हैं लेकिन ममता ने सीएम पद से इस्तीफ़े का प्रस्ताव रखा लेकिन संगठन के लिए वह हमेशा खड़ी रहती हैं. वह फ़ाइटर प्रवृत्ति की नेता हैं.”

लेकिन ममता की परेशानी ये है कि उनके सबसे ख़ास रहे उनका दायाँ हाथ माने जाने वाले मुकुल रॉय उनसे अलग हो चुके हैं. जब से बीजेपी में शामिल हुए हैं, तब से टीएमसी को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. हालिया समय में 5000 टीएमसी कार्यकर्ता बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. ये ममता बनर्जी के लिए एक बड़ा झटका है.

“टीएमसी के संकट का अंदाज़ा इसी बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने ईद के मौके पर लोगों को संबोधित करने के दौरान कह दिया- जो हमसे टकराएगा चूर चूर हो जाएगा. ममता ये बोलती हैं कि बीजेपी धर्म की राजनीति करती है वो सांप्रदायिकता की बात करती हैं लेकिन असलियत में ममता ऐसी बातें करने लगी हैं.लेकिन सच्चाई ये है कि बीजेपी के विरोध के नाम पर वो खुद धर्म की राजनीति करने लगी हैं.ममता बनर्जी केंद्र में एनडीए का हिस्सा रही चुकी हैं. वाजपेयी सरकार में वह देश की रेलमंत्री भी रही हैं. लेकिन आज वह बीजेपी की सबसे बड़ी विरोधियों में से एक हैं. उन्होंने हाल ही में फ़ेसबुक पर एक ब्लॉग लिखकर बीजेपी की विचारधारा पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि बीजेपी राजनीति में धर्म मिलाती है. इस नफ़रत की राजनीति को बंगाल में नहीं चलने देंगे.

“1998 में टीएमसी का गठन हुआ और कुल 10 चुनाव ममता बनर्जी लड़ चुकी हैं, उन्होंने सात चुनाव गठबंधन में लड़े हैं. जिसमें से तीन 1998, 1999 और 2004 का चुनाव उन्होंने खुद बीजेपी के साथ लड़ा. तीन बार एनडीए में मंत्री रही. लेफ्ट कहता है कि बंगाल में बीजेपी की एंट्री के पीछे ममता बनर्जी हैं.”

”ज्योति बसु ने कहा था कि वह ममता को हर चीज़ के लिए माफ़ कर सकते हैं लेकिन राज्य में बीजेपी को लाने के कारण वो ममता बनर्जी को कभी माफ़ नहीं कर सकते. ये समझना होगा कि ममता ने लेफ्ट को खत्म करना तो चाहा लेकिन ये भूल गईं की वैक्यूम भरता ज़रूर है और आज वो बीजेपी भरती नज़र आ रही है.”बंगाल के ग्रामीण इलाकों में बीजेपी के बढ़ते प्रभाव से साफ़ है कि  ”उत्तरी बंगाल से ममता बनर्जी का सूपड़ा साफ़ हो चुका है. दार्जिलिंग से लेकर कोलकाता सभी इलाकों में टीएमसी की हार हुई है.”

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के काफ़िले के सामने जय श्रीराम का नारा लगाने के आरोप में सात लोगों को हिरासत में लिया गया.इस घटना का एक वीडियो सामने आया जिसमें नारे लगाने वालों को वह ”क्रिमिनल” कह रही हैं. आखिर इन नारों पर वह इतनी उग्र क्यों हो जाती हैं? ”ममता जय श्री राम के नारे पर जिस तरह प्रतिक्रिया दे रही हैं ये एक मुख्यमंत्री को शोभा नहीं देता. बेहतर होता कि वह इस मुद्दे को इतना तूल नहीं देतीं. आज बंगाल में वह खुद ऐसा करके धर्म की राजनीति भड़का रही हैं.”

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