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मिथिला के विकास की नहीं है किसी को फिक्र, बोर्ड तय करेगा मिथिला का भविष्य

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मिथिला के विकास की नहीं है किसी को फिक्र, बोर्ड तय करेगा मिथिला का भविष्य

सिटी पोस्ट लाइव स्पेशल : मिथिला विकास बोर्ड एक ऐसा विचार है जो मेरे हिसाब से मिथिला के वर्तमान राजनीतिक-आर्थिक-वास्तविक और वैकासिक हालात एवं जरूरत पर एकदम फिट बैठता है। अभी हाल में ही प्रेजिडेंट ने हैदराबाद-कर्नाटक के 6 पिछड़े जिलों के लिए एक डेवलपमेंट बोर्ड के गठन की मंजूरी दी है। गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन भी कुछ ऐसे ही फंक्शन करता है। महाराष्ट्र में भी विदर्भ, मराठावाड़ा और शेष महाराष्ट्र नामित तीन डेवलपमेंट बोर्ड को मंजूरी है जो अपने-अपने इलाके के डेवलपमेंट सम्बंधित जरूरतों को पूरा करने के लिए राज्य से स्वतंत्र हो के या उसके कॉर्डिनेशन में काम करता है।

ये डेवलपमेंट बोर्ड सामान्यतया राज्य के गरीब इलाकों या विशिष्ट पहचान वाले इलाकों के लिए बनाया जाता है ताकि विकास समावेसी हो और उस क्षेत्र की कम्पेरेटिव सहभागिता रह पाए। 6 करोड़, 20 जिला,अलग भाषा-संस्कृति कुल मिलाकर मिथिला को अलग डेवलेपमेंट कॉउंसिल के लिए एकदम उपयुक्त बनाता है। मिथिला के जिलों की स्थिति का कम्पेरेटिव विश्लेषण कीजिए तो हालात मुंह खोल के सामने आ जाएगा। करीब सिर्फ 37.5 प्रतिशत एवरेज लिटरेसी रेट है मिथिला के 20 जिलों का। गरीबी-भुखमरी-कुपोषण-बेरोजगारी-पलायन, उद्योग-धंधों और मिलों का बन्द होना, शिक्षा, स्वास्थ्य और संचार सुविधाओं की कमी, कृषि-यातायात, मानव विकास जीवन स्तर का निचले स्तर पर होना, ये सब जरूरत का एहसास करवाता है एक ऐसे स्वतंत्र बोर्ड या काउंसिल की जो सिर्फ मिथिला के विकास पर काम करे। यदि केंद्र कोई सहायता या विशेष पैकेज भेजता है तो ये इस बोर्ड को काम मिले, ना की राज्य सरकार उसे कहीं और खर्च कर दे।

‘मिथिला डेवलपमेंट बोर्ड (MDB)’ क्षेत्र के 20+ पिछड़े जिलों की जरूरत और वाज़िब हक़ है। देश के सबसे पिछड़े जिलों की लिस्ट में अररिया, सहरसा, मधेपुरा, कटिहार, पूर्णिया, बांका, जमुई, बेगुसराय, शिवहर, खगरिया, सुपौल, किशनगंज आदि का नाम सबसे ऊपर आता है। एक आम मैथिल सलाना अन्य जगह के एक औसत भारतीय का एक तिहाई कमाता है। पर कैपिटा इनकम की दृष्टि से एक मैथिल किसी औसत मराठी का चौथाई, गुजराती का पांचवां, दिल्ली का दशवां, केरला का छठवाँ हिस्सा कमाता है। मिथिला क्षेत्र के जिलों का पर जीडीपी पर कैपिटा नोर्थईस्ट राज्यों के औसत से भी लगभग आधा है।

क्षेत्र में ना एयरपोर्ट है, ना सुव्यवस्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय या केंद्रीय अस्पताल है, ना इंफ्रास्ट्रक्चर नजेरोजगार, नाहैवी इंडस्ट्री ना खाद्य-डेयरी-मत्स्य-कृषि आधारित उद्योग या न ही टेक्निकल इंडस्ट्री। कृषि बन्द हो रही है। लोग पलायन कर रहे हैं, ना कला-संस्कृति-भाषा बढ़ पाई और न टूरिज्म। यदि महाराष्ट्र में मराठवाड़ा, विदर्भ और गोरखालैंड, हैदराबाद, मिज़ोरम आदि जैसे जगहों पर पिछड़े जिलों के लिए ऑटोनॉमस डेवलपमेंट बॉडी बन सकता है तो मिथिला को उसका हक़ क्यों नहीं दिया जा रहा है?

केंद्र और राज्य की हर सरकार ने मिथिला को केवल इग्नोर किया है, लेबर जोन बना के छोड़ दिया है। 2 दिसम्बर को राज मैदान दरभंगा में मैथिल जनमानस का जनसैलाब उतरेगा। ऑटोनॉमस ‘मिथिला डेवलपमेंट बोर्ड’ की माँग को लेकर लॉन्ग मार्च में। 5 अगस्त 2018 को सड़क से दिल्ली संसद तक घेराव, जाम किया गया था, लेकिन केंद्र और राज्य सरकार कान में तेल लेकर अनसुना कर दिया था, जिसके विरोध 1 अक्टूबर 2018 को मिथिला बंद किया गया था, जिसका वयापक असर देखने को मिला।सरकार पर, सभी प्रिंट मीडिया,इलेक्ट्रॉनिक मीडया का साथ मिला था। लेकिन ये सुस्त शाषण को जगाने के लिए 2 दिसम्बर को दरभंगा राज मैंदान में में अबकी मैथिलवासी जी-जान से लड़ेंगे।

क्या है मिथिला डेवलपमेंट बोर्ड ?

1. उत्तर बिहार के 20 जिला को विकसित कर मिथिला की कल्पना।
2. AIIMS, IIT, IIM, IT & Technology Park, Textile Park की स्थापना।
3. स्पेशल एजुकेशन ज़ोन (SEZ) व हरेक जिला में मेडिकल व इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना।
4. बंद उद्योग धंधा का रीवाइवल (चीनी, जुट, पेपर, खाद, सूत, खादी भंडार, सिल्क उद्योग )
5. बाढ़ और सुखार से मुक्ति के लिये कमिटी का गठन
6. सेंट्रल यूनिवर्सिटी की स्थापना व उपलब्ध यूनिवर्सिटी में अच्छी सुविधा।
7. हवाई अड्डा व बेहतर रेलवे-रोड नेटवर्क।
8. टूरिज़्म, कल्चर और भाषा के सम्बर्हन हेतु बजट
9. कृषि आधारित उद्योग, डेयरी, मत्स्य पालन, कुक्कुट पालन आदि के लिये व्यापक कार्ययोजना ।
10. महिला शक्ति का उपयोग हेतु एक व्यापक मैन्युफैक्चरिंग हब ।
वाकई मिथिला विकास बोर्ड की अब जरूरत है। यही बोर्ड मिथिलावासी के विकास और उद्धार के पट खोल सकता है।

सहरसा संकेत से संकेत सिंह की स्पेशल रिपोर्ट

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