मुख्यमंत्री रघुवर दास ने मुड़मा-जतरा मेला का किया उदघाटन
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सिटी पोस्ट लाइव, रांची : मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा है कि सरकार जनजातीय संस्कृति को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए प्रतिबद्ध है।उन्होंने कहा कि जनजातीय संस्कृति को संरक्षित एवं संवर्द्धित करने के लिए राज्य सरकार द्वारा 70 वर्षां में पहली बार रांची के मुड़मा जतरा मेला, बोकारो के लुगुबुरू और दुमका के हिजला मेला को राजकीय मेला का दर्जा किया गया। मुख्यमंत्री गुरुवार को मांडर के निकट मुड़मा-जतरा मेला के उदघाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे। मुख्यमंत्री ने बताया कि सरकार जनजातीय संस्कृति को प्रोत्साहन देने के साथ ही गांव में रहने वाली गरीब और आदिवासी महिलाओं को अपने घर में ही काम दिलाने और स्वरोजगार उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है, इसके तहत अब स्वयं सहायता समूह की महिलाएं स्कूली बच्चों के लिए पोशाक बनाएगी और क्षेत्र में पढ़ने वाले स्कूली बच्चों को वही पोशाक उपलब्ध कराया जाएगा। इस संबंध में आज ही उन्होंने मुख्य सचिव को आदेश दे दिया है, मुख्य सचिव की ओर से कल सभी जिलों के उपायुक्तों को पत्र भेज दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि वे मुड़मा मेले में कुछ देने के लिए नहीं आये, बल्कि शक्ति के केंद्र स्थान से वे आशीर्वाद लेने आये, इसी शक्ति केंद्र की बदौलत सरकार लोगों के विकास और कल्याण में लगी है। उन्होंने कहा कि जनजातीय संस्कृति का मूल सिद्धांत है, अपनी संस्कृति को अक्षुण्ण बनाये रखना, इसके लिए सरकार ने सभी आदिवासी गांवों में अखाड़ा के साथ नृत्य-संस्कृति व पहचान को सुरक्षित रखना चाहती है, सरना, मसना स्थल, धुमकुरिया और अन्य जनजातीय परंपरा को समृद्ध किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि सरकार ने पिछले वर्ष यहां सांस्कृति भवन बनाने का निर्णय लिया था, यह भवन बनकर तैयार हो गया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार कुल बजट की 42 प्रतिशत राशि आदिवासियों के विकास पर खर्च कर रही है। साथ ही, अनुसूचित जाति के विकास के लिए काफी काम किया जा रहा है। ये दोनों समाज अभी भी काफी पीछे हैं, इन्हें आगे लाने के लिए सरकार लगातार काम कर रही है। उक्त बातें मुख्यमंत्री ने मांडर में आयोजित मुड़मा जतरा मेले के उदघाटन के बाद कहीं। उन्होंने ने कहा कि मुड़मा जतरा मेला मेरे लिए शक्ति का केंद्र है। इस केंद्र से आशीर्वाद लेने आया हूं ताकि झारखंड की सवा तीन करोड़ जनता की जिंदगी में खुशहाली आए। हर गरीब के जीवन में बदलाव आए। हर आदिवासी शोषित, वंचित समाज के जीवन में बदलाव आए। हमारी सरकार झारखंड विकास के पथ पर राज्य निरंतर आगे बढ़ रहा है। इस विकास की गति को आने वाले समय में हमें और तीव्र करना है। जतरा हो, मेला हो, हाट हो या हटिया हो, ये झारखंडवासियों के सामाजिक, सांस्.तिक और आर्थिक जीवन का महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंनेमेला में मिलने-जुलने का एक साधन होता है और मेला में सामान खरीदारी का भी एक अवसर प्राप्त होता है। मेला के माध्यम से जो हमारे गरीब दुकानदार या हमारी स्वयं सहायता की बहनें अपने हाथ से बने उत्पादों प्रदर्शित करती हैं। उन्हें रोजगार और अपनी आय की वृद्धि का एक बहुत बड़ा साधन उपलब्ध होता है। इस मौके पर विधायक गंगोत्री कुजूर ने कहा कि वे लगातार मुड़मा मेला के विकास को लेकर प्रतिबद्ध है, उनके प्रयास से ही इसे राजकीय मेला का दर्जा किया गया और वे खुद भी ढोल-नगाड़ा देकर सभ्यता-संस्कृति को मजबूत करने में जुटी है। धर्मगुरू बंधन तिग्गा ने इस मौके पर कहा कि सरकार एक ओर देवघर में श्रावणी मेला के लिए 80 करोड़ और मुड़मा मेले के लिए मा़त्र पांच लाख रुपये उपलब्ध करा कर सौतेलापन व्यवहार न करें। उन्होंने कहा कि यह मेला जनजातीय संस्कृति के लिए उच्चतम न्यायालय का महत्व रखता है,जहां न्यायपालिका , विधायिका और कार्यपालिका को मानते हुए कोई फैसला सुनाया जाता है, तो इसे सभी जनजातीय समाज मानने के लिए बाध्य होता है। उन्होंने कहा कि यह स्थान उरांव और मुंडा जनजाति समाज का मिलन स्थल है। इससे पहले धर्मगुरू बंधन तिग्गा के नेतृत्व में 40 पाड़हा के पाहन-पुजारियों द्वारा शक्ति स्थल पर पूजा-अर्चना की गयी। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भी सरनास्थल पर जाकर पूजा-अर्चना की और राज्यवासियों की खुशहाली की कामना की।
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