सिटी पोस्ट लाइव, बांदा: जिस तरह हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के हमले में 8 पुलिसकर्मियों को शहीद होना पड़ा ,ठीक इसी तरह से 11 और 13 वर्ष पहले बुंदेलखंड के जनपद चित्रकूट और बांदा में दस्यु सरगना घनश्याम केवट और अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया ने पुलिस पर गोलियां बरसाई थी। जिसमें एसटीएफ के 6 जवानों सहित 10 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे। इन मुठभेड़ों की याद ताजा होते ही लोग सिहर उठते हैं। घनश्याम केवट ने तो दस्यु इतिहास के पन्नों में कभी न भूलने वाली उस मुठभेड़ को अंजाम दिया। जिसने देश के सबसे बड़े राज उत्तर प्रदेश के पुलिस कर्मियों के पसीने छुड़ा दिए थे। 16 जून 2009 समय 11 बजे जनपद चित्रकूट के राजापुर थाना क्षेत्र के अंतर्गत जमौली गांव में पुलिस की गाड़ियां सायरन बजाते हुए पहुंची तो सहमे हुए ग्रामीणों को यह अंदाजा भी न था कि अगले 3 दिनों तक उनकी जिंदगी में क्या तूफान आने वाला है।
दरअसल पुलिस को सूचना मिली थी की 50 हजार के इनामी डकैत घनश्याम केवट ने यहां पर शरण ले रखी है। बस क्या था देखते ही देखते गांव की घेराबंदी हुई और इसी बीच घनश्याम केवट ने पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी। फायरिंग का सिलसिला शुरू हुआ तो फिर बंद होने का नाम ही नहीं लिया। घनश्याम केवट इस तरह गोलियों चला रहा था की पुलिस को संभलने का मौका नहीं मिला। डकैत की छिपने की लोकेशन ऐसी थी कि उस तक पहुंच पाना पुलिस के लिए आसान नहीं था।
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डकैत घनश्याम रात होने तक रुक-रुक कर खाकी को गोलियों का निशाना बनाता रहा। घनश्याम के खौफनाक इरादे को भांप कर उच्च अधिकारियों ने अन्य जनपदों से भारी पुलिस बल बुला लिया। देखते ही देखते एक अकेला डकैत 400 पुलिसकर्मियों के घेरे में आ गया। इस मुठभेड़ को कवरेज करने पहुंचे चित्रकूट के ही वरिष्ठ पत्रकार संदीप रिछारिया बताते हैं कि घनश्याम केवट इस तरह सटीक गोलियां चला रहा था की पुलिसकर्मी अपने आपको बचाते घूम रहे थे। संदीप का कहना कहना है कि कई बार तो हम लोगों के आसपास से भी घनश्याम की गोलियां सनसनाती निकल गई जिसे याद करके आज भी हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इस खूनी मुठभेड़ में दस्यु घनश्याम की गोलियों का निशाना बनते हुए पुलिस के 4 जवान शहीद हो गए। जिसमें पीएसी के कंपनी कमांडर भी शामिल थे। इसके अलावा आधा दर्जन पुलिसकर्मियों को भी गोली लगी थी। बाद में दस्यु घनश्याम से टक्कर लेने के लिए तत्कालीन एडीजी बृजलाल, आईजी जोन इलाहाबाद सूर्य कुमार शुक्ला सहित कई उच्च अधिकारियों ने मोर्चा संभाला था हालांकि बाद में उक्त डकैत को मार गिराने के लिए पूरे गांव में आग लगा दी गई जिससे जान बचाने के लिए वह बाहर निकला और पुलिस की गोलीबारी में मारा गया। उक्त खूनी मुठभेड़ में पुलिस ने घनश्याम केवट को मारकर भले हैं अपनी पीठ थपथपाई थी लेकिन पूरे 52 घंटे तक पुलिस को छकाने वाले घनश्याम केवट की जब जिक्र होती है तो लोग रोमांचित हो जाते हैं।
इसी तरह दस्यु ददुआ को मारने के बाद एसटीएफ के जवान वापस आ रहे थे। जिन्हें 23 जुलाई 2007 को फतेहगंज (बांदा)के बघोलन तिराहे पर ठोकिया ने घेरकर उन पर गोली बसाई थी इस हमले में एसटीएफ छह जवान शहीद हो गए थे। दस्यु इतिहास में यह पहली घटना थी जब किसी डकैत ने इतने बड़ी तादाद में एसटीएफ के जवानों को निशाना बनाया था।आज एक बार फिर यूपी पुलिस को मुठभेड़ में मात खानी पड़ी है।जहां हिस्ट्रीशीटर के हमले में एक साथ आठ पुलिसकर्मियों को सही शहीद होना पड़ा। किन कमियों के कारण पुलिस कर्मियों को इतनी बड़ी शहादत देनी पड़ी। इस पर पुलिस को मंथन करना होगा, ताकि भविष्य में अपराधियों के सामने पुलिस को मात न खानी पड़े।
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