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प्रोत्साहन पैकेज की डिजाइन में राजकोषीय घाटे की दिखी चिंता: सूर्यकांत शुक्ला

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प्रोत्साहन पैकेज की डिजाइन में राजकोषीय घाटे की दिखी चिंता: सूर्यकांत शुक्ला

सिटी पोस्ट लाइव, रांची: आर्थिक मामलों के जानकार सूर्यकांत शुक्ला ने कहा है कि कोरोना ग्रस्त देश की अर्थव्यवस्था को गति देने और महामारी पीड़ितों को राहत पहुंचाने के उद्देश्य से 12 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 ट्रिलियन रुपये के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा कर देशवासियों में कोरोना से निपटने की बड़ी आश जगा दी थी और इसका अनावरण वित्त मंत्री ने मीडिया के सामने आकर कई चरणों में किया। कोरोना महामारी के संकट में लागू लॉकडाउन में देश की बहुत बड़ी आबादी की आय पर चोट पहुंची है। नौकरियां चली गयी, दुकान और कारखाने बंद हो गये, किसानों की रबी फसल को भी नुकसान हुआ। प्रोत्साहन पैकेज के खुलासे से यह उजागर हो गया कि सरकार को अपने राजकोषीय घाटे की चिंता प्रवासी मजदूरों की पीड़ा की चिंता से कहीं ज्यादा है। सामान्य समय में यह सोच सही होती है, परंतु विषम संकट का समय है, इसमें प्रभावितों की पीड़ा को पहले देखने की जरुरत है। फिस्कल घाटे की जिम्मेदारी के निर्वहन में थोड़ा समय बढ़ाया जा सकता था।

सूर्यकांत शुक्ला ने कहा कि दरअसल पैकेज में मौद्रिक प्रोत्साहन का बड़ा हिस्सा है, जिसका असर आने में वक्त लगता है और यह आरबीआई और व्यवसायिक बैंकों द्वारा संपादित रियायतों के साथ लोन देने की व्यवस्था है। राजकोषीय प्रोत्साहन में सरकार अपनी उधारी बढ़ाकर प्रभावितों को सीधे मदद पहुंचाती है और यह अपना असर जल्दी दिखलाता है। यह जरूर है कि यह रास्ता फिस्कल घाटा को बढ़ाता है और देश की संप्रभु क्रेडिट रेटिंग के लिए थोड़ा रिस्क भी बढ़ाता है, पर आगे यह पैकेज आपूर्ति साइड को ज्यादा समर्थन कर रहा है और मांग साइड को कम कवर कर रहा है, जबकि कोरोना संकट के पहले से ही देश की इकोनॉमी मांग की कमी झेल रही है। पैकेज की सभी स्कीमें इकोनॉकी में लिक्विडिटी का प्रवाह करने वाली हैं, इसमें कोई शक नहीं है, परंतु इसके साथ पीड़ितों को तुरंत इनकम सपोर्ट वाली स्कीमें भी चाहिए थी।

इस क्रम में केंद्रीय वित्तमंत्री द्वारा स्वास्थ्य कर्मियों के लिए 15 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा कराये जाने की घोषणा सराहनीय है। उन्होंने कहा कि सरकारी खर्च ही अर्थव्यवस्था को ताकत भी देगा और गतिमान भी बनायेगा। इंफ्रास्टक्चर में खर्च बढ़ाकर जरुरतमंद को इनकम सपोर्ट देकर राहत और अर्थव्यवस्था दोनों को दुरुरूस्त करना जरूरी होगा। इसकी लागत आएगी राजकोषीय घाटे के बढ़ते आकार के रूप में, लेकिन उधारी प्रबंधन के लिए सरकार के साहस और बुद्धिमता की जरुरत आज देश को है।  जरुरतमंदों की पुकार सुनने के क्रम में फिस्कल डेफिसिट थोड़ा बढ़ जाता है, तो सरकार को घबराना नहीं चाहिए, देश का कर्ज और जीडीपी का रेश्यो दूसरे देशों की तुलना में कम है। सरकार स्वयं कर्ज बढ़ाने से भाग रही है , परंतु कोरोना लॉकडाउन के प्रभावितों को कर्ज देने की तरह-तरह का इंतजाम कर रही है।

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