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विधायकों को आवास आवंटन में नियमों व परंपरा का पालन हो: बाबूलाल

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सिटी पोस्ट लाइव, रांची: झारखंड में भाजपा विधायक दल के नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने विधायकों को आवास आवंटन में नियम-कानून की अनदेखी कर कर भेदभाव बरतने पर नाराजगी जतायी है। मरांडी ने शुक्रवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर पूर्व से चली आ रही आदर्श परंपरा का पालन करने की सलाह दी है।  मरांडी ने बताया कि राज्य में मंत्रियों एवं विधायकों को किए जा रहे आवास आवंटन में नियम-कानून को पूरी तरह ताक पर रखकर असमानता और भेदभाव किया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार के अधिकारी निरंकुश और स्वच्छंद तरीके से आवास आवंटन कर रहे हैं।
अधिकारियों द्वारा आवास आवंटन में जो रवैया व मापदंड अपनाया जा रहा है, वह उचित नहीं है। इससे राज्य में एक अलग प्रकार की प्रवृति के अंकुरण से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। भाजपा विधायक दल के नेता ने कहा कि देखने में आ रहा है कि कई नए-नवेले विधायकों को उच्च श्रेणी का आवास मुहैया कराया गया है , जबकि दो-दो, तीन-तीन बार जीतकर आने वाले विधायकों को उससे निम्न श्रेणी का आवास आवंटित किया जा रहा है। यहां तक कि कुछ नये विधायकों को मंत्री स्तर तक का आवास दिया जा रहा है। जबकि कुछ पुराने विधायकों को आवास खाली कराकर वर्तमान से छोटे कैटेगरी के आवास में भेजा जा रहा है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार सहित सभी राज्यों में भी आवास आवंटन का नियम बना हुआ है।
उसी नियम के अनुरूप आवासों का आवंटन होता है, होना भी चाहिए। परंतु यहां तो सारे नियमों को ताक पर रखकर संबंधित अफसर आवास आवंटन किया जा रहा है, यह एक काफी गंभीर मुद्दा है। साथ ही वरिष्ठ विधायकों के मान-सम्मान से भी जुड़ा मामला है। मरांडी ने कहा कि कायदे से तो होना यह चाहिए था कि जो भी पुराने विधायक जीतकर आए हैं, उनके आवास के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए था। पूर्व में आंवटित आवास को ही उनके लिए छोड़ देना चाहिए था। परंतु अधिकारी उनको भी परेशान कर रहे हैं। इससे भी आश्चर्य की बात है कि इस प्रकार की भेदभाव वाली कार्रवाई के संबंध में पूछे जाने पर ये अधिकारी इसके लिए मुख्यमंत्री का ही हवाला देते हैं। जबकि पुरानी सरकारों के द्वारा कभी किसी के साथ ऐसा भेदभाव नहीं किया गया। लेकिन अब अपनाया जा तरीका, उचित नहीं है, यह परंपरा अच्छी नहीं है। इसलिए आवास आवंटन में पूर्वाग्रह और दलगत भावना से ऊपर उठकर निर्णय लेनी चाहिए। सत्तापक्ष और विपक्षी विधायकों को अलग-अलग चश्मे से देखने की बजाय वरीयता को मापदंड बनानी चाहिए।

 

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