सिटी पोस्ट लाइव, देवघर: श्रमिक स्पेशल ट्रेन से अबतक सत्रह हजार प्रवासी श्रमिक देवघर लौटे हैं जबकि पैदल और विभिन्न माध्यमों से भी श्रमिकों के पहुँचने की खबर है जिनमेंतो कितने ही ऐसे हैं जो बाहर के राज्यों से आकर चुपचाप अपने घरों में रह रहे हैं। श्रमिक स्पेशल ट्रेन से आये इन श्रमिकों को जसीडीह स्टेशन पर उतारकर उन्हें उनके जिलों में भेज दिया गया है। केरल के त्रिवेंद्रम, एर्नाकुलम,कोयम्बटूर से कुल 5755, गुजरात के सूरत से कुल 5845,तेलांगना से 1567, कर्नाटक से 1313,हैदराबाद से 1602, मुम्बई ठाणे से 1402 श्रमिक शामिल हैं। ज्ञात हो कि गत 4 मई से आरम्भ इस श्रमिक स्पेशल ट्रेन के माध्यम से देवघर जिले से कुल आगंतुक श्रमिकों की संख्या भी अच्छी-खासी रही है। उल्लेखनीय है कि त्रिवेंद्रमसे 4 मई को 5 , 7 मई को केरल के ही एर्नाकुलम से 130, 8 मई को गुजरात के सूरत से 20, केरल से 130, कोयम्बटूर से 118, तेलंगाना से 117, कर्नाटक से 1313, हैदराबाद से 208, सूरत से 1, सूरत से अन्य ट्रेन द्वारा 21, मुम्बई ठाणे से 3, फिर सूरत से ही 47 श्रमिक शामिल हैं जिनके आगमन के बाद जिला प्रशासन ने सभी को गृह एकान्तवास कराया हुआ है।
यहां पर यह उल्लेखनीय है कि अकेले देवघरजिले के विभिन्न प्रखण्डों से तकरीबन एक लाख लोगों से ज्यादा इनकी संख्या है जो रोजगार के लिए अन्य राज्यों में पलायन कर चुके हैं जिनको वापस लाना अपने-आप में अत्यंत कठिन कार्य बना हुआ है। दीगर बात है कि देवघर जिले के ये मज़दूर इस कोरोना काल में हरहाला में अपने गांव लौट जाना चाहते हैं और वे लगातार अपने घरवालों से सम्पर्क में बने हुए हैं किंतु तकनीकी कठिनाइयों के कारण वैसे मज़दूर अभी आ पाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। क्योंकि अधिकांशतः मज़दूरों के परिजन अनपढ़ किस्म के हैं जिनके लिए ऑनलाइन आवेदन करना टेढ़ी खीर बना हुआ है। अन्य राज्यों से अपने गृह वापस लौटने की मानसिकता रखने वाले सभी मज़दूर उन राज्यों के कुशल मज़दूरों की श्रेणी के हैं जिनके वापस लौट आने से उन राज्यों के उद्योग-धंधे का नुकसान होने के साथ ही उनके कृषि कार्य भी प्रभावित होने की संभावना जहां बढ़ी है वहीं देवघर जिले के लिहाज से देखा जाय तो उनके लिए रोजगार उपलब्ध कराना बड़ी जिम्मेवारी वाला काम है। विदित है कि देवघर जिले में कृषि के अवसर सीमित हैं और असिंचित भूमि पर कृषिकार्य में इन प्रवासी श्रमिकों का नियोजन सम्भव नहीं । दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि स्किल्ड श्रमिकों को शायद ही कृषि कार्य रास आये ऐसे में स्किल्ड अनुरुप रोजगार देना जिला प्रशासन के बूते नहीं लगता। हालाँकि जिला प्रशासन दावे कर रहा है कि सभी प्रवासी मज़दूरों को उनके स्किल्ड के अनुसार रोजगार उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता उनकी है जबकि वास्तविकता के धरातल पर यह मुमकिन नहीं लगता।
प्रधानमंत्री के स्वदेशी को बढ़ावा देने की नीति को अमल में लाया गया तो संभव है कि स्वदेशी उद्योग से जुड़े प्रवासी श्रमिक एक बार लघु-मध्यम उधोगों में रम जाएं और पलायन की प्रवृति छोड़करऐसे कार्यों में जुट जाएं क्योंकि जो प्रवासी श्रमिक वापस लौटे हैं वो दुखदायी अनुभवों के कारण अब वापस लौट कर अन्य राज्यों की ओर नहीं जाना चाहते। फिलहाल देवघर के सभी प्रवासियों के सकुशल वापस लौट जाने के लिए उनके स्वजन काफी बैचेन हैं इनके पूर्ण वापसी के बाद ही स्थिति का आकलन होना सम्भव है कि प्रवासी श्रमिकों की समस्या से जिला प्रशासन कैसेनिपटती है।
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