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विशेषताओं से भरा है बहुआयामी लोक आस्था का महापर्व छ्ठ

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विशेषताओं से भरा है बहुआयामी लोक आस्था का महापर्व छ्ठ

सिटी पोस्ट लाइव, गिरिडीह: गिरिडीह वाल्मीकि रामायण के आदित्य हृदय स्तोत्रं में वर्णित है कि प्रकृति के प्रत्येक्ष देव भगवान भुवन की आराधना करने वालों को दुःख-संताप नहीं भोगना पड़ता है। सूर्य मंडल में भगवान भाष्कर की स्तुति नारायण रूप में होती है। देश के विभिन्न प्रदेशों में सूर्य पूजा करने के अपने-अपने तरीके हैं, लेकिन बिहार, झारखंड सहित उत्तर भारत में आदिदेव सूर्य की उपासना चैत्र मास एवं कार्तिक मास में सूर्य षष्ठी अर्थात छठ पर्व के रूप में की जाती है। मान्यता है कि चार दिवसीय छठ पर्व के दौरान भगवान भुवन की आराधना करने वालों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। छठ मइया अपने भक्तों को मानसिक और भौतिक सुख समृद्धि का आर्शीवाद प्रदान करती हैं। यही कारण है कि छठपर्व पूरी आस्था और विश्वास के साथ महापर्व के रूप में मनाया जाता है। प्राकृतिक शक्तियों की पूजा का यह महापर्व अनेक विषेशताओं से भरा है। स्वच्छता अभियान की बात करें तो हर वर्ग के लोग अपने घरों के आसपास इनदिनों विशेष साफ सफाई करते हैं। गिरिडीह इलाके में छठपर्व विशेष तौर पर मनाये जाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है। गिरिडीह जिला मुख्यालय से 40 किमी चकाई – चतरो मुख्यमार्ग में भगवान सूर्यदेव का सरोवर के बीच में लोटस मंदिर है, जो वास्तुकला एवं भव्यता के कारण विख्यात है। कार्तिक व चैत्रमास  में भारी संख्या में श्रद्धालु भगवान सूर्य की वंदना करने लोटस् मंदिर आते हैं। हाल के वर्षों में गिरिडीह जिले के राजधनवार की छठ सुर्खियों में छायी रहती है। चितौड़गढ़ के शासक ने अपना साम्राज्य कायम करने के बाद धनवार के घाट पर आकर भगवान सूर्य की अराधना कर अर्ध्य दिया था। तब से यह परम्परा चली आ रही है। लोग इस घाट को राजाघाट के नाम से जानते हैं। राजाघाट के समीप ही एक चन्द्रकूप है, जिसके बारे में धारणा है कि इस कूप के जल से स्नान कर भगवान सूर्य को अर्ध्य देने वालों को भगवान भुवन मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।

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