सिटी पोस्ट लाइव, रांची: राजधानी के मशहूर अधिवक्ता बंसी प्रसाद उर्फ बंसी बाबू अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका बीती रात देहांत हो गया। रांची के चुटिया स्थित स्वर्णरेखा नदी तट पर स्थित श्मसान घाट पर सीनियर अधिवक्ता बंसी प्रसाद का आज दोपहर अंतिम संस्कार किया गया। अंतिम संस्कार में सिर्फ उनके परिवार के सदस्य मौजूद थे।
बंसी बाबू सिविल मामले के बहुत ही माहिर वकील के रूप में प्रख्यात थे। उनके देहांत की खबर से जहां रांची बार एसोसिएशन में शोक की लहर है। वहीं, राजधानी से बाहर के जिलों में इस खबर से मातम है। कई जिलों के वकील अपने केस के सिलसिले में उनसे मशवरा लेने तो आते थे। सिविल कोर्ट के कई जज भी पेंचिदा मामलों में जजमेंट से पहले उनसे सलाह लेकर फैसला सुनाते थे। उनकी मृत्यू से उन्हें चाहने वाले मुवक्किलों को भी भारी नुकसान हुआ है। बंसी बाबू बहुत ही मृदु भाषी और गरीब परवर वकील थे। कई लोगों का केस वो पैसे के लिए बिना ही लड़ते थे। उन्हें इंसाफ दिलाने के लिए लड़ते थे। बंसी बाबू कभी भी किसी को झूठा आश्वासन देकर केस नहीं लिया। इसलिए वकालत की दुनिया के अलावा भी उनकी एक अलग सी पहचान थी।
बंसी प्रसाद का जन्म रांची में एक जून 1934 को हुआ था। उन्होंने डाल्टनगंज जिला स्कूल से 1951 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। इसके बाद पटना विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि हासिल की। स्नातक करने के बाद वे रांची में कल्याण विभाग में इंस्पेक्टर के पद पर बहाल हो गये। 1965 मैं उनका स्थानांतरण हजारीबाग कर दिया गया लेकिन रांची नहीं छोड़ने के मोह के कारण उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उन्होंने छोटानागपुर लॉ कॉलेज से गोल्ड मेडल के साथ विधि की परीक्षा पास कर ली और 1968 में देवी बाबू वकील के सानिध्य में रांची सिविल कोर्ट में वकालत शुरू की। वे ऐसे वकील थे कि बिहार, छत्तीसगढ़ और मघ्य प्रदेश के कई सीनियर वकील कानून संबंधी पेचीदगियों को सुलझाने के लिए उनके पास सलाह लेने के लिए आया करते थे। वे पान बहुत खाते थे और कभी भी लोगों ने क्लाइंट द्वारा दिये गये पैसों को गिनते हुए उन्हें नहीं देखा। उच्चतम न्यायालय के जस्टिस एम वाई इकबाल ने रांची सिविल कोर्ट परिसर में बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा था कि बंसी बाबू मेरे भी गुरु रहे हैं। मैंने इनसे बहुत कुछ सीखा है।
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