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भूख के अंधेरे में राजनीतिक सजगता की रोशनी

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भूख के अंधेरे में राजनीतिक सजगता की रोशनी

सिटी पोस्ट लाइव, मेदनीनगर: पलामू जिले की राजनीतिक पृष्ठभूमि विख्यात रही है और यहांं के लोग आजादी के समय से काफी जागरूक रहे हैं। इस भूमि पर महात्मा गांधी का भी आगमन हो चुका है। पिछला इतिहास को झांकने पर पता चलता है कि यहां के लोग राजनीतिक रूप से काफी जागरूक रहे हैं। पलामू की जनता ने कांग्रेसी नेताओं की एकमात्र आवाज पर उसका साथ दिया था लेकिन इतने वर्ष बीतने बाद भी आज अधिसंख्य लोग बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझते हुए नज़र आते हैं। वहीं दूसरी ओर कई जनप्रतिनिधि और नेताओं की स्थिति बेहतर होती चली गई। यहां की शिक्षा की स्थिति किसी से छिपी हुई नहीं है। पलामू की धरती पर कई आंदोलन होने के बाद भी इस क्षेत्र में सिर्फ समस्याएं ही समस्याएं हैं। यही कारण है कि कांग्रेस के स्थान पर आज भारतीय जनता पार्टी इस क्षेेत्र में अपनी मजबूत पहचान बना ली है। राजनीतिक पृष्ठभूमि का पिछला का अवलोकन करने पर कई बातें सामने आती हैं। वर्ष 1921 को बसंत पंचमी के अवसर पर कांग्रेस कमेटी की ओर से रचनात्मक कार्य की शुरुआत करने के लिए कोशियारा शेख जी के खपरैल घर में राष्ट्रीय विद्यालय खोला गया था। उच्च विद्यालय में विंदेश्वरी पाठक, चंद्रिका प्रसाद, देवनारायण मेहथा, महावीर प्रसाद व गणेश प्रसाद वर्मा अवैतनिक शिक्षक के रूप में पदस्थापित थे। उक्त अवैतनिक शिक्षक कांग्रेस के प्रचारक भी थे। उस समय उक्त लोगों द्वारा लगभग 3,000 सदस्य बनाए गए थे। इस कार्य में विंदेश्वरी पाठक, हजारी लाल वैध, नवमीलाल, डॉ हामिद, तुलसी तिवारी, विफई भगत, रामदेनी राम, महावीर प्रसाद, गनौरी सिंह, चंद्रिका प्रसाद, पंडित भागवत पांडे, शेख मोहम्मद हस, गयादत्त दुबे, गोकुल नाथ दुबे, रामधनी सिंह चेरो, ननकू सिंह, संगाराम परहिया, पर आया रामधनी सिंह खरवार सहित कई कर्मठ कार्यकर्ता जी जान से जुटे हुए थे। 1924 में महात्मा गांधी का आगमन डाल्टनगंज में हुआ था। महात्मा गांधी ने स्थानीय शिवाजी मैदान में एक सार्वजनिक सभा को संबोधित किया था। इसके बाद यहां के लोगों की आस्था कांग्रेस के प्रति उम्र पड़ी थी। उस समय करो या मरो का प्रस्ताव पारित हुआ था। इसकी आवाज जमकर पलामू में उठी थी और यहां के अधिसंख्य स्कूलों के विद्यार्थियों ने तिरंगा झंडा फहरा दिया था। 1942 के आंदोलन में यहां के लगभग 400 आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर जेल में ढूंस दिया गया था, इनमें ज्यादातर आदिवासी व हरिजन छात्र शामिल थे।

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