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प्राच्य ज्ञान के संबर्धन के हिमायती थे महाराजाधिराज

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#citypostlive दरभंगा : कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में आज महाराजाधिराज सर डॉ. कामेश्वर सिंह की जयंती मनाई गई। विश्वविद्यालय के दरबार हॉल में आयोजित समारोह की अध्यक्षता प्रतिकुलपति प्रो. चंद्रेश्वर प्रसाद सिंह ने किया। अपने संबोधन में उन्होंने महाराजा को सच्चे अर्थों में विद्यानुरागी बताया। उन्होंने कहा कि प्राच्य ज्ञान के विकास व सम्बर्धन के लिए वे वाकई दिल से समर्पित थे। वे प्राचीन विषयों के मर्मज्ञ थे। उन्हें इसके महत्व की पूरी जानकारी थी। तभी तो माहाराजाधिराज ने पांडुलिपियों के रूप में ज्ञान व इतिहास के भंडार का संचय किया। ताकि अगली पीढ़ी भी इसका व्यवहारिक लाभ ले सके।
प्रतिकुलपति प्रो. सिंह ने खुद सवाल खड़ा किया कि आखिर संस्कृत के लिए ही उन्होंने व्यापक दानशीलता व समर्पण क्यों दिखाये? लगे हाथ उन्होंने स्पष्ट भी कर दिया कि दानवीर कामेश्वर सिंह मानते थे कि संस्कृत है तभी संस्कृति भी है। इसलिए संस्कृत के विकास व उसके प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने अपने सुनहरे आवास तक को दान में दे दिया। ऐसा दूसरा उदाहरण अन्यत्र कहीं नहीं है। कार्यक्रम के संबंध में पीआरओ डॉ. निशिकांत प्रसाद सिंह ने बताया कि मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. जगदीश मिश्र थे। जिन्होंने महाराजा की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे विलक्षण प्रतिभा का धनी थे। मिथिला शोध संस्थान, डीएमसीएच, संस्कृत विश्वविद्यालय, मिथिला विश्वविद्यालय, बीएचयू, एएमयू, पीयू समेत कई शिक्षण संस्थानों की स्थापना में उनके योगदान को उन्होंने सर्वोपरि बताया। शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार के मामले में उन्हें सबसे बड़ा पैरोकार कहा। उन्होंने कहा कि मैथिली व मिथिला के प्रति माहाराजाधिराज तन मन से समर्पित थे। वहीं कुलानुशासक प्रो. सुरेश्वर झा ने भी माहाराजाधिराज की व्यक्तित्व व कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला एवम उन्हें युग पुरोधा करार दिया। कर्मचारी नेता अनिल कुमार झा ने भी उनसे जुड़ी पौराणिक यादों को तरोताजा किया। इसके पूर्व अतिथियों द्वारा कामेश्वर सिंह के चित्र पर माल्यार्पण किया गया। छात्रों ने स्वागत गान भी गया। प्रो. शशिनाथ झा के संचालन में चले कार्यक्रम में स्वागत भाषण सीसीडीसी प्रो. श्रीपति त्रिपाठी ने तथा धन्यवाद ज्ञापन डीन प्रो. शिवाकांत झा ने किया।

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