सिटी पोस्ट लाइव, रांची: झारखंड प्रदेश कांग्रेस की ओर से संथाल हुल दिवस पर मंगलवार को पार्टी कार्यालय में सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार का उद्घाटन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रामेश्वर उरांव ने दीप प्रज्ज्वलित कर एवं सिद्ध-कान्हू तथा चांद भैरव के चित्र पर माल्यार्पण कर किया। सेमिनार में मुख्य वक्ता के रूप में महान शिक्षाविद् तथा जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के इतिहास के पूर्व विभागाध्यक्ष डाॅ जेम्स बाड़ा तथा आदिवासी बृद्धिजीवी मंच के अध्यक्ष पीसी मुर्मू ने अपने उद्गार प्रकट किया। सेमिनार में विधायक दल के नेता सह मंत्री आलमगीर आलम, बन्ना गुप्ता, पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय, संथाल हुल दिवस कार्यक्रम के संयोजक अनादि ब्रहम, प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष केशव महतो कमलेश, संजय लाल पासवान, विधायक दीपिक पांडेय सिंह, नमन विक्सल कोंगाड़ी, राजेश कच्छप उपस्थित थे। इस अवसर पर रामेश्वर उरांव ने कहा कि अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ, महाजनी प्रथा के खिलाफ, शोषण से मुक्ति, सुदखोरी से संघर्ष, जल, जंगल जमीन की रक्षा के लिए संथाल के आदिवासियों ने हुल विद्रोह क्रांति किया और सिद्धू-कान्हू लड़ते हुए शहीद हो गये। विद्रोह के साथ जो सीएनटी, एसपीटी कानून बना जो आदिवासी दलित, पिछड़ों के जमीन की रक्षा के लिए बना। 1935 में इंडिया एक्ट में भी यह उल्लेख है कि बाहर से आने वाले लोग आदिवासियों की जमीन लेते है इसलिए संविधान में जमीन को बचाने की बात कही गई है।
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उरांव ने कहा क जिन लोगों ने भी जमीन को छुने की कोशिश की बैलेट के माध्यम से उन्हें बाहर का रास्ता दिखा गया है। सोनिया गांधी के नेतृत्व में भूमि अधिग्रहण कानून चलते हमारी जमीन बची। संथाल क्रांति के बाद बहुत बड़ा बदलान सोनिया गांधी के नेतृत्व में किया गया, जिसमें भाजपा भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन करने की कोशिश की लेकिन विफल रहे। शिक्षाविद जोसेफ बाड़ा ने कहा कि आदिवासियों के इतिहास के बारे में जो भी जानकारी रखते है तो स्वतंत्रता संग्राम के पूर्व आदिवासियों ने अंग्रेजों खिलाफ आंदोलन शुरू किया था। अंग्रेजों का शोषण, अत्याचार हर जगह व हर क्षेत्र में था, इसलिए आंदोलन शुरू हुआ। हमारी जल, जंगल जमीन को सुदखोरो के माध्यम से अंग्रेजी हुकुमत लगान, टैक्स मांगती थी। हमने बाघ के जबड़ो से हमारी जमीन वापस छीनी है। इसलिए हम आज भी अपने प्रियजनों को जमीन में गाड़ते हैं ताकि उनकी आत्मा हमारे साथ रहे। अंग्रेज जैसे शातिर चतुर, राजनैतिक जिसका काम सिर्फ देश को कंगाल करना था। शिक्षाविद पीसी मुर्मू ने कहा कि 175 साल पहले एक क्रांति हुई थी और 30 जून को ही आखिर क्यों हुई। 1855 में अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासियों ने विगुल फूंका था, जमीन और आदिवासियों के अस्तित्व की लड़ाई भी हुल दिवस, जल जंगल जमीन को लेकर उस समय के लड़ाई को हुल कहते थे। आज के लड़ाई को जन आंदोलन कहते हैं। संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने कहा कि हुल दिवस को हम हमेशा से मनाते रहे हैं।
175 साल पूर्व बरहेट के भोगनाडीह से अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए 400 गांवों के 50 हजार लोगों ने कहा था करो या मरो, अंग्रेजों माटी छोड़ो का नारा दिया था और विद्रोह किया। सिद्धू-कान्हू के विचारों को आत्मसात करें। स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने कहा कि अंग्रेजों ने सूदखोरो के माध्यम से बंगाल प्रेसिडेंसी से चलने वाली अंग्रेजी व्यवस्था ने ऐसी न खत्म होने वाली व्यवस्था लागू कर दी जिसको लेकर आदिवासियों ने शंखनाद किया और कई हजारो लोगों ने शहादत दी। हमें चिंतन मनन करना होगा कि हमारे क्रांति को इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान क्यों नहीं मिला। पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने कहा कि आदिवासियों द्वारा किये गये संथाल विद्रोह में उन योद्धाओं के संघर्ष गाथा को याद करके मन गौरवान्वित हो जाता है। आदिवासी समाज कभी भी शोषण और लूट के खिलाफ कोई समझौता नहीं किया। कार्यक्रम में कुमार गौरव, शकील अख्तर अंसारी, गुंजन सिंह, नेली नाथन, चैतु उरांव, सतीष पाॅल मुंजनी, नियल तिर्की, सन्नी टोप्पो, शशिभूषण राय आदि उपस्थित थे।
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