साइबर अपराधियों के लिए फर्जी खाते खुलवाते हैं बिहार के दलाल
सिटी पोस्ट लाइव : पुलिस की आंखों में धूल झोंकने के लिए साइबर अपराधी अब फर्जी नाम-पता के आधार पर बैंकों में खाते खुलवाने के लिए मोटी रकम खर्च कर रहे हैं। पहले वे दूसरों के खातों से राशि टपाने के लिए फर्जी सिम का उपयोग करते थे अब ऑनलाइन ठगी की राशि को जमा करने के लिए ऐसे ही फर्जी खातों का सहारा ले रहे हैं। इस कार्य में दलाल उन्हें मदद करते हैं। एक-एक अपराधी के पास आठ-दस एकांउट हैं।साइबर अपराधियों की इस साजिश का खुलासा पुलिस के हत्थे चढ़ जेल गए पप्पू मंडल ने पूछताछ में किया है। पुलिस ने पप्पू मंडल को नारायणपुर में एसबीआइ की एटीएम से फर्जी कार्ड के जरिए पैसे निकालने के दौरान 10 अक्टूबर को गिरफ्तार किया था। पूछताछ के बाद उसे गुरुवार को जेल भेज दिया गया। पुलिस की मानें तो पप्पू के पास से विभिन्न बैंकों के सात एटीएम कार्ड बरामद किए गए। ये कार्ड केनरा, इलाहाबाद, ओरिएंटल, यूनाइटेड बैंक आदि के थे। इन एटीएम कार्डो को निर्गत करवाने के लिए सात फर्जी नाम-पते पर बिहार के विभिन्न जिलों से खाते खुलवाए गए थे। प्रति खाता के एंवज में लखीसराय व मुंगेर आदि जिलों के दलालों को 15 हजार रुपये दिए गए थे। पुलिस को उसने दलालों के नाम भी बताए हैं पर अनुसंधान प्रभावित होने की वजह से गोपनीयता बरती जा रही है। बता दें कि छह माह पूर्व भी खुलासा हुआ था कि फर्जी बैंक खाता खुलवाने के लिए साइबर अपराधी दस-दस हजार रुपये दलालों को दे रहे हैं। अब यह राशि बढ़कर 15 हजार रुपये हो गई। पिछले साल ही मिहिजाम के निलदाहा गांव की आधा दर्जन आदिवासी महिलाओं को योजना के नाम पर दलालों ने उनके खाते खुलवाए थे। फिलहाल वह दलाल मुंबई पुलिस की गिरफ्त में है।
ग्रामीणों को इस तरह झांसा देते दलाल करमाटांड़ व नारायणपुर के साइबर अपराधियों के लिए बैंक खाता खुलवाने जिम्मेदारी बिहार में कई दलालों ने संभाल रखी है। वे भोले-भाले ग्रामीणों को योजना का लाभ दिलाने का झांसा देकर उनसे संबंधित आवेदन पत्र पर हस्ताक्षर करवाते हैं। एक ग्रामीण से तीन-चार आवेदनों पर हस्ताक्षर करवाए जाते हैं। उसी में से एक आवेदन में यह भी उल्लेख रहता है कि संबंधित बैंक का एटीएम कार्ड का उपयोग अन्य व्यक्ति करेगा। इस तरह ग्रामीणों को तबतक फर्जीवाड़े का पता नहीं चलता जब तक लेनदेन की शिकायत पुलिस तक नहीं पहुंच जाती। योजना के नाम पर दिए जाते पैसे झांसा देकर कर ग्रामीणों से खाता खुलवाने के बाद साइबर अपराधी कुछ माह तक उसी दलाल के जरिए कुछ रुपये संबंधित ग्रामीणों को भेजवाते हैं। घर बैठे रुपये मिलने से वे बैंक तक सच्चाई का पता करने भी नहीं पहुंचते। इधर अपराधी दूसरों के खातों से ऑनलाइन रुपये उड़ाकर उसमें जमा व निकासी करते रहते है। बताया जाता है कि छह माह या साल भर बाद ऐसे खातों को ब्लॉक कर दिए जाते हैं। पुलिस के पास ऐसे ही मामले आए है कि रुपये नहीं मिलने पर वास्तविक खाता धारक जब बैंक पहुंचता है तो तब उसे इस खेल का पता चलता है। गामीणों को जागरूक होना जरूरी है। योजना का लाभ दिलाने के नाम पर बगैर छानबीन किसी आवेदन में हस्ताक्षर नहीं करें। साइबर अपराधी ग्रामीणों के नाम पर बैंक खाता खुलवाकर उसमें ठगी की राशि जमा व निकासी करते हैं। यहां के साइबर अपराधियों का बैंक खाता खुलवाने का ¨लक बिहार के जिलों से लेकर दिल्ली तक का खुलासा पुलिस जांच में हो चुका है। पप्पू मंडल ने सात फर्जी खाते बिहार के दलालों के सहयोग से खुलवाए थे। पुलिस जांच कर रही है। सुनील चौधरी, साइबर थाना प्रभारी सह इंस्पेक्टर।
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