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कठौतिया कोल माइंस मामले में दायर एसएलपी स्वीकृत, जुलाई में होगी सुनवाई

करोड़ों के राजस्व चोरी में आईएएस अधिकारी पूजा सिंघल समेत 13 हैं आरोपी

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कठौतिया कोल माइंस मामले में दायर एसएलपी स्वीकृत, जुलाई में होगी सुनवाई

सिटी पोस्ट लाइव, रांची: पलामू जिले की कठौतिया कोल माइंस के लिये जमीन खरीद की प्रक्रिया में हुई गड़बड़ी पर सुप्रीम कोर्ट जुलाई माह में सुनवाई करेगी। इस मामले को लेकर दायर स्पेशल लीव पिटीशन(एसएलपी) सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। पलामू निवासी राजीव कुमार ने एसएलपी दायर किया था। कोर्ट ने एसएलपी को स्वीकार करते हुए पांच माह बाद जुलाई में सुनवाई करने की बात कही है। राजीव कुमार ने हिंडाल्को, उषा मार्टिन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी और पलामू की तत्कालीन डीसी पूजा सिंघल (वर्तमान में कृषि सचिव, झारखंड सरकार के मुख्य सचिव, राजस्व सचिव, कार्मिक सचिव, उदय कुमार पाठक (तत्कालीन भू-अर्जन पदाधिकारी), आलोक कुमार (तत्कालीन सीओ पड़वा), राजीव सिन्हा समेत 13 लोगों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की है। इसमें कंपनी और तत्कालीन डीसी पूजा सिंघल पर करोड़ो रुपये के सरकारी राजस्व का नुकसान पहुंचाने, सीएनटी (छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 कानून) का उल्लंघन कर रैयतों से जबरन जमीन लेने, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने, नाजायज तरीके से खनन करने और रॉयल्टी की चोरी करने के आरोप लगाये गए हैं| याचिका में कहा गया है कि पलामू जिला प्रशासन ने कठौतिया कोल माइंस लेने वाली कंपनी के पक्ष में काम किया। गैर कानूनी तरीके से गरीबों की जमीन ली गई। रैयतों से करीब 500 एकड़ जमीन ली गई। सरकार ने करीब 165 एकड़ जमीन कंपनी को 30 वर्ष के लिए लीज पर दी, जिसमें 82 एकड़ जमीन वन विभाग की थी। जिस जमीन पर कोल माइनिंग हुई, उस पर कृषि कार्य दिखाकर राजस्व की चोरी की गयी। खेती योग्य जमीन को बंजर (टांड़) जमीन दिखाकर अधिग्रहण किया गया। सारे गलत काम पलामू की तत्कालीन डीसी पूजा सिंघल और उनके अधीनस्थ अधिकारियों के सहयोग से किये गए। कंपनी ने 105 करोड़ रुपये जमीन अधिग्रहण के लिए जमा किये थे। उसे वापस लेने के लिए सरकार को आवेदन दिया है, जबकि कंपनी पर अब भी सरकार का 400 करोड़ रुपये बकाया है। याचिक खारिज कर हाईकोर्ट ने लगाया था राजीव पर 50 हजार जुर्माना, सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त किया पलामू जिला की कठौतिया कोल माइंस के लिए सरकार ने 165 एकड़ गैर मजरुआ जमीन कंपनी को दी थी। इसमें से 82 एकड़ वन भूमि थी, जिसे गैर मजरुआ बताकर कंपनी को दी गयी। इसे लेकर राजीव कुमार ने झारखंड उच्च न्यायालय में पीआईएल (जनहित याचिका) दाखिल की थी। उच्च न्यायालय ने इस याचिका को खारिज कर दिया था। साथ ही राजीव कुमार पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया था। झारखंड उच्च न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ राजीव कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया और उच्च न्यायालय के 50 हजार रुपये जुर्माना के आदेश को निरस्त कर दिया। 

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