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अध्यक्ष पद को संसदीय पद्धति में सरकार और प्रतिपक्ष का पद नहीं समझा जाता है: रवीन्द्रनाथ

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अध्यक्ष पद को संसदीय पद्धति में सरकार और प्रतिपक्ष का पद नहीं समझा जाता है: रवीन्द्रनाथ

सिटी पोस्ट लाइव, रांची: झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष रवीन्द्रनाथ महतो ने कहा कि अध्यक्ष के पद को संसदीय पद्धति में सरकार और प्रतिपक्ष का पद नहीं समझा जाता है। इस पद को आरंभ से ही निष्पक्षता का पर्याय मानने की परंपरा रही है। विधानसभा अध्यक्ष चुने जाने के बाद सदन में मंगलवार को आसन ग्रहण करते हुए महतो ने कहा अब से पहले मैं तकनीकी रूप से किसी खास राजनीतिक दल से सम्बद्ध था लेकिन इस आसन पर आते ही मेरी वह राजनीतिक सम्ब्द्धता तकनीकी रूप से समाप्त हो गयी है। उन्होंने कहा कि सदन से बाहर की दुनिया में भले ही मेरी पहचान झारखंड मुक्ति मोर्चा के एक सदस्य के रूप में बनी रहेगी लेकिन सदन के भीतर मेरे लिए न्याय के तराजू पर पक्ष और विपक्ष दोनों का पलड़ा बराबर रहेगा। राजनीति में मैंने अपने कद को हमेशा छोटा समझा है। इस सभा में मैं अपने तीसरे कार्यकाल के लिए निर्वाचित होकर आया हूं। सभाध्यक्ष ने कहा कि मेरे लिए यह सौभाग्य की बात है कि सदन में दो ऐसे सदस्य मौजूद हैं, जिन्होंने अध्यक्ष के आसन को सम्पूर्ण निष्ठा से संभालने का काम किया है। संयोग से आज इनमें से एक आलमगीर आलम सत्ता पक्ष में है तो सीपी सिंह प्रतिपक्ष में हैं। अध्यक्ष के रूप में इन दोनों का कार्यकाल शानदार रहा है। विपरीत परिस्थितियों में इनके द्वारा लिये गये निर्णय मेरे लिए नजीर के समान होगा।

उन्होंने कहा कि बाबूलाल मरांडी ने इस राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री होने का गौरव पाया है। पांचवी विधानसभा के लिए निर्वाचित होकर आज हमारे बीच हैं। न्याय और विवेकयुक्त आचरण इनकी विशेषता रही है। उन्होंने कहा कि वह समय-समय पर इनके मार्गदर्शन की भी अपेक्षा रखते हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें खुशी है कि आज का झारखंड हेमंत सोरेन के युवा नेतृत्व के हाथों में है। वे राज्य की जनता का अटूट विश्वास अर्जन कर पाने में कामयाब हुए हैं। इनके नेतृत्व में इस राज्य का चतुर्दिक विकास होगा। इसकी कामना वह इस आसन से करते है।

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