सिटी पोस्ट लाइव विशेष ( कनक प्रत्यूष ) : बिहार के बालिका और बाल गृहों के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल सांइेसेज द्वारा किये गए अंकेक्षण रिपोर्ट के बाद यह सवाल लाजिमी हो गया है कि बालिका या बाल गृह सरकार द्वारा चलाये जाने का मकसद क्या है? अनाथ, असहाय और अपराध की शिकार बच्चियों और बच्चों को यातना देना या फिर उन्हें संभालना और उनके जीवन को संभालना है? सरकार के अनुसार इसका उद्देश्य उन महिलाओं एवं बालिकाओं को संरक्षण एवं पुनर्वास सेवा प्रदान करना है, जो पारिवारिक कलह के कारण सामाजिक-आर्थिक समस्याओं, भावनात्मक अशांति, मानसिक समस्याओं, सामाजिक उत्पीड़न, शोषण का शिकार हों, या जिन्हें वेश्यावृत्ति के लिए विवश किया गया हो.
बालिका आश्रय गृहों में जरूरतमंद महिलाओं एवं बालिकाओं को छह महीने से तीन वर्ष तक अस्थायी आश्रय देने के साथ साथ उन्हें यहाँ परामर्श सेवाएं, स्वास्थ्य रक्षा एवं मनोचिकित्सा उपचार, व्यवसाय संबंधी सहायता, हुनर विकास हेतु प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए. उनके खाने पीने से लेकर खेलकूद और मनोरंजन की प्रॉपर व्यवस्था होनी चाहिए.
लेकिन ठीक इससे उल्ट है बिहार के बाल और बालिका गृह केन्द्रों की. बिहार के शेलटर होम्स की सोशल ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार तो बालिका गृह यातना गृह बन चुके हैं. इसमें रहना जेल में रहने से भी ज्यादा कठिन है. पीडि़तों की दर्दनाक दास्तान जान कर आपकी रूह कांप जाएगी.बिहार में मुजफ्फरपुर बालिका गृह दुष्कर्म कांड को लेकर पुरे देश में हंगामा मचा है लेकिन बिहार के दूसरे बाल और बालिका गृहों की हालत मुजफ्फरपुर से बहुत बेहतर नहीं है. हैवानियत और मानवाधिकारों का उल्लंघन हर जगह तो हो ही रहा है साथ ही दिल दहला देनेवाली यातनाएं बच्चों और बच्चियों को दिया जा रहा है.
आइकेएआरडी एनजीओ द्वारा संचालित इस होम में कई लड़कियां जो अपने परिवार से बिछड़ गईं थीं, रहतीं थीं. उनके पास परिवारीजन के फोन नम्बर थे, लेकिन उन्हें परिवार के पास जाने नहीं दिया गया था. होम के आरटीओ और अकाउंटेंट लड़कियों के साथ मौखिक और शारीरिक हिंसा करते थे. कर्मियों के अमानवीय व्यवहार से तंग आकर एक लड़की ने खुदकशी कर ली थी. एक लड़की ने कर्मियों की यातना के कारण मानसिक संतुलन खो दिया था. लड़कियों को कपड़े, दवा और बुनियादी जरूरतों की चीजों से वंचित रखा जाता था.महिला चेतना विकास समिति द्वारा यहां लड़कियों को सड़क से पकड़कर लाया जाता था. उन्हें अपने परिवार से मिलने, उन्हें फोन करने और इस जगह को अपनी इच्छा से छोड़कर जाने की भी इजाजत नहीं थी.
पटना, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, गया, मुंगेर, मधेपुरा और मोतिहारी में ऐसे 15 शेल्टर होम की पहचान की गई है , जहां मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन के मामले पाए गए हैं.समाज कल्याण विभाग को सौंपे गए इस रिपोर्ट में सभी शेल्टर होम के नाम के साथ वहां महिलाओं, युवतियों और बच्चों के साथ होनेवाले अमानवीय व्यवहार के बारे में स्पष्ट ब्योरा दिया गया है. शेल्टर होम में यौन हिंसा आम बात बताई गई है.बालिका और बल गृहों में बच्चों और बच्चियों को ताले में बंद कर रखा जाता है. वो घूम फिर नहीं सकते.खेलकूद तो दूर की बात वो बंद कमरे से बाहर ही नहीं निकल सकते. लड़कियों के मनोरंजन और वोकेशनल ट्रेनिंग के नाम पर कहीं भी कुछ भी नहीं है.
गैर सरकारी संस्था निर्देश द्वारा संचालित बॉयज चिल्ड्रेन होम, मोतिहारी में बच्चों के साथ भयंकर हिंसा और यौन उत्पीडऩ के मामले पाए गए. यहां कोई एक बच्चा या बच्चों का कोई ग्रुप छोटी-मोटी शरारत करे, आपस में झगड़े या यहां से भागने की कोशिश करे तो उन्हें मोटे पाइप से बुरी तरह मारा जाता था. छोटे बच्चों और किशोरों का भी यौन उत्पीडऩ हुआ है.
सखी एनजीओ द्वारा संचालित यहां के दूसरे होम में मानसिक रूप से बीमार लड़कियों और महिलाओं के साथ खुद काउंसलर ही बुरी तरह मारपीट करती थी. यहां संवासिनों को अपने धर्म के अनुसार आचरण करने पर मारा पीटा गया.
द बॉयज चिल्ड्रेन होम, भागलपुर में ऑडिट टीम को एक शिकायत पेटी मिली, जिसमें मारपीट और अन्य अमानवीय व्यवहारों के बारे में दर्जनों पत्र पाए गए. टीम ने यहां भारी वित्तिय अनियमितता पाई. यहां बच्चों की शिक्षा, मनोरंजन और वोकेशनल ट्रेनिंग के कोई साधन उपलब्ध नहीं थे.
द मुंगेर बॉयज चिल्ड्रेन होम का इंफ्रास्ट्रक्चर बैरक के समान था. यहां बच्चों को अधीक्षक के घर के काम में पूरे दिन लगाया जाता था. एक गूंगे और बहरे नाबालिग लड़के ने, जो अधीक्षक के घर खाना बनाता था, अपनी गाल पर तीन इंच गहरे घाव का निशान दिखाया. बताया कि एक बार खाना बनाने से इन्कार करने पर उसे बुरी तरह मारा पीटा गया. यहां रहनेवाले सात साल के बच्चे ने भी भयानक तरीके से मारपीट की शिकायत की.
मुंगेर में ही शेल्टर होम का संचालन एक दूसरी संस्था नॉवेल्टी वेलफेयर सोसायटी भी करती है. होम के एक भाग को 10 हजार रुपये किराए पर दे दिया गया है. लड़कियों से बातचीत के दौरान पूरे समय यहां के स्टाफ उनकी कड़ी निगरानी करते रहे. डर से लड़कियों ने सिर्फ इतना कहा कि यहां के वॉशरूम में अंदर से बंद करने के लिए लॉक नहीं है, जिससे वे असुरक्षित महसूस करती हैं. ऑडिट टीम ने जब एक बंद कमरा खुलवाया तो वहां मानसिक रूप से बीमार एक युवती मिली, जिसकी हालत अत्यंत दयनीय थी. टीम को देखते ही एक को पकड़कर वह बुरी तरह रोने लगी.
द बॉयज चिल्ड्रेन होम, गया में लड़कों को ताले में बंद रखा जाता है. छोटी सी गलती पर भी बुरी तरह मारपीट की जाती थी. इसी तरह नारी गुंजन (पटना), आरवीईएसके (मधुबनी) और ज्ञान भारती दत्तकग्रहण एजेंसी (कैमूर) में भी अधोसंरचना के भयानक कमी के कारण बच्चे अत्यंत दयनीय स्थिति में रह रहे हैं. बच्चे अक्सर भूखे, नाखुश और अस्वस्थकर वातावरण में रहते हैं. यहां के स्टाफ को लंबे समय से वेतन भी नहीं दिया गया था.
आब्जरवेशन होम, अररिया जिसका सञ्चालन खुद सरकार करती है,उसका भी हाल बेहाल है.यहां बिहार पुलिस द्वारा नियुक्त एक गार्ड लड़कों के साथ भयावह तरीके से शारीरिक हिंसा करता था. लड़कों ने अपनी छाती और शरीर के विभिन्न हिस्सों पर नुकीले हथियारों से मारपीट के भयावह निशान दिखाए. एक लड़के ने बताया कि गार्ड ने एक बार मार कर उसकी हड्डी तोड़ दी थी और उसे कई दिनों तक कोई दवा नहीं दी गई. लड़कों ने बताया कि यह सुधार गृह नहीं बिगाड़ गृह है. जेल भी यहां से बेहतर जगह है.जाहिर है सरकार की बालिका संरक्षण की योजना ही बालिकाओं के शोषण और यातना का सबसे बड़ा जरिया बन गई है.
Comments are closed.