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मदिरापान सभी बुराइयों की जड़, नशा कर इंसान विवेकशून्य हो जाता है : गुप्तेश्वर पांडेय

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मदिरापान सभी बुराइयों की जड़, नशा कर इंसान विवेकशून्य हो जाता है : गुप्तेश्वर पांडेय

सिटी पोस्ट लाइव : संघर्ष को मानव जीवन का दूसरा नाम कहा जाता है. इसी संघर्ष से व्यक्ति कुंदन की तरह शुद्ध और पवित्र बन जाता है. जिन लोगों का ह्रदय कमजोर होता है या जिनका निश्चय सुदृढ नहीं होता है वे संघर्ष के आगे घुटने टेक देते हैं. वे अपनी सफलता से बचने के लिए नशे को सहारा बनाते हैं. कहने का क्या है वे लोग तो कह देते हैं कि हम गम को भुलाने के लिए नशा करते हैं. इसी से हमारे मन को शांति मिलती है. नशा करने से दुखों और कष्टों से मुक्ति मिलती है लेकिन क्या सचमुच नशा करने से व्यक्ति दुखों से मुक्त हो जाता है ? अगर ऐसा होता तो पूरे विश्व में कोई भी दुखी और चिंताग्रस्त नहीं होता. उक्त बातें बिहार पुलिस में महानिदेशक सीनियर आईपीएस ऑफिसर गुप्तेश्वर पांडेय ने कही.

पांडेय ने कहा कि, मानव जीवन बहुत ही निर्मल होता है. मानव जीवन में सात्विकता, सज्जनता, उदारता और चरित्र का उत्कर्ष होता है. वह खुद का ही नहीं बल्कि अपने संपर्क में आने वाले का भी उद्धार करता है. इसके विरुद्ध तामसी वृत्तियाँ मनुष्य को पतनोन्मुखी करती हैं उनका मजाक करती हैं. एक पतनोन्मुख व्यक्ति समाज और राष्ट्र के लिए भी बहुत ही घातक सिद्ध होता है. इसलिए समाज सुधारक और धार्मिक नेता समय-समय पर दुष्प्रवृत्तियों की निंदा करते हैं और उनसे बचने के लिए भी प्रेरणा देते हैं. मदिरापान और नशा सब बुराईयों की जड़ होते हैं.

गुप्तेश्वर पांडेय ने कहा कि, किसी विद्वान् ने यह बात बिलकुल सत्य कही है कि मदिरापान या अन्य नशा सभी बुराईयों की जड़ होती है. नशा मनुष्य को असंतुलित बनाती है. नशेड़ी व्यक्ति से किसी भी समाज की बुराई की अपेक्षा की जा सकती है. इसी कारण से हमारे शास्त्रों में मदिरापान व अन्य नशा को पाप माना जाता है. शुरू में तो व्यक्ति शौक के तौर पर नशा करता है. उसके दोस्त उसे मुफ्त में शराब पिलाते हैं. कुछ लोग ये बहाना बनाते हैं कि वे थोड़ी-थोड़ी दवाई की तरह शराब को लेते हैं लेकिन बाद में उन्हें लत पड़ जाती है. जिन लोगों को शराब पीने की आदत पड़ जाती है उनकी शराब की आदत फिर कभी भी नहीं छूटती.

नशेड़ी व्यक्ति नशा कर के विवेकशून्य हो जाता है और बेकार, असंगत और अनर्गल प्रलाप करने लगता है. उसकी चेष्टाओं में अश्लीलता का समावेश होने लगता है. वह शिक्षा, सभ्यता, संस्कार और सामाजिक मर्यादा को तोडकर अनुचित व्यवहार करने लगता है. गाली-गलौज और मारपीट उसके लिए आम बात हो जाती है. मदिरापान पारिवारिक बरबादी का कारण : कहने को तो कम मात्रा में शराब दवाई का काम करती है. डॉक्टर और वैद्य भी इसकी सलाह देते हैं लेकिन ज्यादा तो प्रत्येक वस्तु का बुरा है. आगे यह नशा जहर बन जाती है. नशे की लत से हमने बड़े-बड़े घरों को उजड़ते हुए देखा है.

उक्त बातें बताते हुए डीजी गुप्तेश्वर पांडेय कहते हैं कि, जिस पैसे को व्यक्ति खून-पसीना एक करके सुबह से लेकर शाम तक कमाता है जिसके इंतजार में पत्नी और बच्चे बैठे होते हैं वह नशे की हालत में लडखडाता हुआ घर पहुंचता है. पड़ोसी उसे देखकर उसका मजाक उड़ाते हैं, मोहल्ले वाले उसकी बुराई करते हैं लेकिन बेचारी पत्नी या माँ कुछ नहीं कह पाती है. वह केवल एक बात से डरती रहती है कि उसका शराबी पति या बेटा उसे आकर बहुत पीटेगा. इसलिए वह बेचारी दिल पर पत्थर रखकर जीवन को गुजार देती है. विषैले नशा के दुष्परिणाम को रोज अख़बारों में पढ़ा जा सकता है. आर्थिक संकट होने की वजह से युवा सुलेशन को रुमाल में डालकर उसको नाक से खीचते हैं. नशा उत्पाद बनाने वाले भी ज्यादा पैसे कमाने के लिए उत्पाद में मिलावट करते है. इस तरह की नशा सामग्रियों ने हजारों की जान ले चुकी है तब भी यह प्रक्रिया समाप्त नहीं हुई है.

बिहार में नशाबन्दी के बहुत से लाभ हो सकते हैं. हमारे बहुत से बड़े-बड़े नेता चारित्रिक पतन के लिए बार-बार चीखते-चिल्लाते हैं, नशाबन्दी कानून के लागु होने से उन्हें रोना नहीं पड़ेगा. बिहार खुद सुधरने लगेगा और हजारों घर उजड़ने से बच जायेंगे. गुप्तेश्वर पांडेय का मानना है कि बिहार सामूहिक शक्ति प्राप्त कर लेगा. इससे लोग चरित्रवान और बलवान बनेंगे. तामसी वृत्ति समाप्त हो जाएगी और सात्विक वृत्ति बढने लगेगी. इससे धर्म और कर्तव्य की भावना विकसित होगी. विदित हो कि डीजी गुप्तेश्वर पांडेय ने व्यापक स्तर पर नशामुक्ति अभियान चलाया है, इसको लेकर वो बिहार के प्रत्येक जिलों का दौरा कर युथ ब्रिगेड का गठन कर रहे हैं. जिसमे कम से कम 100 युवा एक जिले में नशामुक्ति को लेकर कार्य करेंगे. इसमे बिहार के लोगों का आपार समर्थन भी प्राप्त हो रहा है. उनका कहना है कि किसी भी हाल में बिहार को नशामुक्त बनाना है.

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