सिटी पोस्ट लाइव, रांची : लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ का बहुत ही अधिक महात्म्य है। यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी को मनाये जाने वाले छठ को चैती छठ और कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाये जानेवाले पर्व को कातिकी छठ कहते हैं। इस पर्व को महिला और पुरुष समान रूप से करते हैं। इस व्रत को लेकर कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं। उनमें एक है कि जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गये थे, तब द्रौपदी ने भी छठ का पवित्र और कठिन व्रत रखा था। इसके साथ ही छठ के अन्य सामाजिक और वैज्ञानिक कारण हैं।
खास खगोलीय अवसर
कार्तिक महीने की षष्ठी तिथि (छठ) एक खास खगोलीय अवसर है। इसके अलग महत्व हैं। इसके साथ ही लोक परंपरा के अनुसार, भगवान सूर्य देव और छठी मइया में भाई-बहन का संबंध हैं। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा भगवान भास्कर ने ही की थी।
पाराबैंगनी किरणों से बचाव
महापर्व छठ के दौरान सूर्य की पाराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं। उसके संभावित कुप्रभावों से मानव की यथासंभव रक्षा का सामर्थ्य इस परंपरा में है।
सामाजिक समरसता
इस पर्व में सफाई का वहुत ही अधिक महत्व है। पूजा में प्राकृतिक वस्तुओं उनसे बने सामान का उपयोग किया जाता है। एक ही घाट पर विभिन्न जाति के लोग इकट्ठे होते हैं। सभी एक साथ भगवान सूर्य को अर्ध्य देते हैं। साथ ही दीपदान भी करते हैं। इससे सामाजिक समरसता भी बढ़ती है।
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