सिटी पोस्ट लाइव, रांची: सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड (सीयूजे) और विवादों का गहरा रिश्ता है। जबसे विश्वविद्यालय खुला, अबतक दर्जनों मामलों में सीयूजे विवादित रहा है। कई अध्यापकों और वर्तमान कुलपति प्रो. नंद कुमार यादव इंदु पर यौन शोषण से लेकर नियुक्तियों में अनियमितता सहित भ्रष्टाचार के आरोप लगे। ताजा मामला सीयूजे में मनमानी नियुक्तियों का है। नियमों की अनदेखी कर रजिस्ट्रार सहित 13 पदों पर 22 बहालियां की गईं। इसमें सीयूजे के वीसी प्रो. नंद कुमार यादव इंदु और बिहार के भागलपुर सदर अस्पताल में पदस्थापित उनकी धर्मपत्नी पत्नी डॉ. रोमा यादव के करीबी रिश्तेदार भी शामिल हैं। नियुक्त लोगों में कुलपति के भांजे नीरज कुमार कमल को मस्टी टास्किंग स्टाफ (एमटीएस) में जगह मिली है। इन नियुक्तियों में वीसी प्रो. इंदु की धर्मपत्नी डॉ. रोमा यादव के रिश्ते की बहन के बेटे तरूण कुमार को सिक्युरिटी इंस्पेक्टर बनाया गया है। इसी तरह उनकी पटना वाली बहन की बेटी नेहा को जूनियर इंजीनियर इलेक्ट्रिकल, उनके रिश्ते के भाई व जैक (झारखंड एकेडमिक काउंसिल) के मेंबर बासुकी यादव की बेटी नूतन भारती को फार्मासिस्ट के पद पर बहाल किया गया है। कुलपति प्रो. नंद कुमार यादव के संबंधी सुधीर कुमार राय को प्राइवेट सेक्रेटरी तथा केंद्रीय विश्वविद्यालय झारखंड के लाइब्रेरियन सुजीत कुमार पांडेय के रिश्तेदार ताराशंकर तिवारी को एमटीएस के पद पर नियुक्ति किया गया है। झारखंड के कुछ बड़े अधिकारियों के संबंधियों की भी नियुक्तियों की चर्चा है।
सीयूजे ने पहले कुछ पदों के लिए नियुक्ति नियमावली बनाई थी। यूजीसी ने वर्ष 2015 में इसकी जांच की तो पाया कि सीयूजे ने कई पदों के लिए नियमावली ही नहीं बनाई है। जिन पदों के लिए नियमावली बनी है, वह भी केंद्र सरकार और यूजीसी के मानकों के खिलाफ है। इसके बाद यूजीसी ने 24 फरवरी 2015 को आदेश दिया कि सीयूजे जबतक केंद्र सरकार की नियुक्ति के नियम और यूजीसी के दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करते हुए नियुक्ति नियमावली नहीं बनाता, तबतक नॉन टीचिंग पदों पर कोई नियुक्ति नहीं करेगा। इसकी अवहेलना करते हुए 24 मई 2017 को नियुक्तियों के लिए विज्ञापन कर लिया गया। इसके तहत रजिस्ट्रार पद पर एसएल हरिकुमार को 7 मई 2018 को नियुक्ति कर लिया गया। इसी तरह वित्त अधिकारी संतोष कुमार को इसी वर्ष 8 अप्रैल और परीक्षा नियंत्रक प्रभुदेव कुरल को 14 मई को नियुक्त कर लिया गया। ऐसे ही लाइब्रेरियन, पब्लिक रिलेशन ऑफिसर, इंफॉर्मेशन साइंटिस्ट, जू. इंजीनियर इलेक्ट्रिकल, फार्मासिस्ट, लाइब्रेरी असिस्टेंट, लाइब्रेरी अटेंडेंट और सिक्यूरिटी इंस्पेक्टर पदों पर नियुक्तियां हुईं। मल्टी टास्किंग स्टाफ और लेबोरेट्री अटेंडेंट के पदों पर भी इसी तरह अक्बटूर और नवंबर, 2018 तक 11 नियुक्तियां की गईं।
बहाली रोकने का आधिकार यूजीसी को नहीः रजिस्ट्रार
सीयूजे के रजिस्ट्रार एसएल हरिकुमार ने कहा कि एग्जीक्यूटिव काउंसिल (ईसी) की अनुमति के बाद नॉन टीचिंग पदों पर नियुक्तियां हुई हैं। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। सीआरआर में ईसी फाइनल बॉडी होती है। उसका निर्णय अंतिम होता है। ईसी में जो एजेंडा आता है उसे एमएचआरडी को भी भेजा जाता है। यूजीसी को नियुक्तियों पर रोक लगाने का आधिकार है ही नहीं। सीयूजे को बदनाम करने के लिए कुछ लोग लगे हुए हैं और भ्रामक खबरें फैला रहे हैं।
कुलपति पर दर्ज हुआ था यौन शोषण का केस, बरी भी हुए
सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड के वीसी प्रो नंद कुमार यादव इंदू के खिलाफ एससी-एसटी थाने में 8 मई 2017 को प्राथमिकी दर्ज की गई थी। सीयूजे की डिपार्टमेंट ऑफ ह्यूमन राइट्स एंड कनफ्लिक्ट मैनेजमेंट की महिला असिस्टेंट प्रोफेसर ने उनपर यौन शोषण का आरोप लगाया है। उनके खिलाफ कार्यस्थल पर छेड़खानी और आपराधिक षड्यंत्र का मामला दर्ज कराया गया है। इस बाबत शिक्षिका ने तीन मई को सिटी एसपी से लिखित शिकायत की थी। जांच के बाद वीसी प्रो नंद कुमार यादव इंदू के अलावा रजिस्ट्रार रतन कुमार डे, असिस्टेंट प्रोफेसर रंजीत कुमार और डॉ. अशोक निमेष के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज की गई थी। घटना के विरोध में छात्रों, शिक्षकों, अधिकारियों और कर्मियों ने कैंपस में विरोध मार्च भी निकाला था और कड़ी निंदा करते हुए कार्रवाई की मांग की थी। साथ ही आदिवासी महिला मोर्चा ने उनकी गिरफ्तारी के लिए धरना प्रदर्शन किया था। हालांकि, इस मामले में फैसला आ चुका है और कोर्ट से सीयूजे के वीसी डॉ. नंद कुमार यादव इंदु सहित सभी लोग इन आरोपों से बरी कर दिये गये हैं। सीयूजे के ह्यूमन राइट्स डिपार्टमेंड के असिस्टेंट प्रोफेसर अशोक निमेष पर पीजी की छात्रा ने यौन शोषण का मामला झारखंड महिला आयोग में दर्ज कराया था। मामले की शिकायत पर जून 2018 में वीसी प्रो. नंद कुमार इंदु और रजिस्ट्रार ने कोई कार्रवाई नहीं की। तब वह 10 जुलाई को झारखंड महिला आयोग पहुंची।
बगैर विज्ञापन निकाले कर ली गईं नियुक्तियां
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नियुक्ति घोटाले की जांच सीबाआई कर रही है। 2014 में बगैर विज्ञापन निकाले वरीय से लेकर सहायक स्तर के पदों पर चहेतों की नियुक्तियां कर ली गई थी। इसमें ओएसडी एनपी गर्ग की नियुक्ति भी जांच के घेरे में थी। उस समय 5 प्रोफेसर, 2 असिस्टेंट प्रोफेसर और 8 एसोसिएट प्रोफेसरों की नियुक्ति की जांच चल रही है। इसके साथ ही कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर हुई प्रोफेसर से लेकर क्लर्क तक की 42 नियुक्तियों के मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। इस मामले में 25 नवंबर 2014 को सीबीआई ने वीसी के आवास पर छापेमारी कर कई महत्वपूर्ण दस्तावेज जब्त किये थे।
बगैर मास्टर प्लान और डीपीआर के 343.84 करोड़ का काम बांटा
सीयूजे कैंपस निर्माण में बगैर मास्टर प्लान और डीपीआर के करोड़ों के काम बांटने के साथ ही नोमिनेशन के आधार पर 43 करोड़ के भुगतान अवैध भुगतान के मामले में भी सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज की है। बिना मास्टर प्लान और विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) बनाये ही विवि प्रशासन ने 343.84 करोड़ रुपये के काम विभिन्न एजेंसियों को बांट दिये थे। नतीजा हुआ कि यूजीसी ने सीयूजे के निर्माण कार्य के लिए जारी किये जाने वाले पैसे पर भी रोक लगा दी। सीयूजे को भेजे गये पत्र में यूजीसी की अंडर सेक्रेटरी सुषमा राठौड़ ने कहा था कि आयोग को जबतक आवश्यक कागजात नहीं मिल जाते, भवन निर्माण का अनुदान रिलीज नहीं होगा। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की स्पेशल ऑडिट रिपोर्ट ने सीयूजे के चेरी-मनातू में स्थायी कैंपस निर्माण के तरीके पर गहरी आपत्ति जतायी थी। साथ ही कहा था कि कैंपस निर्माण में सीयूजे ने सारे नियम-कानून तोड़ दिये और ठेकेदारों को करोड़ों के भुगतान कर दिये गये। बगैर टेंडर निकाले करोड़ों के काम रेवड़ियों के भाव बांट दिये गये। सीपीडब्ल्यूडी और जनरल फाइनेंशियल रूल की परवाह नहीं की गई। इस मामले में सीयूजे ने केंद्रीय मानव संसाधन विभाग को भी गलत जानकारी दी थी। जून 2012 में कहा था कि डीपीआर तैयार कर ली गई है, जबकि 9 फरवरी 2013 को हुई बिल्डिंग कमेटी की बैठक में सीयूजे ने कहा था कि 10 मार्च 2013 तक हुडको की मदद से डीपीआर तैयार कर ली जायेगी। सीबीआई ने इन मामलों में पूर्व वीसी, रजिस्ट्रार, कई ठेकेदारों और अनुबंध पर नियुक्त इंजीनियरों के ठिकानों पर छापेमारी भी की। इसमें कई महत्वरूर्ण कागजात भी जब्त किये। सीयूजे प्रबंधन ने निर्माण और नियुक्ति में मनमानी के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम किया था। यहां तक कि केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 11 और 13 में दिये गये मानव संसाधन मंत्री द्वारा अनुमोदित प्रस्ताव तक को बदल डाला। उन सभी मामलों में सीबीआई जांच चल रही है।
फर्जी बिल पर करोड़ों का भुगतान
सीयूजे निर्माण घोटाले की जांच भी सीबीआई कर रही है। इसमें चार प्राथमिकियां सीबीआई ने दर्ज की है। इसमें फर्जी बिल पर करोड़ों के भुगतान का मामला शामिल है। सीयूजे निर्माण घोटाले में सीबीआई जांच में खुलासा हुआ था कि बगैर टेंडर निकाले जिन कंपनियों को काम दिये गये, उन कंपनियों ने कम रेट पर काम लिये और फर्जी बिल के आधार पर भुगतान भी ले लिया। यही नहीं, कम रेट पर काम लेने के बावजूद निर्माण में घटिया सामग्रियों का इस्तेमाल किया गया। सीयूजे के अकाउंट अफसर सीताराम स्वर्णकार की मिलीभगत से बने बिल में गड़बड़ी पकड़ में आई थी, जिसके आधार पर करोड़ों रुपये का कंपनी ने भुगतान ले लिया था। इसमें ओएसडी एनपी गर्ग की संलिप्तता की बात भी सामने आई। सीबीआई की पूछताछ और फर्जी बिलों के मिलान के बाद यह मामला पकड़ में आया था। इस मामले में सीबीआई ने अकाउंट अफसर सीताराम स्वर्णकार, ओएसडी एनपी गर्ग, सिविल इंजीनियर संजय कुमार और इलेक्ट्रिकल इंजीनियर एएन तिग्गा से भी पूछताछ की थी।
नियमों की अनदेखी कर 12 करोड़ की लोकल परचेज
नियमों की अनदेखी कर करोड़ों की खरीदारी मामले में भी सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज की है। सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड ने सारे नियमों की अनदेखी कर वर्ष 2012 में करीब 12 करोड़ रुपये की खरीदारी (लोकल परचेज) की थी। कैग की स्पेशल ऑडिट रिपोर्ट की मानें तो इसमें न तो यूजीसी की गाइडलाइन को फॉलो किया गया और न ही केंद्रीय मानव संसाधन विभाग (एमएचआरडी) के निर्देशों की परवाह। जनरल फाइनेंशियल रूल-2005 का भी पालन नहीं हुआ। विवि के एडमिनिस्ट्रेटिव और फाइनेंस अफसरों से पूछताछ के बाद इस मामले में भी सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज की है। खरीदारी के लिए सीयूजे की परचेज कमेटी के चेयरमैन रजिस्ट्रार थे। उनके साथ टीम के सदस्य के रूप में डिप्टी रजिस्ट्रार परचेज, ओएसडी प्लानिंग, ओएसडी प्रोजेक्ट और अकाउंट अफसर शामिल थे। इस मामले की जांच भी सीबीआई कर रही है।
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