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द्रौपदी मुर्मू का बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के छठे दीक्षांत समारोह में संबोधन

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द्रौपदी मुर्मू का बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के छठे दीक्षांत समारोह में संबोधन

सिटी पोस्ट लाइव,रांची : डाॅ. नरेन्द्र सिंह राठौड़, बिरसा कृषि विष्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. परविंदर कौशल, अधिषद, प्रबंध पार्षद और विद्वत परिषद् के सदस्यगण, कृशि वैज्ञानिकों, षिक्षकों, कर्मियों, मेरे प्रिय विद्यार्थियों, प्रेस व मीडिया के प्रतिनिधियों, देवियों एवं सज्जनों दीक्षान्त समारोह के अवसर पर मैं आप सभी को हार्दिक बधाई देती हूँ, विषेशकर उन विद्यार्थियों को, जो आज उपाधि ग्रहण कर रहे हैं। आज का दिन आपके लिए विषेश एवं महत्वपूर्ण है। दीक्षान्त समारोह का अवसर प्रत्येक विद्यार्थी के जीवन का यादगार क्षण होता है। अब आप एक नये सफर की षुरूआत करने जा रहे हैं। निष्चितरूपेण आपने अपनी मंज़िल तय कर ली होगी, उस दिषा में आपको अनवरत आगे बढ़ना होगा। विष्वविद्यालय में प्राप्त ज्ञान, कौषल और अपनी प्रतिभा एवं आत्मविष्वास से आपको अपने जीवन के नये और चुनौतीपूर्ण दौर का मुकाबला करना होगा। आप जिस किसी भी क्षेत्र का चयन करें, उस क्षेत्र में नवीनतम ज्ञान से अपने को लैस करना होगा, बेहतर अवसर की तलाष में रहना होगा तथा उचित अवसर का उपयोग करना होगा, तभी आप राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान कर सकेंगे। आज हमारे देष ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकृश्ट किया है। हमारे देष की गतिविधियों को पूरी दुनिया गौर से देख रही है और इसे भविष्य की महाषक्ति के रूप में देखा जाने लगा है। भारत दुनिया के सबसे युवा देशों में से एक है। हमारी आबादी का एक बड़ा हिस्सा वैसे लोगों का है, जिनकी उम्र 30 वर्ष से कम है। हमारी यह ऊर्जावान युवाषक्ति पूरी दुनिया के लिए मानव संसाधन बैंक का काम कर सकती है। देष में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और उद्योग का तेजी से हो रहे विकास से रोजगार के जहाँ नये अवसर बराबर सामने आ रहे हैं, वहीं बेरोजगारी की समस्यायें भी एक चुनौती के रूप में सामने है। बढ़ती आबादी के लिए खाद्यान्न उत्पादन भी एक चुनौती है, जिससे निबटने के लिए हमारे कृषि वैज्ञानिक और किसान निरंतर प्रयासरत है। उनके निरंतर प्रयास से ही विगत कई वर्शों से हमारे देष ने कृषि और सम्बद्ध क्ष़ेत्रों में प्रगति की है। हमारा झारखण्ड राज्य कृषि के क्षेत्र में विकासषील है। यहाँ अच्छी वर्शा होती है, किन्तु पठारी भू-भाग होने के कारण वर्षा जल का लगभग 80ः भाग बिना किसी उपयोग के नदी-नालों में बहकर बर्बाद हो जाता है और इसका सिंचाई में बेहतर ढ़ंग से उपयोग नहीं हो पाता है। यहाँ की कृषि भूमि भी ऊबड़-खाबड़, कंकड़ीली और कम गहराई वाली है, जिसमें कम पैदावार होती है। सिंचाई साधनों की कमी के कारण अधिकांष भूमि में वर्श में सिर्फ एक ही फसल हो पाना संभव हो पाता है। कृषि को बढ़ावा देने के लिए जल संरक्षण और प्रबन्धन हमारे लिए एक प्रमुख चुनौती है। खेत का पानी खेत में ही रहे, इस तकनीक को हमें गांव-गांव तक पहुँचानी होगी।
झारखण्ड अनाज के मामले में आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है, यद्यपि इस दिषा में प्रगति हो रही है। कृशि उत्पादन में बढ़ोत्तरी के लिए उन्नत बीज एक महत्वपूर्ण घटक है। झारखण्ड की आबोहवा सालों भर बीज उत्पादन के लिए अनुकूल है। इस दिषा में और ध्यान देकर राज्य की मांग को पूर्ण करते हुए एक दीर्घकालीन नीति निर्मित कर इसे अन्य राज्यों में भी निर्यात किया जा सकता है। झारखण्ड सब्जी उत्पादन के मामलों में आत्मनिर्भर है। यहाँ से पड़ोसी राज्यों को भी सब्जी भेजी जाती है लेकिन कई बार किसानों को उत्पादन लागत से भी कम कीमत पर सब्जी बेचनी पड़ती है। ग्रामीण क्षेत्रों और उत्पादन केन्द्रों में परिवहन की अच्छी सुविधा, कोल्ड स्टोरेज की स्थापना तथा प्रसंस्करण उद्योगों के विकास से ऐसी स्थिति से निपटा जा सकता है और किसानों को लाभकारी मूल्य सुनिष्चित किया जा सकता है। चूँकि राज्य में अधिकांष लघु एवं सीमान्त कृषक हैं, इसलिए उनकी जोत का आकार छोटा है। कम आमदनी के कारण वे खेती से विमुख नहीं हों, इसके लिए हमें समेकित कृषि प्रणाली को बढ़ावा देना होगा। इसके तहत किसानों को खेती के साथ-साथ गो पालन, बकरी पालन, सूकर पालन, कुक्कुट पालन एवं मत्स्य पालन के लिए प्रोत्साहित करनी होगा ताकि उनकी आमदनी का नियमित और टिकाऊ स्रोत बना रहे। कृषि और किसानों का विकास सरकार की प्राथमिकता है। केन्द्र एवं राज्य राज्य सरकार किसानों की आय में वृद्धि हेतु प्रयासरत है। इस क्रम में माह नवम्बर, 2018 को रांची में दो दिवसीय Global Agriculture & Food Summit  का आयोजन किया गया था जिसमें भारत के विभिन्न भागों के अलावा छह अन्य देशों के विशेषज्ञों ने भी भाग लिया। सम्मलेन में झारखण्ड को कृषि यंत्रीकरण, डेयरी, कुक्कुटपालन, मत्स्यपालन, विवक चतवबमेेपदह, जैविक खेती तथा पशु चारा-दाना से सम्बंधित उद्योगों के लिए एक वैष्विक प्लेटफार्म के रूप में विकसित करने की रणनीतियों पर विषद चर्चा हुई। किसानों के दुःख-तकलीफ, जरूरतों और प्राथमिकताओं को मैं निकट से जानती हूँ। पहले कृशि कार्य हेतु इतने आधुनिक साधन उपलब्ध नहीं थे। कृषि विष्वविद्यालय के षिक्षक हों, वैज्ञानिक हों या विद्यार्थी हों, उन्हें किसी न किसी प्रकार किसानों के लिए ही काम करना है। उन्हें अपने प्रयासों का मूल्यांकन केवल षोध पत्रों या तकनीकी बुकलेट-बुलेटिन के प्रकाषन अथवा प्रौद्योगिकी विकास से नहीं करना है, बल्कि उन्हें देखना होगा कि उनके प्रयासों और अनुसंधान से किसानों का दुःख-दर्द दूर हुआ या नहीं। हमारे कृशि वैज्ञानिकों को किसनों के मध्य जाना होगा और उन्हं उन्नत कृशि की तकनीक से अवगत कराना होगा। कृषि वैज्ञानिकों के सारे प्रयासों का मुख्य उद्देष्य किसानों का जीवन-स्तर ऊँचा उठाना है। बेमौसम आंधी, पानी और ओला पड़ने के कारण फसल बर्बाद होने से हम सभी देषवासी चिन्तित होते हैं, हमारे किसान हतोत्साहित होते हैं। ऐसे हताष-निराष किसानों में आषा-उत्साह का संचार करने का भी कोई वैज्ञानिक समाधान आपको निकालना होगा। इन्ही शब्दों के साथ मैं आज उपधिधारकों सहित अन्य सभी विद्यार्थियों को पुनः बधाई देती हूँ और आषा करती हूँ कि वे प्रतियोगिता के इस युग में अपने ज्ञान, कौषल और प्रतिभा के बल पर सभी चुनौतियों का समुचित ढंग से सामना करेंगे तथा अपने समाज, राज्य और राष्ट्र की प्रगति में अपना महत्वपूर्ण योगदान देंगे।

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