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सहरसा : कुछ महीनों के लिए हुई थी सुखी झील गुलजार, फिर छाया मुरघटी सन्नाटा

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सहरसा : सुखी झील कुछ महीनों के लिए हुई थी गुलजार, फिर छाया मुरघटी सन्नाटा, इलाके के लोगों के साथ पर्यटकों के हाथ फिर से लगी मायूसी.

सिटी पोस्ट लाइव स्पेशल रिपोर्ट : दो दशक से ज्यादा हुए करोड़ों की लागत से बने सहरसा का मत्स्यगंधा झील आज एक बार फिर से सुखकर घने जंगल में तब्दील हो चुका है ।डेढ़ किलोमीटर में पसरा यह झील आज फिर से बर्बाद हो चूका है। झील में पड़ी टूटी-फूटी नौकाएं नेता, सत्तासीन और नौकरशाहों को मुंह चिढ़ा रही हैं। यहाँ ना तो अब दूर-दराज इलाके से पर्यटक आते हैं और ना ही स्थानीय लोग। बताते चलें की शुरूआती समय में यहाँ लोगों की अपार भीड़ उमड़ती थी लेकिन आज यहाँ मुरघती सन्नाटा है। लोगों को राहत और सुकून के दो पल देने वाला यह झील आज खुद अपनी हालात पर मोटे-मोटे आंसू बहा रहा है। आप यह जानकार हैरान हो जायेंगे की अपनी सेवा यात्रा के दौरान वर्ष 2011 में तीन दिवसीय दौरे 12 से 14 दिसम्बर को सहरसा आये मुख्यमंत्री 13 दिसंबर को मत्स्यगंधा झील का निरीक्षण करने खुद पहुंचे थे। मुख्यमंत्री ने उस वक्त इस झील को न केवल पहले से बेहतर बल्कि देश स्तर का मनोरम झील बनाने की घोषणा की थी ।लेकिन मुख्यमंत्री की घोषणा के छः साल बाद तत्कालीन डीएम विनोद सिंह गुंजियाल और सदर एसडीओ सौरव जोरवाल की भगीरथ कोशिश के बाद इस झील का जीर्णोद्धार हुआ और फिर से यहां पर्यटक आने लगे और नौकायन शुरू हुआ। लेकिन चन्द महीने में यह झील फिर से अपनी पुरानी शक्ल में आ गया।पानी सूख चुके हैं और नौकाएं भी बर्बादी के कगार पर हैं। यह बदकिस्मत झील अपनी बर्बादी पर आजतक सिर्फ आंसू भर नहीं बहा रहा है बल्कि किसी वाजिब और उम्रदराज तारणहार की बाट भी जोह रहा है। 1996 में इस झील का निर्माण तत्कालीन जिलाधिकारी, सहरसा टी.एन.लाल दास के महती प्रयास से कराया गया था ।करीब एक करोड़ के सरकारी धन और लाखों रूपये के जन सहयोग से इसका निर्माण हुआ था। तब बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद ने इस झील का उदघाटन बड़े तामझाम से दो मार्च 1997 को किया था। अपने शुरूआती समय में यह झील इस क्षेत्र सहित पुरे राज्य में आकर्षण का केंद्र बना हुआ था। यहाँ कोसी प्रमंडल और सीमावर्ती कई जिले के लोगों के साथ-साथ पड़ोसी देश नेपाल सहित देश के विभिन्य प्रान्तों से भी थोक में पर्यटक आते थे।इस झील में सुबह से लेकर देर शाम तक लगातार नौका विहार होता था। प्रेम पंछियों की किलकारियां यहां गूंजती थी।क्या बच्चे, क्या बूढ़े और क्या जवान, महिलायें भी यहाँ आकर एक तरह से उत्सव का आनंद उठाती थीं। पानी से लबालब रहने वाले इस झील की छंटा देखते ही बनती थी। लेकिन आलम यह है की सभी सुहाने दिन गुजरे समय की बात बनकर रह गयी है। हांलांकि इस झील की शुरुआती उम्र बहुुुत कम महज 8 वर्ष की ही थी। 2004 में ही यह झील सूखकर मवेशियों का चारागाह बन गया था। चारों तरफ बस सन्नाटा है। यहाँ बैठने वाले चबूतरे जमींदोज हो चुके हैं। नौकाएं टूट-फुटकर कराह रही हैं। अब पानी का एक कतरा भी नहीं हैं इस झील में। चारों तरफ फिर से जंगल उग आये हैं। झील में महज बरसाती पानी है।लोग यहाँ आकर पुराने सुनहरे और हंसी दिन को याद कर महज उदास होते हैं लोग राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन को कोसने में लगे हैं । एक मनोरम और लोगों को अपनी ओर खींचने वाला झील आज लोगों को डरा रहा है ।तकलीफों से सने जीवन में दो पल सुकून के बटोरने यहाँ लोगों का हुजूम उमड़ता था लेकिन यहाँ तो अब सब कुछ फ़ना हो गया है ।बस इस झील की यादें ही शेष रह गयी हैं ।तत्कालीन जिलाधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल और सदर एस.डी.ओ.सौरव जोरवाल की जानदार-शानदार,महती कोशिश और बलवान इच्छाशक्ति के बाद इस झील की ना केवल मिट्टी की औराई हुई बल्कि झील को पानी से लबालब भर भी दिया गया ।वाकई एकबार फिर से झील अपने पुराने शक्ल में लौट चुकी थी। लोग फिर से नौकायन और पर्यटन का लुत्फ लेने लगे थे। लेकिन सिस्टम में सौ छेद। इनदोनों अधिकारियों के जिला छोड़ते ही झील अपनी पुरानी बर्बादी पर लौट आयी है। झील के पानी सूख चुके हैं। नौकाएं अपने अस्थिपंजर की तरफ अग्रसर हैं ।शासन और प्रशासन की बेशर्म लापरवाही का खामियाजा एक बार फिर यह झील झेल रहा है। आखिर कब इस झील का स्थायी बेड़ा पार लगेगा कहना नामुमकिन है।लेकिन एक झील के दर्द से बहुतेरी सरकारी योजनाओं की बर्बादी,उसके जख्म और दर्द को समझा जा सकता है।

सहरसा से संकेत सिंह की रिपोर्ट

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