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भारत में कोरोना की एक और कारगर सस्ती दवा लॉन्च, जानिये कीमत.

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सिटी पोस्ट लाइव : कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच रूस ने कोरोना की पहली वैक्सीन बना ली है. भारत, ब्रिटेन, अमेरिका समेत कई देश वैक्सीन बनाने के काफी करीब हैं.  दूसरी ओर कोरोना के इलाज में मददगार दवाएं भी लॉन्च हो रही है. पिछले कुछ महीनों में कोरोना के इलाज के लिए डेक्सामेथासोन, फेपिराविर, कोरोविर जैसी कई दवाएं सामने आई हैं, जिनकी बदौलत कोरोना मरीज तेजी से ठीक हो रहे हैं. भारत में कोरोना मरीजों की रिकवरी दर पहले की अपेक्षा बढ़ी है. कोरोना मरीजों के इलाज के लिए गुरुवार को भारतीय फॉर्मा कंपनी जायडस कैडिला ने भारतीय बाजार में रेमडेसिविर दवा लॉन्च की.

जायडस कैडिला द्वारा लॉन्च किए गए रेमडेसिविर का नाम रेमडेक रखा गया है.इसकी 100 मिलीग्राम की शीशी की कीमत 2,800 रुपए रखी गई है. यह दवा फिलहाल सभी मेडिकल स्टोरों पर उपलब्ध नहीं होगी. जायडस कैडिला कंपनी के मुताबिक, यह दवा सरकारी और निजी अस्पतालों में मिलेगी. जायडस कैडिला देश की पांचवीं कंपनी है, जिसने एंटीवायरल दवा लॉन्च की है. कैडिला हेल्थकेयर के प्रबंध निदेशक डॉ. शरविल पटेल ने कहा, “रेमडेक अन्य दवाओं के मुकाबले सस्ती दवा है. हम चाहते हैं कि यह ज्यादा से ज्यादा मरीजों तक पहुंच सके.” अमेरिकी फार्मा कंपनी गिलियड इस एंटीवायरल दवा का बड़े पैमाने पर उत्पादन करती है.वहीं, चार अन्य भारतीय फार्मा कंपनी हेटेरो लैब्स, मायलन एनवी, सिप्ला और जुबिलेंट लाइव साइंसेस ने भी यह दवा बाजार में उतारी है.बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मई में जब इस बात का एलान हुआ कि कोविड-19 के मरीजों पर एक दवा असरदार साबित हो रही है तो इसे लेकर बड़ी उम्मीदें पैदा हो गई थीं. यह दवा रेमडेसिविर ही थी. शुरुआती जांच में पता चला था कि यह दवा कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों को जल्दी ठीक कर सकती है. इस दवा ने कोरोना मरीजों के इलाज में अच्छा असर दिखाया और इस कोरोना काल में इस दवा की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए कई कंपनियों ने यह दवा तैयार की.

अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित अमेरिकी कंपनी गिलिएड ने यह दवा इबोला बीमारी के लिए बनाई थी. कोरोना के इलाज में रेमडेसिविर के प्रभाव को लेकर दुनिया के कई देशों में क्लीनिकल ट्रायल हुए थे, जिनमें पाया गया कि इस दवा के इस्तेमाल से मरीजों के ठीक होने का समय 15 दिन से घटकर 11 दिन से भी कम हो जाता है. यह दवा वायरस के जीनोम पर असर करती है, जिससे उसके बढ़ने की क्षमता पर असर पड़ता है.

अमेरिकी संस्था नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फेक्शस डिजीजेस (NIAID) ने इस दवा का जब क्लीनिकल ट्रायल किया था, तो उत्साहजनक परिणाम सामने आए थे. अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, चीन और दक्षिण कोरिया समेत दुनिया के कई देशों के अस्पतालों में 1,063 लोगों पर यह परीक्षण किया गया था. जिन मरीजों को रेमडेसिविर दी गई, उनमें मृत्यु दर आठ फीसदी पाई गई, जबकि जिनका इलाज प्लेसिबो से किया गया उनमें मृत्यु दर 11.6 फीसदी. कुछ मरीजों रोगियों को रेमडेसिविर दिया गया, जबकि कुछ का प्लैसीबो या वैकल्पिक इलाज किया गया. NIAID के प्रमुख एंथनी फाउची ने तब कहा था, “रेमडेसिविर से स्पष्ट देखा गया कि इससे मरीजों में रिकवरी टाइम कम हुआ है. यानी मरीज जल्दी ठीक हो सकते हैं. नतीजों से सिद्ध हुआ कि दवा इस वायरस से लड़ने में कारगर है. इससे मरीजों के इलाज की संभावना का द्वार खुल गया.”

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