सिटी पोस्ट लाइव, वाराणसी: श्रावणी पूर्णिमा पर सोमवार को धर्म नगरी काशी में पतित पावनी गंगा नदी के अहिल्याबाई घाट पर विप्र समाज ने कोरोना संकट काल में श्रावणी उपाकर्म की परम्परा निभाई। घाट पर ब्राह्मणों ने कोविड प्रोटोकाल का पालन कर गंगा में गोता लगाया और फिर जाने-अनजाने किए गए पाप कर्मों के शमन के लिए उपाकर्म किए। शुक्ल यजुर्वेदीय माध्यान्दिनी शाखा के ब्राह्मणों ने शास्त्रार्थ महाविद्यालय के वैदिक आचार्य पंडित विकास दीक्षित के आचार्यत्व में वैदिक मन्त्रों के उच्चारण के बीच गाय के गोमय, गौमूत्र, गोदुग्ध, गोदधि,गोघृत मिश्रित पंचगव्य से स्नान कर भस्म लेपन किया। कुशा, दुर्वा व अपामार्ग से मार्जन कर ब्राह्मणों ने अंत:करण और बाह्यकरण की शुद्धि के साथ सूर्य का ध्यानकर तेज की कामना की। इसके पश्चात् नूतन यज्ञोपवीत का ऋषि पूजन कर उसे धारण किया गया।
इस संबंध में आचार्य पवन शुक्ला ने बताया कि श्रावणी द्वारा वर्ष पर्यन्त ज्ञात-अज्ञात पापकर्मों के प्रायश्चित के साथ जगत कल्याण की कामना भी की जाती है। प्रायश्चित संकल्प,स्वाध्याय व संस्कार के लिए यह श्रावणी उपाकर्म किया जाता है। प्रतिवर्ष सैकड़ों की संख्या में ब्राह्मण व बटुक इसको करते आ रहे थे। किन्तु इस वर्ष कोरोना संक्रमण को देखते हुए संख्या न्यूनतम रही। उन्होंने बताया कि इस वैदिक कालीन परम्परा को अक्षुण रखते हुए काशी का विप्र समाज प्रतिवर्ष श्रावण माह के पूर्णिमा तिथि को गंगा तट पर यह उपाकर्म करता चला आ रहा है। जिसमें डा.गणेश दत्त शास्त्री,आचार्य चूड़ामणि शास्त्री,ज्योतिषाचार्य डा.आमोद दत्त शास्त्री,आचार्य पवन शुक्ला,पं.दिनेश शंकर दूबे,शिव प्रसाद पांडेय, पं.संतोष झा, पं.शुभम शास्त्री, पं,अंकित द्विवेदी,पं.विशाल शास्त्री, गिरीश पाण्डेय, विकास महाराज आदि शामिल रहे।
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