मां छिन्नमस्तिका मंदिर में संधि पूजा का विशेष अनुष्ठान, लगा भक्तों का ताँता
सिटी पोस्ट लाइव, रांची : झारखंड का प्रसिद्ध सिद्धपीठ मां छिन्नमस्तिका मंदिर रजरप्पा में शारदीय नवरात्रि की महाष्टमी को मां महागौरी के स्वरूप की विशेष पूजा-अर्चना की गई। आज बुधवार को महाअष्टमी और नवमी तिथि के मिलन बेला में संधि पूजा का विशेष अनुष्ठान हुआ। सुबह से ही मां छिन्नमस्तिका मंदिर में भक्तों का तांता लगा हुआ है। आज मां को विशेष बलि दी गई। मां छिन्नमस्तिका मंदिर के पुजारी असीम पंडा कहते हैं कि वैसे तो रजरप्पा स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर में सालोभर भक्तों की भीड़ रहती है, लेकिन शारदीय और चैत्र नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है। सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि को यहां पूजा का विशेष महत्त्व है। मां के भक्तों के साथ ही साधक और उपासक भी नौ दिनों तक विशेष अनुष्ठान करते हैं। चूंकि यहां शक्ति की पूजा होती है, इसलिए साधकों और उपासक सहित सभी भक्तों के लिए इन तीनों दिनों का विशेष महत्व है। खासकर रात्रिकालीन पूजा का। सप्तमी (मंगलवार) की मध्य रात्रि में मां कालरात्रि की पूजा हुई। जो भी इस रात्रि को देवी मां काली की आराधना करता है, देवी उसके कार्यों को सिद्ध करती हैं। उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
बिना सिर वाली मां का स्वरूप है रजरप्पा सिद्धपीठ में, दायें हाथ में तलवार और उनके बांये में कटा हुआ सिर
रजरप्पा में भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर का मुख्य द्वार पूरब मुखी है। यहां दक्षिण की ओर मुख किये बिना सिर वाली मां का दिव्य स्वरूप है। उनके दायें हाथ में खड़ग (तलवार) और बायें में उनका कटा हुआ सिर है। मां की तीन आंखें हैं। बांया पैर आगे की ओर बढ़ाए हुए मां कमल फुल पर खड़ी मुद्रा में विराजमान हैं। उनके पांव के नीचे कामदेव और रति शयन अवस्था में हैं। गले में मुंड और सर्प की माला है। उनके अगल-बगल डाकिनी और शाकिनी खड़ी हैं। उनके कटे हुए गले से रक्त की तीन धाराएं निकल रही हैं। डाकिनी-शाकिनी के अलावा खुद भी रक्तपान कर रही हैं। ।
मां छिन्नमस्तिका मंदिर में है 13 हवनकुंड, नवरात्रि में विशेष अनुष्ठान कर सिद्धि प्राप्त करते हैं साधक
सिद्धपीठ मां छिन्नमस्तिका मंदिर झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर दूर रामगढ़ जिले के रजरप्पा में है। सिद्धपीठ के पुजारी असीम पंडा बताते हैं कि मां छिन्नमस्तिका मंदिर में 13 हवन कुंड है। नवरात्रि में साधक 13 हवन कुंडों में विशेष अनुष्ठान कर सिद्धि प्राप्त करते हैं। इसके लिए नवरात्रि में हर साल पश्चिम बंगाल, असम, छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश सहित अन्य जगहों से बड़ी संख्या में साधु, महात्मा और भक्त आते हैं। वे कहते हैं कि असम की मां कामाख्या मंदिर के बाद यह सबसे बड़ी सिद्धपीठ है। पेड़ में कच्चे धागे बांध मन्नत मांगते हैं भक्त, पूरी होने के बाद खोलकर दामोदर में बहाने की है मान्यता मंदिर के पुजारी असीम पंडा बताते हैं कि यहां आने वाले भक्त अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए मंदिर के मुख्य द्वार के सामने पेड़ या त्रिशुल पर कच्चा धागा बांधते हैं। जब उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है तो वे फिर मां छिन्नमस्तिका के दरबार में आते हैं। मां की पूजा के बाद मन्नत पूरी होने के लिए बांधे गये धागे को खोलते हैं और उसे दामोदर नदी में प्रवाहित कर देते हैं।
असम की मां कामाख्या मंदिर से मिलती-जुलती है मंदिर के गुंबद की शिल्प कला
जंगल में नदियों के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर के गुंबद की शिल्प कला असम की मां कामाख्या मंदिर से मिलती-जुलती है। मंदिर के पूरब मुखी मुख्य द्वार के ठीक सामने बलि स्थल है। मंदिर परिसर में मां छिन्नमस्तिका के अलावा सात मंदिर हैं। इनमें महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंगबली मंदिर, शंकर मंदिर हैं। शंकर मंदिर में करीब 10 फीट का विराट शिवलिंग है।
अपना मस्तक काट भूख से तड़पती सहेलियों को कराया था रक्तपान
पौराणिक कथा है कि एक बार मां भवानी अपनी दो सहेलियों के साथ नदी में स्नान करने आई थीं। इसी दौरान उनकी सहेलियों को बहुत तेज भूख लगी। तब उन्होंने मां भवानी से भोजन मांगा। मां ने उन्हें थोड़ा सब्र रखने को कहा, लेकिन भूख से वे इतनी बेहाल हो गयीं कि उनका रंग काला पड़ने लगा। वे तड़पने लगीं। तब उनलोगों ने कहा कि हे मां, जब बच्चों को भूख लगती है तो मां हर काम छोड़कर पहले भोजन देती है, लेकिन आप सब्र रखने को क्यों कह रही हैं। यह सुनते ही मां भवानी ने अपने खड़ग से अपना मस्तक काट लिया। कटा हुआ मस्तक उनके बायें हाथ में गिरा और गले से रक्त की तीन धाराएं फूट निकलीं। दो धाराओं को उन्होंने अपनी सहेलियों पिला दिया और एक खुद पीने लगीं। उसी समय से मां के इस स्वरूप को छिन्नमस्तिका के नाम से पूजा जाने लगा।
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