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पलामू के पहाड़ी क्षेत्रों में बसा एक गांव राजखेता में विकास की रोशनी नहीं पहुंच सकी

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पलामू के पहाड़ी क्षेत्रों में बसा एक गांव राजखेता में विकास की रोशनी नहीं पहुंच सकी

सिटी पोस्ट लाइव, मेदिनीनगर: झारखंड राज्य का पलामू जिला अंतर्गत मनातू प्रखण्ड मुख्यालय से महज 14 कि.मी. की दूरी तथा करीब 100 फीट की ऊँचाई पर जंगली घाटी पहाड़ी श्रृखंलाओं की गोद में बसा मनातू का सर्वाधिक पिछड़ा गांव ‘रजखेता’ है। जहां आजादी के इतने वर्षो के बाद भी विकास की रोशनी नहीं पहुंच सकी है। 107 की जनसंख्या वाले उक्त गांव में अनुसूचित जाति के करीब 75 लोग बसते है। इनमें भुईयां एवं गंझू जाति की बहुलता सवार्धिक है। सरकार के तमाम दावों के बावजूद इस गांव तक पहुंच पथ का अभाव है। दुर्गम जंगली पहाड़ी घाटी की कठिन पगडंडी रास्ते के द्वारा ही यहां पहुंचा जा सकता है। वैसे तो यह गांव प्राकृतिक मनोहरी घटाओं एवं दृश्यों से भरपूर एवं मालामाल है, लेकिन इस गांव में रहने वाले लोगों का जीवन-स्तर को देखकर आदिम युग का दृश्य सामने आ जाता है। जंगली बांस की खपाचियों की झोपड़ी ही इनका आशियाना है। पेयजल सुविधा के नाम पर अकाल के समय 1966 में बना कुआं जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। मजबूर होकर लोग पेयजल के लिए जंगली सोता नाला के गंदे पानी पर आश्रित है। खेती के नाम पर कंकरीली जमीन में आंशिक रूप से मकई की खेती होती है। वैकल्पिक आहार के लिए लोग कंदा गेठी का भी सेवन करते हैं। रोजगार का अभाव होने के कारण यहां के लोग जंगली बांस से टोकरी, ठईया, सूप बनाने का भी धंधा करते हैं। जिन्हें दूर के बाजारों में बिक्री की जाती है। बेरोजगारी की हालत में लोग शहर की ओर भी पलायन करते रहे हैं। दैनिक जीविका चलाने के लिए लोग जंगल से लकड़ी एवं बांस काटकर काफी दूर गया जिले के सलेया बाजार तक बिक्री करते हैं। इन बाजारों में इनके द्वारा बेचे गए समानों की उचित मजदूरी नहीं मिल पाती है और यहां भी इनका शोषण होता है। इस गांव में शत-प्रतिशत निरक्षर लोग हैं। इस गांव से निकटत्तम सरकारी विद्यालय भी काफी दूर पर है। जिसके कारण बच्चे स्कूल नहीं पहुंच पाते। इस गांव में कोई स्वास्थ्य केन्द्र नहीं है। सरकार द्वारा चलाई जा रहीं किसी तरह की योजनाओं का लाभ इस गांव को नहीं मिल रहा। जन वितरण प्रणाली योजनान्तर्गत खाद्यान्न का लाभ से भी यह गांव लगभग वंचित ही है। कोई भी सरकारी कर्मचारी स्वास्थ्यकर्मी, एवं ग्राम सेवक इस गांव में जाना मुनासिब नहीं समझते। गंभीर बीमारी की स्थिति में लोग काफी दूर जाकर मनातू या फिर चक जाकर डॉक्टर से इलाज कराते हैं।

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