जोकीहाट चुनाव में हार के राजनीतिक मायने ,क्या बदल गया है बिहार का चुनावी अजेंडा.बिहार की जोकीहाट सीट पर हुए उप-चुनाव में एक बार फिर से जेडीयू और एनडीए को शिकस्त का सामना करना पड़ा. अररिया के जोकीहाट सीट से राजद के उम्मीदवार शाहनवाज आलम ने जेडीयू के मुर्शीद आलम से 41 हजार से ज्यादा वोट लाकर नीतीश कुमार को करारी शिकस्त दी है.
सिटीपोस्टलाईव:बीजेपी के साथ सरकार चलाने के वावजूद भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कभी अपने सेक्यूलर क्रेडेंशियल के साथ समझुता नहीं किया .लेकिन अल्पसंख्यकों के लिए इतना कुछ करने के बाद भी जोकीहाट से नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू की हार कई सवाल खड़े करती हैं.क्या अल्पसंख्यक बीजेपी के साथ चले जाने से नीतीश कुमार से बेहद नाराज हैं ? क्या बीजेपी के साथ जाने के कारण जेडीयू की ये करारी हर हुई है ?
बिहार की जोकीहाट सीट पर हुए उप-चुनाव में एक बार फिर से जेडीयू और एनडीए को शिकस्त का सामना करना पड़ा. अररिया के जोकीहाट सीट से राजद के उम्मीदवार शाहनवाज आलम ने जेडीयू के मुर्शीद आलम से 41 हजार से ज्यादा वोट लाकर नीतीश कुमार को करारी शिकस्त दी है.आरजेडी नेता और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव इसे लालूवाद की जीत भले बता रहे हैं लेकिन असल में ये नीतीश कुमार की हार बीजेपी की जीत है.
उपचुनाव में हार का सामना करने वाले जेडीयू के उम्मीदवार मुर्शीद आलम भले ये कह रहे हैं कि बीजेपी का भय दिखाकर मुस्लिमों को गोलबंद किया गया, जिसकी वजह से उनकी हार हुई है.लेकिन सच्चाई ये है कि बीजेपी के साथ रहते हुए भी अल्पसंख्यक नीतीश कुमार से इतने दूर नहीं हुए जितना आज की तारीख में हो गए हैं.इस नतीजे से तो यह साफ़ हो गया है कि बिहार में आगामी विधान सभा चुनाव में अल्पसंख्यकों की गोलबंदी का सिर्फ आरजेडी को फायदा मिलनेवाला है.इसका असर जेडीयू-बीजेपीके संबंधों पर भी पड़ेगा.लोक सभा चुनाव से लेकर विधान सभा चुनाव में सीटों के बंटवारे में नीतीश कुमार बीजेपी पर बिलकुल दबाव नहीं बना पायेगें.इस सीट पर हार से बीजेपी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन इस सीट से अगर नीतीश कुमार जीत जाते तो उसकी भारी कीमत उसे लोक सभा चुनाव में नीतीश कुमार को ज्यादा सीटें देकर चुकानी पड़ती.
इस तरह के नतीजे का अंदेश नीतीश कुमार को पहले से ही था.और आगे बीजेपी उनके साथ क्या करनेवाली है,इसका आभाष भी उन्हें पहले है.यहीं वजह है कि विकास के अजेंडे को पीछे छोड़ते हुए वो पिछले दो साल से देश भर में अपनी पार्टी के विस्तार में जुटे हुए हैं.बिहार में विकास के अजेंडे पर अपनी राजनीति को आगे नहीं बढ़ा पाने की स्थिति में अपने लिए राष्ट्रिय राजनीति में भूमिका की तलाश में नीतीश कुमार पहले से जुटे हुए हैं.अपनी जाति के वोटरों की संख्या ज्यादा नहीं होने के वावजूद नीतीश कुमार अबतक अपने सेक्यूलर क्रेडेंशियल और विकास के अजेंडे की बदौलत ही बिहार की राजनीति में टिके हुए हैं.लेकिन हाल के दिनों में लालू यादव के पक्ष में अल्पसंख्यकों और पिछड़ों –दलितों की हुई गोलबंदी के बाद अब विकास के मुद्दे पर अपनी राजनीति को आगे बढ़ा पाना नीतीश कुमार के लिए आसान नहीं होगा.यहीं वजह है कि पिछले दो वर्षों से लालू यादव के साथ जाने के बाद से नीतीश कुमार का सबसे ज्यादा ध्यान सामाजिक मुद्दों पर है.शराबबंदी,दहेज़,बाल-विवाह जैसे उनके अभियान बिहार की बदलती राजनीति के ही परिणाम हैं.नीतीश कुमार जाति बिरादरी से ऊपर उठकर अपनी पहचान एक सामाजिक सुधारक और दलित पिछड़ा हितैषी नेता के रूप में बनाने में जुटे हैं.सबसे बड़ा सवाल क्या बदल गया है बिहार का चुनावी अजेंडा.जोकीहाट चुनाव में हार के राजनीतिक मायने ,क्या बदल गया है बिहार का चुनावी अजेंडा ?
जोकीहाट से आकाश की रिपोर्ट
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