सिटी पोस्ट लाइव : रालोसपा सुप्रीमो उपेन्द्र कुशवाहा पटना से दिल्ली गए थे बीजेपी के राष्ट्रिय अध्यक्ष अमित शाह से मिलने. लेकिन पहुँच गए शरद यादव के घर. शरद यादव के साथ बंद कमरे में लगभग 40 मिनट तक बातचीत हुई. विपक्ष के नेता शरद यादव से उपेन्द्र कुशवाहा की इस मुलाक़ात को लेकर अटकलों का बाज़ार गर्म हो गया. जिसकी जो समझ में आया, अपने हिसाब से इस मीटिंग का अर्थ निकालने लगा. किसी ने कहा कि अब महागठबंधन में जाने की तैयारी में हैं उपेन्द्र कुशवाहा तो किसी ने इसे बीजेपी पर दबाव बनाने की तिकड़म करार दे दिया.लेकिन इस मीटिंग का असली राजनीतिक मकसद शायद ही कोई समझ पाया.
लेकिन शरद यादव और उपेन्द्र कुशवाहा की इस बैठक का मकसद कुछ और ही था. दरअसल, शरद यादव जेडीयू से बाहर होने के बाद अपनी पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल बना लिया है. पार्टी तो बना लिया है लेकिन इतना जल्दी उसे चुनाव के लिए तैयार कर पाना आसान काम नहीं. शरद यादव चाहते हैं अपनी पार्टी का उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा में मर्जर करना. इससे शरद यादव का फायदा तो होगा ही उपेन्द्र कुशवाहा को भी शरद यादव जैसा एक राष्ट्रिय स्तर का नेता मिल जाएगा. शरद यादव और उपेन्द्र कुशवाहा दोनों का दुश्मन एक ही है नीतीश कुमार. सूत्रों के अनुसार शरद यादव ने उपेन्द्र कुशवाहा को समझाया है कि उन्हें तो कभी सीएम बनना नहीं है. वो तो सीएम बनाते रहे हैं. लालू यादव हो या नीतीश कुमार दोनों को उन्होंने ही सीएम बनाया. जब साथ होगें तो उपेन्द्र कुशवाहा को उस कुर्सी तक पहुंचाने के लिए काम करेगें.
दरअसल, शरद यादव एक राष्ट्रिय स्तर के नेता हैं. उनका किसी क्षेत्र विशेष में किसी खास जाति बिरादरी का वोट भले न हो लेकिन ओबीसी के एक बड़े नेता हैं. सूत्रों के अनुसार कांग्रेस की सोनिया गांधी भी शरद यादव को साथ लेकर चलाना चाहती हैं क्योंकि बीजेपी को बहुमत नहीं मिला तो यूपीए सरकार बनाने में शरद यादव अहम् भूमिका निभा सकते हैं. सभी क्षेत्रीय दलों को वो एकसाथ ला सकते हैं.अब जब खुद शरद यादव रालोसपा में अपनी पार्टी के विलय को इच्छुक हैं, उपेन्द्र कुशवाहा उनसे मिलने खुद पहुँच गए. हालांकि उपेन्द्र कुशवाहा ने इस बैठक का मकसद का खुद खुलासा तो नहीं किया लेकिन इतना जरुर कहा कि शरद यादव को देश का सबसे बड़े समाजवादी नेता हैं. वो उनका मार्गदर्शन और आशीर्वाद लेने पहुंचे हैं. शरद यादव ने कहा कि उनका संबंध बहुत पुराना है. वो हमेशा एक दूसरे के बहुत करीब रहे हैं .ये दीगर बात है कि दोनों अभी अलग अलग विचारधारा के गठबंधन के साथ हैं.
जाहिर है शरद यादव और उपेन्द्र कुशवाहा की यह जोड़ी तभी बन पायेगी जब कुशवाहा बीजेपी को छोड़ने का फैसला ले लें या फिर बीजेपी उपेन्द्र कुशवाहा की शरद यादव के नेत्रित्व में चलने वाली पार्टी को नीतीश कुमार की जेडीयू से ज्यादा तरजीह देने को तैयार हो जायेगी. शरद यादव की पहचान एक समाजवादी नेता की जरुर रही है लेकिन बीजेपी विरोधी की नहीं. जब नीतीश कुमार बीजेपी के साथ थे तब भी वो नीतीश कुमार के साथ ही थे. केवल साथ ही नहीं बल्कि जेडीयू के राष्ट्रिय अध्यक्ष भी थे. जाहिर है शरद यादव और बीजेपी के बीच के रिश्ते में कोई ख़ास कडुवाहट नहीं है..जब नीतीश कुमार ने एनडीए छोड़ा था उस समय भी शरद यादव एनडीए के साथ रहने के पक्ष में थे.शरद यादव कांग्रेस से ज्यादा सहज बीजेपी के साथ रहेगें.और अगर कुशवाहा महागठबंधन के साथ भी जाते हैं तो भी उन्हें कोई परेशानी नहीं क्योंकि वो तो हैं ही समाजवादी.
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