झारखंड बिजली वितरण निगम की माली हालत बिगड़ती जा रही
सिटी पोस्ट लाइव : झारखंड बिजली वितरण निगम की माली हालत बिगड़ती जा रही है। निगम हर महीने करीब 400 करोड़ रुपए की बिजली सेंट्रल पुल और अन्य कंपनियों से खरीदता है। लेकिन इसकी एवज में वह करीब 265 करोड़ रुपए ही वसूल पाता है। यानी जितनी राशि सिर्फ बिजली खरीद पर खर्च हो रही है, उतनी राशि भी निगम के पास नहीं आ रही है। अगर ऐसे ही हालात रहे तो तीन महीने बाद निगम बिजली खरीदने की स्थिति में नहीं रहेगा। यानी राज्य में कभी भी गंभीर बिजली संकट पैदा हो सकता है। दरअसल, सरकारी विभाग बिजली बिल का भुगतान ही नहीं कर रहा है, जिससे ऐसी स्थिति बनी है। पांच साल से सरकारी विभागों पर बिजली बिल का करीब 570 करोड़ रुपए बकाया है। यही नहीं, सरकार ने उपभोक्ताओं को सब्सिडी देनी शुरू कर दी, मगर निगम को इसके पैसे नहीं चुकाए। सब्सिडी के भी करीब 54 करोड़ रुपए सरकार के पास बकाया है। निगम ने भुगतान के लिए कई बार पत्र लिखा पर कुछ नहीं हुआ।
रिसोर्स गैप की राशि भी हो गई बंद : वर्ष 2014 में बिजली बोर्ड का विखंडन हुआ। इसके बाद चार स्वतंत्र होल्डिंग कंपनी बनी। झारखंड ऊर्जा विकास निगम मदर कंपनी है, जबकि झारखंड बिजली वितरण निगम, झारखंड उत्पादन निगम और झारखंड संचरण निगम अनुषांगिक कंपनियां हैं। पहले सरकार बिजली निगम को रिसोर्स गैप की राशि देती थी। चालू वित्त वर्ष में सरकार ने इसे बंद कर दिया। इसके बदले उपभोक्ताओं को सब्सिडी देनी शुरू की। पर निगम को पैसे नहीं दिए।
2013-14 से सरकारी विभागों ने नहीं भरा है बिल : वर्ष 2013-14 से सरकारी विभागों ने बिजली का बिल नहीं भरा है। इससे यह राशि 570 करोड़ रुपए पर पहुंच गई है। सबसे ज्यादा 169.01 करोड़ रुपए पेयजल एवं स्वच्छता विभाग पर बकाया है। अन्य विभागों पर भी करोड़ों रुपए बकाया है। इसके अलावा कई बड़े बकायादार भी बिजली बिल नहीं भर रहे हैं। इससे स्थिति विकट होती जा रही है।
चंद्रप्रकाश चौधरी बोले- यह इंटरनल मामला : बिजली निगम का सबसे बड़ा बकायादार पेयजल स्वच्छता और जल संसाधन विभाग है। पेयजल स्वच्छता विभाग पर जहां 169.01 करोड़ रुपए बकाया है, वहीं जल संसाधन विभाग पर 91 करोड़ रुपए। इन दोनों विभागों के मंत्री चंद्रप्रकाश चौधरी हैं। मंत्री ने कहा-विभागों में बकाया चलता रहता है। यह विभाग का इंटरनल मामला है। पेयजल एवं जल संसाधन विभाग के भी कई विभाग बकाएदार हैं। विभागीय प्रक्रिया के तहत बकाए का भुगतान किया जाता है।
फिर सरकार को रिमाइंडर भेजेंगे : झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड के चीफ इंजीनियर एसके ठाकुर ने कहा कि यह बकाया 2013-14 से ही जारी है। अब यह बढ़कर 570 करोड़ रुपए हो गया है। विभिन्न विभागों को बकाए के भुगतान के लिए कई बार पत्र लिखा, लेकिन अब तक भुगतान नहीं हुआ है। एक बार विभागों को फिर रिमाइंडर भेजेंगे।
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