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महागठबंधन की कमजोरियां NDA को दे रही हैं मजबूती, जानिए क्या है माजरा?

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सिटी पोस्ट लाइव :बिहार चुनाव की तैयारी में NDA जोरशोर से जुट गया है. अमित शाह वर्चुअल रैली कर चुके हैं और अब प्रधानमंत्री खगड़िया से प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने की अपनी मेगा योजना की शुरुवात आज कर रहे हैं.बीजेपी के नेता कार्यकर्त्ता घर घर जाकर संपर्क अभियान चला  रहे हैं.मुख्यमंत्री लगातार विडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के जरिये पार्टी नेताओं कार्यकर्ताओं को चुनावी टिप्स दे रहे हैं. लेकिन दूसरी तरफ महागठबंधन का अभीतक स्वरूप ही स्पष्ट नहीं हो पाया है.एक तो पिछले चुनाव में ख़राब प्रदर्शन को लेकर एक दुसरे पर अविश्वास का भाव है तो दूसरी तरफ ज्यादा से ज्यादा सीटें लेने को लेकर घमशान जारी है. विपक्ष की ये कमजोरियां बिहार में एनडीए को मजबूत बना रही हैं.

महागठबंधन के दलों के बीच इस समय जिस तरह की कड़वाहट है, उसमें यह कल्पना नहीं की जा सकती है कि अगले विधानसभा चुनाव में सीटों का बंटवारा निर्विवाद हो पाएगा. समझौता हुआ भी तो कहीं नतीजा लोकसभा जैसा न हो जाए ये डर सबको बना हुआ है.नामांकन का पर्चा दाखिल करने के अंतिम दिन तक सीट और उम्मीदवार का नाम तय होता रहेगा तो अच्छे रिजल्ट की उम्मीद कैसे की जा सकती है.एनडीए में विधानसभा सीटों के बंटवारे को लेकर समझदारी बन रही है. दो प्रमुख दल बीजेपी और जेडीयू होम वर्क कर रहे हैं. एलजेपी के सुप्रीमो चिराग पासवान भी लडऩे वाली न्यूनतम सीटों की संख्या बता चुके हैं.उन्होंने साफ़ कर दिया है कि यह उसी के आसपास हो सकती है, जितनी सीटों पर लोकसभा चुनाव के दौरान विधानसभा सीटों में लोजपा को बढ़त मिली थी. लोजपा को उस चुनाव में 35 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली थी. लोकसभा चुनाव में एनडीए के घटक दलों ने सीटों के बंटवारे में जिस समझदारी का परिचय दिया था, उससे उम्मीद बनती है कि विधानसभा चुनाव इसको लेकर ज्यादा विवाद नहीं होगा. NDA के तीनों घटक दलों ने संभावित सीटों की अंदरूनी तौर पर पहचान कर तैयारी भी शुरू कर दी है. उम्मीदवारों को तैयारी में लग जाने का निर्देश भी दे दिया गया है.

 महागठबंधन में कोआर्डिनेशन कमिटी बनाने की मांग को लेकर घमशान मचा हुआ है.सबसे बड़े दल RJD के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह से सभी घटक दलों के नेता नाराज हैं.लेकिन जगदानंद सिंह बिलकुल बेपरवाह दिख रहे हैं.उनका कहना है कि समय आने पर सब ठीक हो जाएगा.वो  महागठबंधन में किसी स्तर पर बिखराव की बात से इंकार करते हैं.वो विधानसभा सीटों का सम्मानजनक बंटवारे का आश्वासन भी दे रहे हैं.तेजस्वी यादव भी साफ़ कर चुके हैं कि वो खुद घटक दलों के नेताओं से बात नहीं करेगें.जगदानंद सिंह ही करेगें.लेकिन सहयोगी दलों के नेताओं को जगदानंद सिंह से बातचीत मंजूर नहीं है.कोआर्डिनेशन कमिटी की मांग को भी RJD ने नजर-अंदाज करदिया है.

गठबंधन के दलों के बीच सीटों के तालमेल का एक फार्मूला ये होता है  कि पिछले चुनाव में जीती हुई और दूसरे नंबर की सीट संबंधित दल को दे दी जाए.लेकिन यह फार्मूला महागठबंधन में फिट नहीं बैठता  क्योंकि हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक समता पार्टी और वीआइपी पार्टी बाद में महागठबंधन में शामिल हुए हैं.RJD  और कांग्रेस पुराने दल हैं. पिछले चुनाव में 101 सीटों पर लडऩे वाला JDU अब एनडीए का हिस्सा है.RJD  को पहले की तरह 101 सीट मिले, इस पर घटक दलों को आपत्ति नहीं है. लेकिन उनकी नजर JDU के हिस्से की 101 सीटों पर जरुर टिका है.सहयोगी दलों के नेताओं की मांग है कि JDU के हिस्से की ज्यादातर सीटें उनके हिस्से में आनी चाहिए.

2019 के लोकसभा चुनाव में विधानसभा सीटों पर मिली बढ़त को भी एक आधार बनाकर सीटों का बटवारा हो सकता है. लेकिन, यह प्रदर्शन इतना खराब है कि इसके आधार पर कुछ भी तय कर पाना संभव नहीं है.लोकसभा चुनाव में राजद को नौ, कांग्रेस को पांच, हम और रालोसपा को दो-दो विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली थी. जाहिर है, यह फार्मूला राजद को किसी हालत में मंजूर नहीं होगा.

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