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आर्यभट – 4: पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है 

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आर्यभट – 4
पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है 
सूर्य-ग्रहण के दिन पुराणपंथी विद्वान चुप बैठे नहीं रह सके। वे पुनः गुहार लगाने राजदरबार में पहुंच गये। उन्होंने कहा – “महाराज, आज तो अनर्थ हो रहा है। आज तो यह तरुण पंडित आर्यभट हमारे धर्मग्रंथों को यह कहकर चुनौती दे रहा है कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है और तारामंडल स्थिर है! वह दावा कर रहा है कि आज के सूर्यग्रहण से उसकी यह स्थापना सिद्ध होगी। हमारे धर्म-ग्रंथ कहते हैं कि पृथ्वी आकाश में स्थिर है। पृथ्वी विश्व के मध्यभाग में स्थिर है और आकाश के तारे इसकी परिक्रमा करते रहते हैं। आज तक हमारे किसी भी विद्वान ने धर्मशास्त्रों के वचनों के खिलाफ कुछ कहने का साहस नहीं किया। लेकिन इस पंडित का साहस तो देखिये! वह पूरे शास्त्र को उलटने का दुस्साहस कर रहा है। अब भी अगर सम्राट चुप रहे तो फिर अनर्थ अवश्यंभावी है।”
सम्राट बुधगुप्त ने गंभीरता से उनकी बातें सुनीं। वह कुछ चिंतित भी दिखे। लेकिन उनकी बातें सुनने के बाद कहा – “विषय गंभीर है। लेकिन हमारे राज में धार्मिक आजादी है। इसका माने है अपने-अपने धर्म और संप्रदायों के विचारों को प्रचारित करने की आजादी। लेकिन इसका यह माने भी प्रकट है कि हमारे राज में धार्मिक बातों का खंडन करने की भी आजादी है। इसीलिए यहां कई भिन्न-भिन्न पंथ और संप्रदाय हैं। इससे समाज और देश अस्थिर नहीं हुआ। इसके विपरीत सत्ता-राजनीति में स्थिरता आयी, देश-समाज के विकास के नये रास्ते खुले। यहां अध्ययन व शोध के लिए कई ज्ञान-विज्ञान के केंद्र स्थापित हुए। हमारे पूर्वजों ने इनकी स्थापना और विकास में सहयोग किया। उन्होंने इन केंद्रों के विकास के लिए किसी पुराने रीति-रिवाज या परंपराओं पर प्रतिबंध नहीं लगाया। आपके रीति-रिवाजों पर या कर्मकांडों पर भी नहीं। तब हम पंडित आर्यभट के मुंह पर कैसे ताला लगायें? वह भी इसलिए कि उसकी नयी बातों से पुरानी बातों के गलत साबित होने का खतरा है? अगर हम उसे बोलने से रोक दें तो यह कैसे साबित होगा कि आपकी पुरानी बातें सही हैं?”
सम्राट बुधगुप्त यह कहते हुए सबको लौटा दिया कि आज सूर्यग्रहण है, तो धार्मिक रीतिरिवाज के अनुसार वे भी स्नान-पूजा करेंगे और विपन्नों को दान-दक्षिणा देंगे, लेकिन सूर्यग्रहण के बाद आश्रम से यह सूचना पाने का प्रयास करेंगे कि आर्यभट के निष्कर्ष कितने खरे उतरे?
पुराणपंथियों के विरोध की सूचनाओं पर कान दिये बिना उधर आर्यभट अपने आसपास जमे विद्यार्थियों की जिज्ञासु भीड़ को ग्रहणों का सही कारण समझा रहा था – “पृथ्वी की बड़ी छाया जब चंद्रमा पर पड़ती है, तो चंद्र-ग्रहण होता है। और इसी प्रकार, चंद्र जब पृथ्वी और सूर्य के बीच आता है और वह सूर्य को ढक लेता है तब सूर्य-ग्रहण होता है। गणित की सहायता से हिसाब लगाकर हम पहले से ही जान सकते हैं कि पृथ्वी और सूर्य के बीच में ठीक किस समय चंद्र आयेगा और किस स्थान पर ऐसा सूर्य-ग्रहण दिखाई देगा। लेकिन इसके लिए पहले यह समझना होगा कि पृथ्वी स्थिर नहीं है। यह अपनी धुरी पर चक्कर लगाती है और आकाश का तारामंडल स्थिर है।”
उसी वक्त एक सहपाठी ने टोक दिया – “तो फिर आकाश के तारे हमें चक्कर लगाते क्यों दिखाई देते हैं? पृथ्वी के चक्कर लगाने का पता हमें क्यों नहीं चलता?”
आर्यभट ने धीरज से समझाया – “मान लो कि नदी में एक नाव है और वह धारा के साथ तेजी से आगे बढ़ रही है। तब उसमें बैठा हुआ आदमी किनारे की स्थिर वस्तुओं को उलटी दिशा में जाता हुआ अनुभव करता है। उसी प्रकार आकाश के तारों की बात हैं पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है और उसके साथ हम भी घूमते रहते हैं, इसलिए आकाश का स्थिर तारामंडल हमें पूरब से पश्चिम की ओर जाता जान पड़ता है। दरअसल यह तारामंडल स्थिर है। पृथ्वी ही अपनी धुरी पर चक्कर लगाती है।”
सूर्यग्रहण सम्पन्न होने के साथ ही पूरे पाटलिपुत्र में शोर मच गया – आर्यभट का मत सही है। पुराणों और धर्मग्रंथों की बात गलत है! पाटलिपुत्र की प्रजा ने आर्यभट को आदर से सिर-माथे उठा लिया।(अगला पाठ – आर्यभट – 5 : भारत में वैज्ञानिक चिंतन के नये युग की शुरुआत)

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