सिटी पोस्ट लाइव, रांची: बीजेपी विधायक दल के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने ई-मेल से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को धमकी दिये जाने के मामले में इंटरपोल से अब तक मदद नहीं लिये जाने पर सवाल खड़ा किया है। बाबूलाल मरांडी ने कहा कि धमकी मामले की प्रारंभिक छानबीन में यह बात सामने आयी है कि धमकी देने वाले दोनों सर्वर स्वीटजरलैंड और जर्मनी के है, यह जानकारी मिलने पर राज्य के किसी वरीयतम अधिकारी के हवाले से इंटरपोल को लिखित सूचित कर आगे की कार्रवाई के लिए उनका सहयोग लिया जाना चाहिए था, लेकिन इंटरपोल से क्यों नहीं सहयोग लिया जा रहा है, यह एक बड़ा सवाल है। उन्होंने कहा कि कई ऐसी बातें हैं जो इशारा कर रही है कि दाल में कुछ काला है। बाबूलाल मरांडी रविवार को दिल्ली से लौटने के बाद होम क्वारंटीन में है और घर से ही सोमवार को मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा कि अपराधियों द्वारा मुख्यमंत्री के आधिकारिक ई-मेल पर जान से मारने की दी गई ,यह एक राज्य के मुखिया की सुरक्षा से जुड़ा हुआ मामला है। परंतु राज्य की पुलिस द्वारा अब तक की जांच-प्रक्रिया पर गौर किया जाए तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि पुलिस द्वारा मामले में केवल खानापूर्ति की जा रही है।
उन्होंने बताया कि मीडिया के माध्यम से यह जानकारी मिली है कि धमकी 8 जुलाई को दी गयी, जबकि साइबर थाने में प्राथमिकी 13 जुलाई को दर्ज करायी गयी, आखिर बीच के 5 दिन मामले में राज्य की पुलिस क्या कर रही थी ? क्या मामले को छुपाने का प्रयास किया जा रहा था ? अगर हां, तो किसलिए ? अगर नहीं, तो जब मामला 8 जुलाई का ही है तो प्राथमिकी के लिए 5 दिन का इंतजार किसलिए ? उन्होंने बताया कि प्रारंभिक छानबीन में इस मामले में प्रयुक्त सिस्टम का सर्वर स्विट्जरलैंड और जर्मनी के बताए जा रहे हैं और साइबर थाना रांची से ईमेल कर प्रयुक्त उक्त सर्वर सिस्टम का ब्यौरा मांगना ही अपने आप में हास्यास्पद प्रतीत हो रहा है। साथ ही यह बतलाता है कि राज्य के पुलिस के वरीय अधिकारी इस मामले को लेकर कितने संजीदा हैं ? उन्होंने कहा कि धमकी में प्रयुक्त सिस्टम का सर्वर स्विट्जरलैंड और जर्मनी का होने के कारण मामला दो विभिन्न देशों के बीच का हो जाता है। ऐसे मामलों के निपटारे, सहयोग व पत्राचार के लिए देश में इंटरपोल की व्यवस्था है। इसलिए राज्य के वरीय अधिकारियों को इस संबंध में केंद्र सरकार के माध्यम से इंटरपोल से मदद लेनी चाहिए।
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