मोदी विरोधी मोर्चे का नेत्रित्व कर सकते हैं नीतीश कुमार?
सिटी पोस्ट लाइव : बीजेपी विधान सभा चुनाव के पहले नीतीश कुमार को दबाव में लेने की कोशिश में जुटी है. वहीँ नीतीश कुमार बीजेपी की इस रणनीति की काट में पास पास और दूर दूर की राजनीति का सहारा ले रहे हैं.वो एक तरफ बीजेपी के साथ बने रहने का तो दूसरी तरफ बीजेपी के दबाव में नहीं आने का संदेश भी साथ साथ दे रहे हैं.दरअसल, लोक सभा चुनाव में मिली अप्रत्याशित सफलता के बाद बीजेपी को लग रहा था कि विधान सभा चुनाव में वह जेडीयू को दबाव में ले लेगी. लेकिन हरियाणा और महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव के नतीजे लोक सभा चुनाव के उल्ट आने से बीजेपी का तेवर नरम पड़ गया है.इसी का नतीजा है कि अपने नेताओं को नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा में लगानेवाले अमित शाह को ये कहना पड़ा कि विधान सभा चुनाव NDA नीतीश कुमार के नेत्रित्व में ही लडेगा.
लेकिन अभी भी बीजेपी सीटों की संख्या को लेकर जेडीयू पर दबाव बनायेगी.लोक सभा की तर्ज पर वह बराबर बराबर सीटों पर विधान सभा चुनाव लड़ना चाहेगी .गौरतलब है कि बिहार में जेडीयू हमेशा बीजेपी से दो से तीन दर्जन ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ता रहा है.नीतीश कुमार उसी तर्ज पर आगे भी सीटों का बटवारा चाहेगें .बड़े भाई की अपनी भूमिका बरकरार रखने के लिए वो कभी बीजेपी के पास पास तो कभी बीजेपी से दूर दूर होने का राजनीति करते नजर आ रहे हैं. दरअसल, वो बीजेपी के साथ ही चुनाव लड़ना चाहते हैं लेकिन अपनी शर्तों पर.इसलिए बीजेपी ज्यादा दबाव बनाए तो उसे छोड़ने में ज्यादा असहज मह्सुश न हो, नीतीश कुमार साथ होते भी बीजेपी से दूर होने का अहसास कराते रहना चाहते हैं.
बुधवार को दिल्ली में पार्टी के राष्ट्रीय परिषद की बैठक के बाद जेडीयू के प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार में देश चलाने की क्षमता है. दूसरी खास बात कि अगर उचित भागीदारी मिले तो जेडीयू केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल हो सकती है. लेकिन गुरुवार को सीएम नीतीश कुमार ने इसे फालतू बात करार दे दिया.उन्होंने साफ-साफ कहा कि ये सब फालतू की बात है.जाहिर है केसी त्यागी की ‘हां’ और सीएम नीतीश की ‘ना’ वाले बयान का सीधा मतलब ये है कि नीतीश कुमार बीजेपी के साथ पास पास और दूर दूर की रणनीति अपना रहे हैं.
केसी त्यागी का केन्द्रीय मंत्रिमंडल में उचित भागेदारी की मांग और नीतीश कुमार द्वारा इस मांग को बकवास बताने के पीछे जेडीयू के नेताओं के बीच विरोधाभास या कन्फ्यूजन नहीं है.दरअसल, नीतीश कुमार की सोची समझी रणनीति का ये हिस्सा है.सीएम नीतीश कुमार की बीजेपी की राजनीति का सबसे अहम पहलू दूर-दूर, पास-पास वाली राजनीति है. इसी राजनीति के तहत नीतीश कुमार हमेशा ही बीजेपी के साथ रहने के बाद भी उससे हमेशा एक दूरी बनाए रखते हैं. दरअसल, नीतीश कुमार बीजेपी को ये संकेत दे रहे हैं कि उन्हें ज्यादा दबाव में लेने की कोशिश की गई तो वो दूसरा रास्ता भी अपना सकते हैं.
अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की प्रक्रिया के दौरान और उसके बाद में उनके दो नेताओं के बयानों पर गौर फरमाने से साफ़ हो जाता है एक सोंची समझी रणनीति के तहत नीतीश कुमार सबकुछ कर रहे हैं. उनके मंत्री श्याम रजक ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद कहा कि यह काला दिन है. लेकिन दूसरी तरफ उनके बेहद करीबी राज्यसभा सांसद आरसीपी सिंह ने कहा कि अब तो कानून बन गया और सबको यह मानना चाहिए. ये नीतीश टाइप पॉलिटिक्स है, जिसे बीजेपी बखूबी समझ रही है.यह प्रेशर पॉलिटिक्स है. आने वाले 2020 विधानसभा चुनाव के मद्देनजर दोनों ही पार्टियां अपनी रणनीति बना रही हैं. इसमें बड़ा भाई कौन होगा इसको लेकर अभी निर्णय होना है. ऐसे में सीएम नीतीश कुमार बीजेपी को यह अहसास कराना चाहते हैं कि बीजेपी के लिए जेडीयू ज्यादा जरुरी है लेकिन जेडीयू के लिए हर हाल में बीजेपी के साथ बने रहना मज़बूरी नहीं है.
सीएम नीतीश ने जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर को ममता बनर्जी के लिए काम करने की इजाजत देकर पहले से ही अपने लिए एक दूसरा रास्ता खोल रखा है.केसी त्यागी साफ़ संकेत दे चुके हैं कि देश की राजनीति में बड़ी भूमिका निभाने की नीतीश कुमार की इच्छा अभी ख़त्म नहीं हुई है. एक तरह से कांग्रेस को भी उन्होंने संदेश दे दिया है कि नीतीश कुमार मोदी विरोधी मोर्चे की कमान संभल सकते हैं. वैसे भी सोनिया गांधी का अंतरिम अध्यक्ष बनाने के बाद यह भी उम्मीद की जा रही है कि विपक्षी दलों की एकता के लिए कांग्रेस बड़ी पहल कर सकती है.ऐसे में 2024 के आम चुनाव के लिए विपक्षी खेमे का नेतृत्व के लिए कांग्रेस नीतीश के चेहरे को आगे कर दे तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
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