नीतीश कुमार बीजेपी से ले चुके हैं जेडीयू के लिए बक्सर और बगहा लोक सभा सीट
सिटी पोस्ट लाइव : रविवार को पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक में नीतीश कुमार ने यह एलान कर दिया है कि बीजेपी के साथ सीटों का सम्मानजनक समझौता हो गया है. हालांकि मुख्यमंत्री अभी ये खुलासा नहीं किया कि उनकी पार्टी को इस सम्मानजनक समझौते में कितनी सीटें मिली हैं. लेकिन सूत्रों के हवाले से मिली खबर के अनुसार जेडीयू ने इस समझौते के तहत बीजेपी की बक्सर और बगहा सीट अपने खाते में ले लिया है. नीतीश कुमार की योजना बक्सर से प्रशांत किशोर को को उतारने की है. बगहा के लिए भी नीतीश कुमार एक योग्य ब्राह्मण उम्मीदवार की तलाश में हैं.
इस समझौते से सबसे ज्यादा संकट में बीजेपी नेता ,केन्द्रीय मंत्री अश्वनी चौबे हैं. बक्सर से वो सांसद हैं. लेकिन अब यह सीट उनके हाथ से निकल गया है. अब चर्चा है कि वो भागलपुर से चुनाव लड़ेगें. अभीतक अश्वनी चौबे की प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है. लेकिन सूत्रों का कहना है कि भागलपुर से अपने बेटे को चुनाव लड़ाने की तैयारी में जुटे अश्वनी चौबे इतनी आसानी से अपनी सिटिंग सीट छोड़ने को तैयार नहीं होगें.
इसबार बक्सर से प्रशांत किशोर का जेडीयू के टिकेट पर चुनाव लड़ना तय है. गौरतलब है कि प्रशांत किशोर की जन्म स्थली है बक्सर. यहीं पर उनका जन्म हुआ है. उनके पिता बक्सर के जानेमाने चिक्तिसक भी हैं.सूत्रों के मुताबिक चुनाव से ठीक पहले ‘पीके’ की जेडीयू में जिन कारणों से इंट्री हुई है उसमें एक कारण यह भी है. 41 साल के प्रशांत किशोर का बक्सर से खासा लगाव है. प्रशांत किशोर बक्सर से चुनाव लड़ना चाहते हैं.
प्रशांत किशोर का पुश्तैनी घर सासाराम के कोनार में है. लेकिन प्रशांत किशोर का गावं से कभी कोई नाता नहीं रहा. प्रशांत किशोर बक्सर से ही पढ़े लिखे. वहीँ पर उनका जीवन गुजरा और वहीं पर उनके परिवार की पहचान भी है. ब्राह्मण जाति से आने वाले पीके की बक्सर सीट से दावेदारी इसलिये भी मजबूत मानी जा रही है क्योंकि वहां के वर्तमान बीजेपी सांसद अश्विनी चौबे ने इस सीट को पहले ही छोड़ने के संकेत दे दिये हैं ऐसे में ये सीट जेडीयू के खाते में जाना तय है. बक्सर सीट से जेडीयू पीके को पार्टी सबसे योग्य चेहरा मान रही है ऐसे में अगर उन्हें इस सीट से मौका मिलता है तो इसमें कुछ अचरज वाली बात नहीं होगी.
बक्सर ब्राह्मण बाहुल्य ईलाका है. लोकसभा सीट में ब्राह्मण वोटरों की भी अच्छी-खासी है. इस लोकसभा सीट से जगदानंद को छोड़कर और कोई दूसरा कोई गैर-ब्राहमण नहीं जीता है. लोक सभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव,अक्सर यहाँ से ब्राह्मण ही चुनाव जीतते रहे हैं. अश्विनी चौबे बाहरी होने के बावजूद इस सीट से अपनी जाति की वजह से ही सांसद बने.
इस सीट से एनडीए और महागठबंधन दोनों ने 2014 के चुनाव में सवर्ण उम्मीदवारों को मौका दिया था. इस चुनाव में अश्विनी चौबे ने महागठबंधन के जगदानंद सिंह को हराया था. इस बार फिर से जगदानंद सिंह महागठबंधन से इस सीट पर उम्मीदवार होंगे ऐसे में पीके उनको टक्कर देने के लिये जेडीयू और एनडीए का चेहरा बन सकते हैं.
अगर बात बक्सर की करें तो इस सीट से लोकसभा का चुनाव जीत कर केंद्र में मंत्री बनने वाले अश्विनी चौबे से वहां के लोग नाराज हैं. चाहे जिले के विकास की बात हो या फिर चौबे के अपने क्षेत्र में समय देने की बात ,दोनों मुद्दों पर वो जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे हैं. बक्सर के लोगों का भी कहना है कि अगर प्रशांत किशोर को जेडीयू इस सीट से मौका देती है तो उनकी जीत सुनिश्चित है. पीके की बक्सर सीट से दावेदारी इस पहलू से भी मानी जा रही है क्योंकि शाहाबाद की एक अन्य सीट आरा फिलहाल बीजेपी के खाते में है. 2014 के चुनाव में इस सीट से आर के सिंह चुनाव जीते थे जिनका इस सीट से दुबारा चुनाव लड़ना तय है ऐसे में जेडीयू के खाते में बक्सर सीट आयेगी.
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