सिटी पोस्ट लाइव, बलरामपुर: जनपद के तुलसीपुर में स्थापित शक्ति पीठ मंदिर देवीपाटन अपने धार्मिक, ऐतिहासिक महत्व के चलते पूरे दुनिया में प्रसिद्ध है। 51 शक्तिपीठों में प्रधान पीठ मंदिर देवीपाटन में दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंच शक्ति की उपासना करते हैं। शक्तिपीठ देवीपाटन महादेव व सती के प्रेम का प्रतीक तो है ही, यह गुरु गोरक्षनाथ की तपोस्थली के रूप में भी विख्यात है।महाभारत कालीन अंग देश के राजा कर्ण ने यही स्थित सरोवर में स्नान कर सूर्य देव का पूजन किया करते थे, जो आज भी उन्हीं के नाम पर सूर्य कुंड के रूप में विख्यात है। मान्यता यह भी है कि माता सीता का पाताल गमन भी यहीं पर हुआ था, जो आज भी यहां पाताल चबूतरा बना हुआ है, जिसका पूजन श्रद्धालु नित्य करते हैं। यहां पूरे वर्ष मेले की स्थिति रहती है। शारदीय व चैत्र नवरात्रि में दूरदराज से श्रद्धालु यहां पहुंच अपने परिवार के सुख समृद्धि के लिए पूजन पाठ करते है।
कोरोना काल में रेल बंद होने तथा सीमित संसाधनों के चलते श्रद्धालुओं का आवागमन काफी कम हो गया था लेकिन अनलॉक 5 के बाद श्रद्धालु का आवागमन पुनः शुरू हो गया है। कोविड—19 महामारी को लेकर 17 अक्टूबर से शुरु हो रहे शारदीय नवरात्रि पर जुटने वाले श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को लेकर मंदिर तथा जिला प्रशासन ने तैयारियां शुरु कर कर दी है। मंदिर पर जिलाधिकारी की अगुवाई में मंदिर सुरक्षा, श्रद्धालुओं के आवागमन को लेकर साफ सफाई, स्वास्थ्य, पेयजल को लेकर बैठक हो चुकी है। देवीपाटन पीठाधीश्वर मिथिलेश नाथ योगी ने बताया कि कोविड-19 को देखते हुए वृहद स्तर पर तैयारी की गई है श्रद्धालुओं को सोशल डिस्टेंसिंग के साथ दर्शन पूजन कराई जाएगी।
शक्ति पीठ देवीपाटन की धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व
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कहा जाता है कि माता सती के पिता महाराजा दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में महादेव का भाग न देख माता सती कुपित होकर यज्ञ कुंड में कूद अपनी आहुति दे दी थी। यह सुन महादेव कुपित हो यज्ञशाला को विध्वंस कर, व्यथित हो माता सती का शव कंधे पर रख ब्रह्मांड में विचरण करने लगे थे। महादेव को दुखी देख भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के अंग को काटने लगे। कहा जाता है कि सुदर्शन चक्र से माता सती का शरीर 51 जगह गिरा, जहां-जहां माता सती के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए। माना जाता है कि देवीपाटन में माता सती का वाम स्कंध पट सहित गिरा था। पट सहित गिरने से यहां स्थान मां पाटेश्वरी देवी के नाम से विश्व विख्यात हुआ। पाटेश्वरी देवी के नाम पर इस क्षेत्र का नाम देवीपाटन पड़ा। देवीपाटन के नाम पर ही मंडल का नाम देवीपाटन मंडल है।
महायोगी गुरु गोरक्षनाथ जी ने रमाई की धूनी
कहा जाता है कि यहां पर माता सती के वहां वाम स्कंध गिरने के उपरांत महायोगी गुरु गोरक्षनाथ यहां पहुंच धूनी रमाई थी। आज भी उनके द्वारा चलाई गई अखंड धूनी जल रही है। श्रद्धालु मां पाटेश्वरी के दर्शन पूजन उपरांत गुरु गोरक्षनाथ के द्वारा चलाए गए इस धूनी का दर्शन पूजन करते है। वर्तमान में यह पीठ गोरक्षनाथ मंदिर गोरखपुर के द्वारा मंदिर की व्यवस्था संचालित है। यहां के पीठाधीश्वर मिथिलेश नाथ योगी है।
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