झारखंड सहित देश-विदेशों में भी पहचान बना चुकी हैं इनकी कलाकृतियां
सिटी पोस्ट लाइव, खूंटी: कुछ भी नहीं है मुश्किल, अगर ठान लीजिये… इस लोकोक्ति को चरितार्थ कर दिखाया है खूंटी जिले के तोरपा प्रखंड के उयूर गुड़िया गांव निवासी थॉमस भेंगरा और उनकी पत्नी जसमनी भेंगरा ने। स्वरोजगार को बढ़ावा देने की सरकार की योजना के तहत अन्य बेरोजगारों को स्वरोजगार की दिशा में अग्रसर होने के लिए थॉमस भेंगरा और पत्नी जसमनी भेंगरा एक प्रेरणा स्रोत बन गये हैं । इनके परिवार में एक बेटा और एक बेटी है। दोनों की पढ़ाई-लिखाई अच्छे स्कूल में हो रही है। थॅामस ने बताया कि कुछ वर्ष पूर्व पति-पत्नी दोनों मेहनत-मजदूरी के लिए तोरपा से रांची गये थे। वहां आरंभ में मेहनत- मजदूरी कर किसी तरह गुजर-बसर करते थे पर, थॉमस के अंदर कुछ अलग करने का जुनून था और यही जुनून ने उनको स्वरोजगार की नयी दिशा दिखायी।
काष्ठकला कृतियों ने बदली थॉमस की जीवन शैली
एक दिन रांची में घूमने के दौरान थॅमस ने बाजार में मिट्टी की मूर्तियां देखीं। घर आ कर उसके मन में आया कि वह भी लकड़ियों की मूर्ति बना सकता है। उसने ठान लिया कि वह लकड़ी से वैसी ही मूर्तियां बनायेगा, जो बाजारों में बिकती हैं। अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ उसने लकड़ी की मूर्तियां बनानी शुरू कर दी। शुरूआत में मूर्तियों को आकार देने में काफी कठिनाई हुई, पर कालांतर में लकड़ी की मूर्ति उनके हाथों की कलाकारी से खूबसूरत बनती गयी। धीरे-धीरे काष्ठकला कृतियों ने थॉमस के परिवार की जीवन शैली ही बदल दी। भगवान बिरसा मुंडा, भगवान गणेश, आदिवासी महिलाओं की अलग-अलग मुद्राओं की मूर्ति, हाथी, अशोक स्तंभ जैसी अन्य आकर्षक काष्ठकला कृतिया अब थॉमस की पहचान बन गयी है। इसी पहचान ने उन्हें स्वरोजगार की ओर अगसर होने को प्रेरित किया। अब वह हर रोज मूर्ति बनाने में 10-12 घंटे समय देते हैं। वह आवास में ही लकड़ी चीरने, काटने, आकृति बनाने से लेकर मूर्तियों को अंतिम रूप देने का काम घर से करते हैं। इनकी मूर्तियां न सिर्फ झारखंड में बल्कि देश के अन्य हिस्सों के अलावा विदेशों में भी अपनी पहुंच व पहचान बना ली है। बाजार प्रतियोगिता के बावजूद थॉमस की कलाकृतियां बेहतर व सुंदर और आकर्षक होती हैं। थॉमस और जसमती द्वारा निर्मित मूर्तियों में उनकी कारीगरी देखते ही बनती है। बाजारों में इनकी कलाकृतियां हाथों-हाथ बिक रही हैं। थाॅमस ने बताया कि 3-4 साल पूर्व उसने झारक्राफ्ट को भी मांग के अनुसार भगवान बिरसा समेत अन्य कलाकृतियों की आपूर्ति की
महीने में 15-20 हजार की हो जाती है आमदनी
थॉमस भेंगरा ने बताया कि वर्तमान में बाजार की मांग के अनुसार उनकी महीने में 15-20 हजार की आमदनी सिर्फ लकड़ी की मूर्ति निर्माण से हो जाती है। उनके इस काम में पत्नी जसमनी भी भरपूर हाथ बंटाती हैं। थॉमस लकड़ी को मशीन से कटिंग करते हैं। उसे बारीकी से आकृति प्रदान करते हैं। मूर्ति की शक्ल तैयार हो जाने के बाद पत्नी जसमनी मूर्ति को फाइनल टच देती हैं। मूर्ति को पाॅलिस कर उसे बाजार में भेजने के लिए तैयार करती हैं। उनका कहना है कि है कि सरकारी मदद मिले तो झारक्राफ्ट के माध्यम से और भी आकर्षक कलाकृतियां लोगों तक पहुंचायी जा सकती हैं।
Comments are closed.