श्रीकांत प्रत्यूष
सिटीपोस्टलाईव : भाजपा की तरफ से विधान परिषद चुनाव के लिए घोषित 3 नामों में से संजय पासवान का नाम काफी चौंकाने वाला है .इसलिए नहीं कि वो योग्य नहीं हैं बल्कि इसलिए कि बहुत ज्यादा योग्य और होनहार दलित नेता होने के कारण पार्टी ने उन्हें डंप कर दिया था .आज जब दलित आन्दोलन से बीजेपी घबराई हुई है ,उसे संजय पासवान का ध्यान आया है.दरअसल संजय पासवान बहुत दिनों से सक्रिय राजनीति से दूर थे.संजय नवादा से सांसद और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रह चुके हैं. संजय बीजेपी के अनुसूचित जाति मोर्चा के पूर्व प्रमुख भी रह चुके हैं.अगर वो दूसरे नेताओं की तरह ही पार्टी पद और मंत्री पद से संतुष्ट हो जाते तो शायद आज उनकी जगह पार्टी में बहुत ऊपर होती.कम से कम पार्टी में एक अलग हैसियत तो जरुर होती. .लेकिन दलित नेता बनने की उनकी महत्वाकांक्षा पार्टी के कुछ नेताओं को रास नहीं आई .यहीं कारण थी था कि राजनीतिक शुरुवात के साथ ही उनकी राजनीति पतन शुरू हो गया..
संजय पासवान एक पढ़े लिखे योग्य व्यक्ति हैं. वो दलित राजनीति करते हैं लेकिन सवर्णों से भी घृणा नहीं करते.दलितों के उत्थान से जुड़े अपने अभियान से सवर्णों को जोड़ देने की उनमे अद्भूत क्षमता है.बिहार या फिर देश में रामविलास पासवान की जगह लेने की क्षमता केवल उनमे है..अगर पार्टी ने उन्हें प्रोमोट किया होता तो बीजेपी के पास आज देश का सबसे प्रभावशाली दलित नेता होता.अपनी उपेक्षा से संजय बेहद दुखी और आहत थे.उन्होंने 2016 में पार्टी के राष्ट्रिय अध्यक्ष अमित शाह पर भी निशाना साध दिया.उत्तर प्रदेश चुनाव में दलितों को साधने में जब अमित शाह जुटे थे ,संजय पासवान ने उनके ऊपर निशाना साधते हुए कहा था कि दलितों के साथ खाने ,बैठने का दिखावा करने से काम नहीं चलनेवाला .उनके लिए हकीकत में कुछ करना भी पड़ेगा.संजय पासवान कांशी राम और भीम राव अम्बेडकर के ऊपर बहुत काम कर चुके हैं. उनकी कई किताबें उनके ऊपर छप चुकी हैं.उन्होंने बीजेपी को अम्बेडकर के अलावा दूसरे दलित महापुरुषों कांशी राम और बाबू जगजीवन राम को भी याद रखने की नसीहत दी थी.
उनकी नसीहतों को पार्टी ने गंभीरता से लेने की बजाय उसे उनकी उदंडता समझने की भूल की .अगर उसने संजय पासवान को गंभीरता से लिया होता तो आज बीजेपी के पास देश का सबसे ताकतवर दलित नेता संजय पासवान के रूप में होता .अब जब एकबार दलित आन्दोलन शुरू हुआ है तो बीजेपी को उनकी याद आई है.देर आये दुरुस्त आये .लेकिन संजय पासवान की भूमिका एक विधान पार्षद तक सिमित कर देने से पार्टी को कोई ख़ास लाभ नहीं मिलनेवाला . .संजय पासवान को एक मौका राष्ट्रिय राजनीति करने का जरुर मिलना चाहिए.देश को ऐसा दलित नेता नहीं चाहिए जो सवर्णों को अपना दुश्मन समझता हो या स्वर्ण उसे अपना दुश्मन समझते हों.देश को संजय पासवान जैसा दलित नेता चाहिए तो सवर्णों को भी दलितों के उत्थान के अभियान से जोड़ सके.
दलितों के हिन्दुकरण का जो अभियान बीजेपी चला रही है ,उसे सफल बनाने का दमखम केवल संजय पासवान जैसे दलित नेता में ही है.संजय एक कर्मकांडी दलित हैं.देश भर के जादू-टोना और टोटका करनेवालों का सम्मलेन कर एकबार यह दिखा चुके हैं कि दलितों को जाति के बंधन से बाहर निकालकर उनका हिन्दुकरण करने क दमखम वो रखते हैं.
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