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आदिवासी कभी भी वनों की अवैध कटाई नहीं कर: अर्जुन मुंडा

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रांची/नयी दिल्ली: आदिवासी समुदाय के विकास और सशक्तिकरण के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की नेतृत्व वाली सरकार प्रतिबद्ध है. आदिवासियों के सर्वांगीण विकास और वन अधिकार अधिनियम को सही मायनों में लागू करने के लिए आज जनजातीय कार्य मंत्रालय एवं वन,पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का संयुक्त घोषणा पत्र एक ऐतिहासिक कदम है।

 

वनाधिकार को लेकर जनजाति समुदाय औपनिवेशिक काल से संघर्ष करता आया है।अंग्रेजों ने वनों से जुड़े वैसे कानून बनाये,जो कि सिर्फ व्यवसाय हित से जुड़े थे।वहां रहनेवाले जनजातियों के हित मे कुछ नहीं सोचा।आज के इस संयुक्त घोषणा पत्र से देश के विभिन्न हिस्सों के जंगल में रहनेवाले जनजाति भाई बहनों को व्यक्तिगत या सामुहिक वनाधिकार के माध्यम से उन्हें नैसर्गिक जीवन जीने की सुविधा मिलेगी। आदिवासी हमेशा प्रकृति के साथ तारतम्य स्थापित कर जीते हैं।उन्हें इससे अलग नहीं किया जा सकता है।वह कभी भी वनों की अवैध कटाई नहीं करते। परंपरा तो ये है कि खेती किसानी के लिए लकड़ी की आवश्यकता होने पर वह सबसे पहले वनदेवता की पूजा करते हैं, तब सूखी लकड़ी पर हाथ लगाते हैं। उनका भोजन, आजीविका और संस्कृति वनों पर निर्भर है, इसलिए उन्हें इससे अलग नहीं किया जा सकता है। पर्यावरण के असली संरक्षक वनवासी ही हैं।वनवासी ही अधिक से अधिक वनों का आच्छादन कर सकते हैं।

 

गत सात वर्षों में 5 लाख से अधिक पट्टे वनवासियों और आदिवासियों को दिये गये हैं। पहले सिर्फ 10 लघु वनोपज को एमएसपी  मिलता था, वहीं आज मोदी सरकार ने यह संख्या बढ़ा कर 86 कर दी है। ट्रायफेड वन धन केंद्रों के माध्यम से सरकार जनजातीय समुदाय के लोगों की आजीविका में योगदान कर रही है।

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