एक्टिंग में कॉन्फिडेंस का एवरेस्ट : कपूर फैमिली !
-एच.एल.दुसाध
कल संविधान दिवस के अवसर पर औरों की तरह मैं भी कुछ जश्न के मूड में रहा. लिहाजा इस खास दिन को सेलिब्रेट करने के लिए शाम को किचेन का कंट्रोल अपने जिम्मे ले लिया था.बहरहाल खास-खास अवसरों पर किचेन पर कब्ज़ा जमाना अपनी हैबिट में शुमार है : आदत में शुमार है इस दरम्यान हर पाच-दास मिनट पर कुछ समय के लिए ड्राइंग रूम में आकर रिलैक्स करना . इसी हैबिट के तहत कल रात 8 बजे के करीब जब एक बार फिर ड्राइंग रुम में आया तो देखा कोई ऐसी फिल्म चल रही जिसमें ऋषि कपूर और शत्रुघ्न सिन्हा आमने-सामने हैं और उनके मध्य हॉट डायलाग चल रहा है. मैं एकाग्रचित होकर वह दृश्य देखने लगा. मुझे लगा दोनों को पहली बार किसी टेन्स सिचुएशन में आमने सामने देख रहा हूँ. शायद वे दोनों मनमोहन देसाई की जॉन,जॉनी,जनार्दन में भी साथ थे किन्तु वैसे दृश्य में कभी आमने-सामने नहीं आये, जिसमे शत्रुघ्न सिन्हा अपना बेस्ट दे देते हैं. जिस दृश्य में दोनों को एक दूसरे से मुखातिब पाया, वह खास तौर से शत्रुघ्न सिन्हा और राज कुमार जैसे टिपिकल मैनरिज्म वाले स्टारों के लिए लिखे जाते रहे हैं. बॉलीवुड में मेरे देखे राजकुमार और शत्रघ्न सिन्हा दो ऐसे एक्टर रहे जो अपनी एक्टिंग की सीमाबद्धता के बावजूद अपनी खास स्टाइल और ऑथर बैक करेक्टर के कारण सामने वाले अपने साथी एक्टरों पर अक्सर भारी पड़ते रहे .
बहरहाल कल जिस दृश्य में ऋषि कपूर के सामने शत्रुघ्न सिन्हा को देखा, वह खास तौर से शॉटगन ब्रांड सिन था. किन्तु मुझे यह देखकर भारी मजा आया कि ऋषि कपूर के आत्म-विश्वास के सामने शत्रुघ्न थोड़े असहज दिखे,जबकि ऋषि हमेशा की तरह आत्म-विश्वास से लबरेज! मैंने बच्चों को उस फिल्म का नाम बताने को कहा.वे चैनल आगे-पीछे करके बता दिए : ‘रणभूमि’! हालाँकि मैं शत्रुघ्न सिन्हा को उनकी पहली फिल्म ‘साजन’, जो 1970 के आसपास आई सस्पेंस थ्रिलर फिल्म थी एवं जिसमे मनोज कुमार और आशा पारेख लीड रोल में थे, से ही काफी प्रभावित रहा. उस फिल्म में पूना फिल्म इंस्टीटयूट से निकले शत्रु पहली बार कुछेक मिनटों के लिए परदे पर आये और एक अलग प्रभाव छोड़ गए . उस दौर में खुद एक्टिंग का ऐस्पिरेंट होने के कारण एफटीआई से निकले एक्टरों के प्रति अतिरक्त हमदर्दी रहा करती थी. अवचेतन में मैं खुद को उनके बीच का पाता था. बहरहाल एकाधिक कारणों से साजन में शत्रु से प्रभावित हुआ. साजन के बाद जब उन्हें देवानंद की प्रेम-पुजारी में निहायत ही छोटे रोल में देखा, उन्हें बड़ा एक्टर बनने का दावा करने लगा . बाद में जब उन्हें बांग्ला के तपन सिन्हा के ‘आपोनजन’ का हिंदी संस्करण गुलजार के ‘मेरे अपने’ में मीना कुमारी और विनोद खन्ना के सामने डटकर निराले अंदाज में एक्टिंग करते देखा, उनके स्टार बनने में कोई शक ही नहीं रहा और वे बने भी. उनके स्टाइल के प्रति लोगों की दीवानगी को देखते हुए उनके हिसाब से रोल लिखे जाने लगे. शायद राज कुमार के बाद शत्रु ऐसे दूसरे एक्टर थे, जिन्हें यह अवसर मिला. जिस तरह राज कुमार के सामने राजेन्द्र कुमार, मनोज कुमार ,धर्मेन्द्र ही नहीं दिलीप कुमार जैसे अभिनय सम्राट तक निष्तेज हुए, शत्रु के आने के बाद उसी किस्म का एक और दौर हुआ. उसी दौर में आई मनमोहन देसाई की ‘रामपुर का लक्ष्मण’, जिसमे शत्रु के सामने रेखा के साथ रहे ऋषि कपूर के अग्रज: रणधीर कपूर. उस फिल्म से मुझे बहुत सुकून मिला.
सुकून की बात सुनकर आपको अजीब लग सकता है. दरअसल जब से होश संभाला योग्यता से अधिक पुरस्कार पाने वालों के प्रति एलर्जी रही है. इस कारण क्रिकेटरों में सुनील गावस्कर, एक्टरों में राजकुमार के प्रति भारी एलर्जी रही,जो परवर्तीकाल में शत्रुघ्न सिन्हा के प्रति पैदा हुई. इंटरटेनमेंट जगत की ये सब शख्सियतें ऐसी है, जिन्हें इनकी योग्यता से बहुत अधिक लोगों का प्यार मिला. इसी कारण जब कपूर खानदान की तीसरी पीढ़ी की पहली संतान रणधीर कपूर ने गजब के आत्म-विश्वास से उनका सामना किया था, भारी सुकून मिला था. इसी कड़ी में आज जब ऋषि कपूर को रणभूमि के एक दृश्य में देखा तो ‘रामपुर के लक्ष्मण’ की बरबस याद आ गयी.
दरअसल रामपुर के लक्ष्मण में रणधीर और रणभूमि में ऋषि कपूर की एक्टिंग देखकर जो भारी सुकून मिला वह मात्र इसलिए नहीं कि शत्रुघ्न सिन्हा के प्रति एलर्जी रही है, इसके पीछे एक खास कारण यह भी है कि एक्टर कपूर फैमिली के प्रति इंडियन फिल्म वर्ल्ड में सर्वाधिक लगाव रहा है. दिलीप-देव के साथ त्रिमूर्ति रहे राज कपूर तो अपनी जगह थे ही, शम्मी कपूर और ऋषि कपूर ने अलग प्रभाव छोड़ा था: आज वही काम रणवीर कपूर कर रहे हैं. तीन दशक पहले एक्टिंग के प्रति मुझमे भी खासी दीवानगी थी. देश-विदेश के ढेरो एक्टरों का दीवाना भी हुआ: दिलीप कुमार तो मेरे लिए भगवान ही रहे, बावजूद इसके शम्मी कपूर मेरे लिए एक्टिंग वर्ल्ड के सबसे बड़े विस्मय रहे और आज भी हैं . मैं आज भी कल्पना कर विस्मित होता हूँ कि कैसे जंगली-जानवर-बदतमीज के रूप में अतिशय मनमोहन अंग-संचालन पर निर्भर रहने वाले वाले शम्मी अपने चेहरे पर रोमांस,ट्रेजडी, ह्यूमर,एंगर का भाव कभी बिगड़ने नहीं देते थे. इस मामले में शाहरुख खान ही उनके कुछ-कुछ करीब हैं. वही बिंदास शम्मी कपूर जब विधाता में एक्टिंग के खुदा दिलीप कुमार से मुखातिब हुए,लोगों में सर्वाधिक कौतूहल इस बात को लेकर था कि वे कैसे अभिनय सम्राट का मुकाबला करते हैं. और दुनिया को विस्मित करते हुए शम्मी कपूर स्टार मार्क्स के साथ उस परीक्षा में न सिर्फ उतीर्ण हुए बल्कि कई दृश्यों में बाजी तक मार लेगे. शायद यही कारण था अंडरवर्ल्ड के सरगना का करेक्टर ऐतिहासिक अंदाज में अदा करने के बावजूद उस फिल्म के लिए एक्टिंग का फिल्म फेयर अवार्ड शम्मी कपूर के हिस्से में आया: दिलीप साहब देखते रह गए. शम्मी कपूर ने विधाता के जरिये प्रमाणित कर दिया कि कपूर फैमिली में जो कान्फिडेंस से, वह बेमिसाल है.
कपूर फैमिली में गजब का कान्फिडेंस है, यह सबसे पहले राज कपूर ने 1950 के दशक में आई के.आसिफ की ‘अंदाज’ में प्रमाणित किया. त्रिकोण प्रेम पर आधारित उस फिल्म की मुख्य भूमिका में थे अभिनय सम्राट दिलीप कुमार और हिंदी फिल्म इतिहास की उन्ही की समक्ष ऐक्ट्रेस नर्गिस:राज कपूर सपोर्टिंग रोल में थे.किन्तु जब अपने जेहन पर जोर डालता हूँ, मुझे याद नहीं आता कि उस दौर में राज कपूर जैसी नेचुरल व एनर्जेटिक एक्टिंग शायद किसी ने की थी. वही राज कपूर अंदाज में दिलीप कुमार के सामने जब-जब आये: न सिर्फ निराले अंदाज में बेख़ौफ़ होकर उनका सामना किये, बल्कि कई दृश्यों में उनपर हावी हो गए. ‘पैगाम’ में राज कुमार द्वारा दिलीप कुमार को झापड़ मारना आज भी फिल्म-प्रेमियों को याद है. उस एक दृश्य ने लोगों की नज़रों में राज कुमार को एवरेस्ट सरीखी ऊंचाई दे दी, किन्तु मेरा मानना है प्रेम में जलकर जिस तरह राज कपूर ने ‘अंदाज’ में दिलीप कुमार को टेनिस रैकेट से प्रहार किया था, वह शायद पैगाम के राज कुमार से बेहतर अंदाज में एक्ट किया गया था. कपूर फैमिली के एक्टिंग कांफिडेंस का दूसरा मुजाहिरा किया था,राज-शम्मी-शशि कपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर ने. उस बार भी सीनियर कपूर जिनके सामने इतिहास रचे थे वह और कोई नहीं, एक्टिंग के खुदा ही थे. पृथ्वीराज कपूर का मुगले आजम के जिस किसी भी दृश्य में दिलीप कुमार से आमना सामना हुआ, हर सिन में वे छाये रहे .पृथ्वीराज न सिर्फ हर सिन में उनसे रिश्ते में बाप लग रहे थे, बल्कि एक्टिंग में भी. मुगले आजम का रिपिटेशन वर्षों बाद मैंने रमेश सिप्पी की ‘शक्ति’ में देखि. दिलीप साहब फिल्म के हर फ्रेम में एक्टिंग के लिहाज से अमिताभ बच्चन के बाप लगे.
बहरहाल पृथ्वी राज, राज कपूर, शम्मी कपूर और कुछ हद शशि कपूर ने दमदार प्रतिपक्षियों को निष्तेज करने का जो सिलसिला शुरू किया, उसे ऋषि कपोर जैसे बड़े एक्टर ने तो कायम रखा ही, रणधीर कपूर जैसे साधारण एक्टर भी खूब पीछे नहीं रहे. उम्मीद करनी चाहिए रणबीर कपूर भी सिलसिले को कायम रखेंगे.
27 नवम्बर,2018 (लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)
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