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एकसाथ कांग्रेस ने साधे तीन निशाने, ब्राह्मण अध्यक्ष बनाने का सियासी मतलब समझिए

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एकसाथ कांग्रेस ने साधे तीन निशाने, ब्राह्मण अध्यक्ष बनाने का सियासी मतलब समझिए

सिटी पोस्ट लाइव ( कनक प्रत्यूष ) : SC-ST एक्ट को लेकर सवर्णों की नाराजगी को देखते हुए कांग्रेस पार्टी ने एकसाथ तीन  निशानों को साधने की कोशिश की है. कांग्रेस बीजेपी से नाराज सवर्णों खासतौर पर ब्राहमणों-भूमिहारों और दलितों-मुस्लिमों को साधने के लिए एकसाथ तीन तीर चलाया है. ब्राहमणों को साधने के लिए उसने लम्बे अरसे के बाद एक पुराने कांग्रेसी  ब्राह्मण मदन मोहन झा को प्रदेश का अध्यक्ष बनाया है. वहीं भूमिहारों को साधने के लिए अखिलेश प्रसाद सिंह को चुनाव अभियान का अध्यक्ष बना दिया है. इतना ही नहीं कांग्रेस दलितों-अल्पसंख्यकों को भी नाराज नहीं करना चाहती. इसलिए उसने  कांग्रेस के दलित नेता अशोक राम और कौकब कादरी को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है..

कांग्रेस हाईकमान ने लंबे चिंतन-मनन के बाद पूर्व मंत्री मदनमोहन झा को बिहार पार्टी की कमान सौंपी है. कांग्रेस नेतृत्व ने दशकों बाद ब्राह्मण चेहरे को कांग्रेस का नया अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है. लोकसभा चुनाव से पहले सूबे में पर एक बड़ा दांव लगाया है. कांग्रेस ने ढाई दशक से भी अधिक समय बाद सूबे की कमान कभी उसकी सियासत के मजबूत आधार रहे ब्राह्मण वर्ग को सौंपी है. 1991 में बिहार में पार्टी के अध्यक्ष रहे जगन्नाथ मिश्र के बाद बीते 27 साल में इस वर्ग के किसी नेता को प्रदेश संगठन की कमान नहीं सौंपी गई थी. बीजेपी –जेडीयू  की सियासी दोस्ती के सामाजिक समीकरणों की चुनौती के बीच आरजेडी से अपने गठबंधन के नफा-नुकसान के आकलन के बाद राहुल गांधी ने सूबे में पार्टी संगठन का राजनीतिक कलेवर बदला है. हालांकि, झा को बिहार की कमान मिलने में उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि ने भी अहम भूमिका निभाई. सूबे में कांग्रेस के प्रमुख चेहरों में एक रहे नागेंद्र झा के बेटे मदनमोहन झा को बिहार कांग्रेस से बगावत करने वाले पूर्व अध्यक्ष अशोक चौधरी ने साधने की कोशिश की थी। मगर झा ने निष्ठा नहीं बदली.

कांग्रेस मानकर चल रही है कि बीजेपी से सवर्ण समुदाय का मोहभंग हो रहा है. अब कांग्रेस ही उनके लिए विकल्प है. इसीलिए सवर्ण मतदाताओं को साधने का यह सही समय है. प्रदेश कांग्रेस के लिए नियुक्त चार कार्यकारी अध्यक्षों में से दो सवर्ण चेहरे समीर कुमार सिंह ( राजपूत) और श्याम सुंदर धीरज (भूमिहार) का होना पार्टी की इस रणनीति का संकेत है.लेकिन  सवर्णों को वापस पार्टी से जोड़ने की कवायद से दूसरे वर्ग को अनदेखी का अहसास न हो, कांग्रेस पार्टी ने अल्पसंख्यक चेहरे कौकब कादरी के साथ पार्टी के दलित चेहरे डॉ. अशोक कुमार को भी कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया है. मीरा कुमार और केके तिवारी से लेकर सदानंद सिंह और शकील अहमद जैसे वरिष्ठ नेताओं को 19 सदस्यीय सलाहकार समिति में शामिल किया गया है. राहुल ने प्रदेश कांग्रेस की 23 सदस्यीय कार्यसमिति भी गठित कर चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है.

कांग्रेस की इस रणनीति से आरजेडी को कितना फायदा होगा पता नहीं लेकिन अगर कांग्रेस नाराज ब्राहमणों को अपने साथ वापस लाने में कामयाब होती है, तो उसे बिहार में एक नया जीवन मिल सकता है.कांग्रेस की रणनीति से गैर-ब्राहमण और गैर-राजपूत-भूमिहार कांग्रेसी प्रत्याशियों को भले ख़ास फायदा न मिले लेकिन सवर्ण उम्मीदवारों को सवर्णों का समर्थन जरुर मिल सकता है. अगर बीस फीसदी नया सवर्ण वोट कांग्रेस को मिल जाता है तो बीजेपी का खेल बिगड़ सकता है.

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