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टिड्डी दल के हमलों की आशंका को लेकर डीसी नैन्सी सहाय ने निर्देश जारी किए

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सिटी पोस्ट लाइव, देवघर: टिड्डी दल के हमले की आशंका को लेकर उपायुक्त नैन्सी सहाय ने कृषि विभाग व कृषि पदाधिकारी को अतिरिक्त सतर्कता बरतते हुए पूर्ण रूप से एक्टिव रहने का निर्देश दिया है। उन्होंने इसके बढ़ते प्रकोप को देखते हुए इसकी लगातार निगरानी करने का निर्देश भी संबंधित अधिकारियों को दिया है। साथ ही कृषि वैज्ञानिक केन्द्र, सुजानी के वैज्ञानिकों व अधिकारियों को आपसी समन्वय स्थापित करते हुए इससे निपटने को लेेकर आवश्यक व उचित दिशा-निर्देश दिया है। टिड्डी दल के हमले से बचने के लिए खेतों में धुआं किया जाए। इससे टिड्डी रुकता नहीं है। खेत में पानी भरने से भी टिड्डी बैठ नहीं पाती। सुबह पांच बजे से आठ बजे के बीच कलोरपाईरीफोस 20 प्रतिशत ई०सी० या लम्बडा, साईहसोथरीन पांच प्रतिशत ईसी के छिड़काव भी किया जा सकता है। इसके अलावा किसान सामूहिक रूप से गांव व क्षेत्र में ध्वनि विस्तारक यंत्रों का प्रयोग कर भगा सकते हैं। साथ हीं आग जलाने, पटाखे फोड़ने, थाली, टीन पीटने, ढोल व नगाड़े बजाने से भी ये भाग जाते हैं।

तेज ध्वनि को ये कीट बर्दाश्त नहीं कर पाते। फसलों में यदि टिड्डियों को प्रकोप बढ़ गया हो तो कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव करके भी इनकों मारा जा सकता है। टिड्डी प्रबंधन हेतु फसलों पर नीम के बीजों का पाउडर बनाकर 40 ग्राम पाउडर प्रति लीटर पानी में घोल कर उसका छिड़काव किया जाय तो दो-तीन सप्ताह तक फसल सुरक्षित रहती है। इसके अलावा बेन्डियोकार्ब 80 प्रतिशत 125 ग्राम या क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी 1200 मिली या क्लोरपाइरीफास 50 प्रतिशत ईसी 480 मिली या डेल्टामेथरिन 2.8 प्रतिशत ईसी 625 मिली या डेल्टामेथरिन 1.25 प्रतिशत एससी 1400 मिली या डाईफ्लूबेनज्यूरॉन 25 प्रतिशत डब्ल्यूपी 120 ग्राम या लैम्ब्डा-साईहेलोथ्रिन 5 प्रतिशत ईसी 400 मिली या लैम्ब्डा-साईहेलोथ्रिन 10 प्रतिशत डब्ल्यूपी 200 ग्राम को 500-600 लीटर पानी मे घोल कर प्रति हैक्टेयर अर्थात 2.5 एकड़ खेत मे छिड़काव करना होगा।

टिड्डी दो से ढाई इंच लम्बा कीट होता है। यह डरपोक होने के कारण समूह में रहते हैं। टिड्डी दल किसानों का सबसे बड़ा शत्रु है। यह एक दिन में 100 से 150 किलोमीटर की दूरी तय कर सकती हैं। झुंड में यह पेड़-पौधे एवं वनस्पतियों को नुकसान पहुंचाते हैं। यह दल 15 से 20 मिनट में फसल के पत्तियों को पूर्ण रूप से खाकर नष्ट कर सकते हैं। टिड्डी दल किसी क्षेत्र में शाम छह से आठ बजे के आस-पास पहुंचकर जमीन पर बैठ जाते हैं। या फिर पेड़ों, झाडियों एवं फसलों पर बसेरा करते हैं। वहीं पर रात गुजरते ही  फसल को खाकर नुकसान पहुंचाते है । फिर सुबह आठ से नौ बजे के करीब उड़ान भरते हैं।
टिड्डी दल पर नियंत्रण के लिए डीसी ने सुझाव भी दिए हैं जिसके तहत खेतों में एक साथ मिलकर आग जलाकर पटाखे फोड़ें। बलुई मिट्टी वाले खेत टिड्डी दल की पसंद है। ये हमेशा बलुई मिट्टी में अंडे देता है, ऐसे में इन खेतों को खाली न रहने दें, जोत दें। खेतों में पानी भर दें, जिससे प्रजनन और अंडे देने की कोई गुंजाइश न रहे। थाली-खाली टिन को जोर से पीटें, ढोल नगाड़े बजाकर तेज आवाज करें, इससे भी ये कीट भाग जाता है। टिड्डियों का दल आवाज के कंपन को महसूस करता है। इस कारण आजकल इन्हें भगाने के लिए डीजे का भी प्रयोग किया जाने लगा है। यह आवाज को दूर से भांपकर अपना रास्ता बदल लेते हैं अथवा खेतों से उड़कर दूर चले जाते हैं।

 

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