सीमांचल पर BJP के खास फोकस के क्या हैं मायने?
बिहार में BJP -महागठबंधन के बीच सिमांचल में मुकाबला, ओवैशी बिगाड़ रहे हैं किसका खेल?
सिटी पोस्ट लाइव :BJP लोक सभा चुनाव की तैयारी की आगाज सिमांचल से क्यों करना चाहती है.क्यों अमित शाह के सिमांचल की यात्रा से महागठबंधन की नींद उडी हुई है?दरअसल,किशनगंज में 70, अररिया 45, कटिहार में 40 और पूर्णिया 30 प्रतिशत मुस्लिम वोटर हैं. ओवैसी के प्रवेश से पहले इस ईलाके में कांग्रेस, आरजेडी और जेडीयू का दबदबा था. लेकिन 2020 के चुनाव में इन तीनों दलों को मिला कर उतना भी वोट नहीं मिला, जितना अकेले ओवैसी को मिल गया.BJP इस ईलाके में वोटों का ध्रुवीकरण करना चाहती है.
23 सितंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पूर्णिया में बीजेपी की रैली को संबोधित करने जा रहे हैं. महागठबंधन भी रैली करने जा रहा है.बिहार की सत्ता पर कब्जे की लड़ाई सीमांचल से शुरू हो चुकी है.सिमांचल में विधानसभा की 24 और लोकसभा की चार सीटें हैं. 2019 में चार में से सिर्फ अररिया में भाजपा को सफलता मिली थी. दो सीटें कटिहार और पूर्णिया जदयू के खाते में गई थी. किशनगंज पर कांग्रेस का कब्जा बना रहा.
सीमांचल का संदेश पूरे राज्य में जाएगा.अगर इस इलाके में ध्रुवीकरण होता है तो बिहार के साथ पश्चिम बंगाल में भी इसका लाभ मिलना तय है. यही कारण है कि अमित शाह ने अपने दो दिनों के प्रवास के लिए इसी इलाके को चुना है. एआइएमआइएम की सक्रियता से भी भाजपा को लाभ मिलने की उम्मीद है. एमआइएमआइएम के पांच में से चार विधायक राजद में चले गए हैं लेकिन मुस्लिम आबादी के बीच एआइएमआइएम के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता है.
भाजपा की ध्रुवीकरण की इस तैयारी से महागठबंधन की नींद उड़ी हुई है.एमआइएम की सक्रियता से उसे काफी नुकसान हुआ है. 2020 के विधानसभा चुनाव में आठ से अधिक सीटों पर राजद और कांग्रेस की हार एमआइएम के चलते हुई थी. भाजपा की रैली तो सिर्फ पूर्णिया में हो रही है. महागठबंधन ने पूर्णिया के साथ किशनगंज, कटिहार और अररिया में भी रैली करने का फैसला किया है. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह ऊर्फ ललन सिंह ने कहा-हमलोग सामाजिक सदभाव के लिए रैली करेंगे.
2015 में JDU अलग था. 2020 में वह भाजपा के साथ था फिर भी भाजपा को 24 में से छह विधानसभा सीटों पर ही सफलता मिली. पार्टनर बदलने के बाद भी जदयू की 2015 की छह सीटें 2020 में भी छह ही रही. जदयू से दोस्ती के बाद लोकसभा चुनाव में भाजपा के परिणाम पर फर्क पड़ा. 2014 के मोदी लहर में भी भाजपा लोकसभा की चारों सीट हार गई थी. 2019 में जदयू के साथ आने पर उसे अररिया में सफलता मिली. जदयू को दो और कांग्रेस को एक सीट पर सफलता मिली.BJP इस परफॉरमेंस को अपने बल पर दुहराना चाहती है.
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