उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना पर झारखण्ड व बिहार सरकार संयुक्त रूप से कार्य करेगी
सिटी पोस्ट लाइव, मेदिनीनगर: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 5 जनवरी को पलामू जिले के मेदिनीनगर में जिस महत्वकांक्षी परियोजना का शिलान्यास करेंगे उनमें उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना (मंडल डैम) मुख्य है। इस परियोजना का इतिहास भी काफी दिलचस्प है। अधिकांश लोगों को पूरी जानकारी नहीं होने की वजह से इस परियोजना को लेकर लोग संशय में हैं | बताते चलें कि उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना पर झारखण्ड एवं बिहार सरकार के संयुक्त रूप से कार्य करेंगे। उक्त परयोजना को लेकर 26 जून 2006 को दोनों सरकार के बीच हस्ताक्षर भी किए गए थे। झारखण्ड सरकार की ओर से सरकार के सचिव हेमचंद सिरोही और बिहार सरकार की ओर से सरकार के सचिव महाबीर प्रसाद ने हस्ताक्षर किए थे। बिहार और झारखंड की सरकार ने यह स्वीकार किया कि उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना का रुका हुआ कार्य शीघ्र पूरा होना चाहिए | उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना के तहत झारखंड के पलामू प्रमंडल के उत्तरी हिस्से में कोयल नदी पर बांध बनाने का कार्य आरंभ करना था। इस परियोजना का कार्य द्वि-स्तरीय समिति के निर्देशन में संचालित किया जाना है, जिससे झारखंड और बिहार दोनों राज्यों को इसका लाभ हो सके। इस कार्य के लिए जो सामान्य चीजें हैं उनका निर्माण झारखंड सरकार द्वारा किया जाना है, जिसकी लागत राशि के लिए झारखंड और बिहार सरकार दोनों अपना भाग देंगे। बिहार अपना हिस्सा झारखंड सरकार को आर्थिक वर्ष की शुरुआत में देगी। इस परियोजना का अधूरा कार्य शीघ्र पूरा हो सके और इसका लाभ दोनों राज उठा सकें, यही इस परियोजना का मुख्य है | उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना की मुख्य विशेषता बहुत ही महत्वपूर्ण है। समुद्र तल से ऊंचाई और इसकी क्षमता इसे विशेष बनाती है | इस बांध की ऊंचाई 362.00 मीटर की है और इसकी क्षमता 1117 एमसीएम है। बिहार तथा झारखंड सरकार की स्वीकृति से इस परियोजना के सारे अवयव (चीजें) संयुक्त किए गए हैं। यह झारखंड और बिहार सरकार की एक संयुक्त महत्वाकांक्षी परियोजना है। इस परियोजना के तहत बांध निर्माण कार्य, नदी बांध और उसका बंटवारा शामिल है। झारखंड और बिहार की सरकार ने यह स्वीकार किया कि उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना में नदी व्यवस्था में 75 प्रतिशत पानी की उपलब्धता है जो दोनों को लाभ पहुंचाएगी। परियोजना कार्य से दोनों राज्यों को पानी और बिजली की आपूर्ति की जाएगी। इस बांध की बिजली उत्पादन क्षमता 24 मेगावाट होगी। यह परियोजना दोनों राज्यों के बीच संयुक्त निगरानी समिति के द्वारा की जानी है। दोनों राज्य दोनों इस परियोजना का लागत साझा करेंगे। इस कार्य के लिए दोनों राज्य सिविल और मेकेनिकल कार्यों में लगने वाले लागत को भी साझा करेंगे।
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