पालमू प्राकृतिक खुबसूरती के लिए जाना जाता है, छिपे हैं कई ऐतिहासिक रहस्य
सिटी पोस्ट लाइव, मेदनीनगर: पालमू प्रमंडल प्राकृतिक खुबसूरती के लिए जाना जाता है। यहां के अधिसंख्य इलाके में कई ऐतिहासिक तथ्य छिपे हुए हैं तो वहीं, यहां का चप्पा-चप्पा प्राकृतिक हुस्न से पूरी तरह से लबरेज है। हम बात करते हैं झारखंड के नैनीताल माने जाने वाले पलामू इलाके की पलामू स्वतंत्र जिले के रूप में 1892 में अस्त्वि में आया। इससे पूर्व यह लोहरदगा जिले का एक अनुमंडल था। साधारणतः इस जिले का आकार एक सामांतर चतुर्भुज जैसा है। संपूर्ण जिला जंगल व पहाड़ों से आच्छादित है। प्राकृतिक दृश्य के लिहाज से इस जिले को यदि प्राकृति का विशेष क्रीड़ा स्थल कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। अंग्रेजों ने यहां की मनोरम प्राकृतिक छटा से प्रभावित होकर ही नेतरहाट पहाड़ को ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में परिवर्तित किया था। कई तत्कालीन गर्वनर बड़े दिन की छुट्टियां प्रायः यहीं आकर व्यतीत करते थे। पहाड़ी शिखर नीची भूमि हरे.भरे वन टेढ़ी मेढ़ी पगडंडियां व छलछल व कलकल करती नदियां सभी मिलाकर एक अपूर्व सौंदर्य उत्पन्न करती हैं। ग्रीष्म, वर्षा, शीत व बसंत में इस वन प्रांत की शोभा ऋतु विशेष के अनुसार अपने झुलसती दोपहरी में नंगे पर्वत व सूखे व पत्तारहित पेड़ यदि उदासी व मायूसी का वातारण उत्पन्न करते हैं तो सावन भादो में धरती की कोरबा से लताओं व नवजात पौधों का उग आना बड़ा ही मनोहरी दृष्य उत्पन्न करता है। साथ की पर्वत के इर्द.गिर्द फैली हरियाली एक नये उमंग व उत्साह का सर्जनकरती है। ऋतु राज बसंत मे साखू फूलों की मांदक गंध प्लास की लालिमा व नदियों .झरनों के कल्लोल व उमंग की चेतना को तरंगित करती है इस भू.खंड का नाम पलामू कब पड़ा,यह अब तक प्रमाणित नहीं हो सका है। पलामू में पाला व मू दो शब्द हैं। पला बर्फ को कहते हैं मू का अर्थ है जमीन माघ व पूस के महीनों में यहां पाला अधिक पड़ता है। भयंकर पाला के कारण सभी जीव जंतु पेड़, पौधे ठिठुर जाते हैं। अतः यहां के लोगों ने इस भूखंड का नाम पलामू रखा। द्रविड़ भाषा के अनुसार भूखंड में जो जातियां आयी और बसी सुदूर स्थानों से भागकर ही इस भूखंड में उन्हें शरण मिला। पाला का अर्थ पलायान अर्थात भागा हुआ भी है. एक दूसरे अन्वेषक का विचार है कि औरंगा नदी के तट पर स्थित किले में रहनेवालों की कुलदेवी पलमा थी और उसी के नाम पर इस भूखंड का नाम पालामा घोषित कर दिया गया जो कलांतर में पलामू के नाम में परिवर्तित हो गया। इस धारणा की पुष्टि पलामू जिले के खंडहर में प्राप्त शिलालेख की इस पंक्ति से होती है। पालामा कुल देवता विजयते डालटनगंज को 1861 में छोटानागपुर के आयुक्त कर्नल डालटनगंज ने स्थापित किया था। इससे पूर्व इस कस्बे का नाम बिजराबाग था। डालटनगंज का एक योजनाबद्ध तरीके से कोयल नदी के किनारे बसाया गया। नदी के दूसरे तट पर शाहपुर कस्बा है। इसी शाहपुर में कोयल नदी किनारे एक ऐतिहासिक महत्व काफिला शाहपुर अवस्थित है। इस किले का निर्माण 1772 में पलामू राजा के दीवान राजा रण बहादूर राय ने कराया था। शाहपुर किला अंग्रेजी सेना की गोलियों का तोपों की मार।.झेलने के बाद आज तक तन कर खड़ा है। ब्रिटिश शासन के विरूद्ध हुए संघर्षों में इस किले की भूमिका को इतिहासकार नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं।उत्तरप्रदेश के सोनभद्र के महल में प्रवेश के सुरगुजा जिले की सीमा से सटा पलामू संभवत देश का सर्वाधिक सूखा अभावग्रस्त पिछड़ा व गरीब जिला प्रारंभ से ही रहा है।यहां के निवासियों को प्रायः हर दूसरे साल सुखाड़ व अकाल का सामना करना पड़ रहा है।सन् 1897, 1900 व 1966-67 में पलामू में भयंकर अकाल पड़ा था जिसकी याद आते ही लोग आज भी सिहर उठते है।
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