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विश्व फलक पर सोहराई पेंटिंग, देवघर के पेड़े और धुसके की ब्रांडिंग करेगी झारखंड सरकार

नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु को सौंपा गया दायित्व, 33.55 लाख रुपये होगा भुगतान 

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विश्व फलक पर सोहराई पेंटिंग, देवघर के पेड़े और धुसके की ब्रांडिंग करेगी झारखंड सरकार
सिटी पोस्ट लाइव, रांची: झारखंड सरकार सोहराई पेंटिंग, धुसका, देवघर के पेड़े, रांची के पपीता और मटर की ब्रांडिगं विश्व फलक पर करेगी। राज्य सरकार ने विशिष्ट कार्यों, विधाओं और वस्तुओं को चिह्नित कर उसे निबंधित (पेटेंट) करने का अहम फैसला किया है। नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु को यह दायित्व सौंपा गया है। सरकार इस मद में यूनिवर्सिटी को 33.55 लाख रुपये का भुगतान करेगी। इसके साथ ही एमएसएमई टूल रूम, रांची को इस कार्य के लिए नोडल कार्यालय बनाए जाने की तैयारी है। झारखंड कैबिनेट की बैठक में इस पर निर्णय लिया गया। झारखंड की भाजपा नीत रघुवर दास सरकार के इस फैसले के बाद अब आदिवासियों की प्रसिद्ध सोहराई पेंटिंग, धुसका, देवघर के पेड़े आदि पेटेंट हो जाएंगे। रांची का पपीता और मटर भी देवघर के पेड़े की तरह झारखंड का ब्रांड बनेगा।
हजारीबाग के बादम में शुरू हुई थी सोहराई पेंटिंग
सोहराई पेंटिंग एक आदिवासी कला है। इसका प्रचलन सबसे पहले हजारीबाग जिले के बादम क्षेत्र में कई वर्ष पहले शुरू हुआ था। झारखंड की संस्कृति में आज भी आदिवासी बहुल क्षेत्रों में सोहराई पर्व के दौरान देशज उजली मिट्टी से सजे घरों की दीवारों पर महिलाओं के हाथों के हुनर देखने को मिलती हैं। हालांकि अब स्थानीय उजली मिट्टी की जगह चूने ने ले ली है। जानकारों के अनुसार, बादम राज में जब किसी युवराज का विवाह होता था तो उसकी यादगारी के लिए दीवारों पर कुछ चिह्न अंकित किए जाते थे। इस कला में कुछ लिपि का भी इस्तेमाल किया जाता था जिसे वृद्धि मंत्र कहा जाता था। बाद के दिनों में इस लिपि की जगह कलाकृतियों ने ले ली, जिनमें फूल, पत्तियां और प्रकृति से जुड़ी चीजें शामिल हैं। हाल के दिनों में यह कला उस समय चर्चित हुई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हजारीबाग में तत्कालीन उपायुक्त मुकेश कुमार द्वारा भवनों को सोहराई कला से सजाने की सराहना मन की बात कार्यक्रम में की। इसके बाद राजधानी रांची सहित कई शहरों में ऐसा किया गया।
धुसका है पारंपरिक व्यंजन
धुसका झारखंड का पारंपरिक व्यंजन है। इसे बड़े चाव से खाया जाता है। चावल और चना दाल से युक्त घोल को तेल में छानकर इसे तैयार किया जाता है। पारंपरिक व्यंजन के तौर पर नाश्ते में इसे पसंद किया जाता है। पर्व-त्योहार के मौके पर इस पकवान को बनाना लोग नहीं भूलते।
पांच-छह दिनों तक खराब नहीं होते देवघर के पेड़े 
द्वादश ज्योतिर्लिंग में एक बाबा बैद्यनाथ की नगरी देवघर में पेड़ा प्रसाद के रूप में चढ़ाने की परंपरा है। साल भर में यहां पेड़े का 50 करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार होता है। सावन के महीने में पेड़े की अप्रत्याशित बिक्री होती है। यहां के पेड़े में शुद्धता तथा उच्च गुणवत्ता बरकरार रहती है। खाने में स्वादिष्ट पेड़े पांच-छह दिनों तक खराब नहीं होते हैं।

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