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मरियम ने कहा “बाबू! मेरी बात को साहबों तक पहुंचा देना, तो पेंशन मिलेगी”

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सिटी पोस्ट लाइव, खूंटी: एक पुरानी कहावत है कि जिसके सिर पर तेल होता है, लोग उसी के माथे पर तेल देते हैं। कहने का तात्पर्य है ही सामर्थयवान को ही समाज का सहयोग मिलता है, गरीबों, लाचार लोगों की ओर से तो प्रशासन की नजर कम ही जाती है, पर जिस समाज में वह रहती है, वही समाज ऐसी विवश महिला की अनदेखी कर दे, तो इसे नियती का खेल ही कहेंगे। इन दिनों ऐसी ही स्थिति से गुजर रही है तोरपा प्रखंड के दियांकेल सरना टोली की रहने वाली 80 वर्षीय वृद्धा मरियम टोपनो। ऐसा नहीं है कि मरियम बुढ़ापे में ही दुःख झेल रही है। मरियम पर तो दुःखों का पहाड़ उसी दिन टूट पड़ा था, जब वह असम में अपने माता-पिता के साथ रहती थी और एक दिन खेलते-खेलते गिर गयी। धीरे-धीरे वह दिव्यांग होती गयी। दिव्यांग होने के बाद उसके माता-पिता ने उसे असम से दियांकेल सरना टोली के घर में अकेले छोड़ दिया और वे असम लौट गये। मरियम बताती है कि उस समय उसकी उम्र महज सात-आठ साल थी। अब तो मरियम अपने माता-पिता का नाम भी भूल चुकी है। मरियम बताती है कि दिव्यांग होने के कारण उसकी शादी भी नहीं हुई। गांव के रिश्तेदार दिन में एक-दो बाल्टी पानी दे जाते हैं, उसी से काम चल जाता है। वह खाना खुद बनाती है।

एक साल से नहीं मिली पेंशन 

मरियम टोपनो बताती हैं कि पिछले एक साल से उसे पेंशन नहीं मिल रही है। इसके कारण उसे कभी-कभी तो भरपेट भोजन भी नसीब नहीं हो पता।  घर में बिजली तक नहीं है। ढिबरी जलाकर गुजारा कर रही है। आदिवासी समुदाय की लाचार वृद्धा होने के बाद भी सरकार की ओर से उसे एक बल्ब तक नहीं मिला। मरियम ने बताया कि उसने गांव के कई लोगों को पेंशन के संबंध में पता लगाने का आग्रह किया, पर किसी ने उसकी नहीं सुनी। उसे यह मालूम नहीं कि आखिर उसकी पेंशन एक साल से बंद क्यों है। वह कहती है, बाबू! मोर बात के साहेब मन पास पोंहचाए देबा, तो पेंशन मिली(बाबू मेरी बात को साहबों तक पहुंचा देना, तो पेंशन मिलेगी।

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