सिटी पोस्ट लाइव :नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल के दो मंत्रियों को लेकर विवाद पैदा हो गया है.नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में दो ऐसे माननीय मंत्री हैं जो पिछली सरकार में भी किसी सदन के सदस्य नहीं होने के वावजूद मंत्री थे और इस सरकार में भी मंत्री हैं.इसको लेकर पटना हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर हो गया है. इस याचिका में अशोक चौधरी को किसी सदन के सदस्य नहीं होने के वावजूद दो दो बार मंत्री बनाए जाने को लेकर सवाल खड़ा किया गया है.
लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसे नियम है की जो भी मंत्री बने उन्हें किसी भी सदन का सदस्य होना अनिवार्य होता है. बिहार में विधानसभा या विधान परिषद में से कोई अगर सदस्य हो तभी उन्हें मंत्री मंडल में जगह मिलती है लेकिन नीतीश मंत्रिमंडल में दो मंत्री अशोक चौधरी जो जेडीयू कोटा से भवन निर्माण मंत्री हैं और जनक राम जो खान मंत्री हैं, भाजपा कोटे से मंत्री बने हैं. फिलहाल किसी भी सदन के सदस्य नहीं है.
दरअसल विधानसभा चुनाव के पहले नीतीश मंत्रिमंडल में अशोक चौधरी मंत्री थे और उस वक्त विधान परिषद के सदस्य थे, लेकिन विधानसभा चुनाव परिणाम आने के पहले ही उनका एमएलसी का टर्म खत्म हो चुका था. इसी बीच विधानसभा का चुनाव हुआ और नीतीश कुमार की सरकार फिर से बन गई. नीतीश कुमार ने अपने मंत्रिमंडल में फिर से मंत्री बना दिया. लेकिन अशोक चौधरी के साथ फिलहाल समस्या ये है कि वो विधानसभा चुनाव नहीं लड़े थे और विधान परिषद में राज्यपाल कोटा अभी भरा नहीं गया है. अब हाईकोर्ट में अशोक चौधरी को दुबारा मंत्री बनाए जाने के सरकार के फैसले को चुनौती दी गई है.
जनक राम के साथ भी यही समस्या है. जनक राम लोकसभा सांसद रह चुके है. पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हें पार्टी ने टिकट नहीं दिया था. इस बार के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी का टिकट नहीं मिल पाया था, लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार भाजपा ने अपने कोटे से उन्हें मंत्री बना दिया. बहरहाल नियम ये है कि मंत्री बनने के छह माह के अंदर किसी ना किसी सदन का सदस्य होना जरूरी है. फिलहाल नीतीश मंत्रिमंडल का तीन महीने से ज़्यादा का वक्त गुजर चुका है और बचे हुए तीन महीने के अंदर नीतीश कुमार के दोनो मंत्रियों को सदन का सदस्य होना ही होगा. यह पहला मौका है जब बिहार में दो-दो मंत्री बिना किसी सदन का सदस्य होने के बावजूद बनाए गए हैं.
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